बंदर की मौत पर गम में डूबे गांववाले, धार्मिक रीति-रिवाज से किया अंतिम संस्कार, पूरे गांव ने कराया मुंडन
बंदर की मृत्यु की खबर मिलते ही गांव का माहौल गमगीन हो गया. ढाई से तीन हज़ार की आबादी वाले बलदे गांव के लोगों ने उसे भगवान हनुमान का प्रतीक मानते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की. पूरे गांव में पांच दिनों तक शोक मनाने का निर्णय लिया गया.
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धुले जिले के बलदे गांव में एक असाधारण और भावनात्मक घटना ने पूरे राज्य का ध्यान खींचा है. यहां एक बंदर की मौत के बाद गांववालों ने उसे केवल एक जानवर नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह सम्मान दिया. बंदर की मौत के बाद गांव में न केवल अंतिम संस्कार किया गया, बल्कि पूरे धार्मिक रीति-रिवाज़ों के साथ दशक्रिया अनुष्ठान भी आयोजित किया गया.
कुत्ते के हमले के बाद गई बंदर जान
23 अगस्त को गांव में आवारा कुत्तों ने एक बंदर पर हमला कर दिया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया. जान बचाने के लिए वह जंगल की ओर भागा, लेकिन इलाज न मिलने के कारण उसकी मौत हो गई. मृत बंदर को सबसे पहले गांव के निवासी राजेंद्र पाटिल ने देखा और गांव में इसकी सूचना दी.
बंदर की मौत पर गांव में छाया शोक
बंदर की मृत्यु की खबर मिलते ही गांव का माहौल गमगीन हो गया. ढाई से तीन हज़ार की आबादी वाले बलदे गांव के लोगों ने उसे भगवान हनुमान का प्रतीक मानते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की. पूरे गांव में पांच दिनों तक शोक मनाने का निर्णय लिया गया.
धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ किया बंदर का अंतिम संस्कार
27 अगस्त को गांव के हनुमान मंदिर परिसर में दशक्रिया अनुष्ठान आयोजित किया गया, जो आमतौर पर मनुष्यों की मृत्यु पर किया जाता है. अनुष्ठान की शुरुआत हनुमान चालीसा के सामूहिक पाठ से हुई, जिसमें गांव के अधिकांश लोग शामिल हुए.
मुंडन और सूतक पालन कर व्यक्त किया गया दुख
गांव के पुरुषों ने अपने सिर मुंडवाकर शोक प्रकट किया, जबकि महिलाओं ने पारंपरिक 'सूतक' मानकर अपने तरीके से श्रद्धा जताई. यह पहला अवसर था जब गांव में किसी पशु की मृत्यु पर इस तरह का सामूहिक शोक और धार्मिक आयोजन हुआ.
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धार्मिक अनुष्ठान के समापन के बाद, ग्रामीणों ने पंढरपुर के विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर परिसर में सामूहिक भोज का आयोजन किया. यह आयोजन सामाजिक एकता और धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया. कार्यक्रम के सफल संचालन में पूर्व विधायक संभाजीराव पाटिल का मार्गदर्शन और सहयोग उल्लेखनीय रहा.
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