बादल फट गए, घर दब गए…लेकिन फिर भी अडिग खड़ी रही एक उंगली से हिलने वाली ‘पांडव शिला’
हिमाचल प्रदेश की सिराज घाटी में बादल फटने से मंडी जिले में अभूतपूर्व तबाही मची.स विनाश के बीच, एक चमत्कारी शिला पांडव शिला अपनी जगह पर अडिग खड़ी रही. यह विशाल चट्टान, जिसे एक उंगली से हिलाया जा सकता है.

चमत्कार तो बहुत देखें होंगे, लेकिन हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में एक ऐसा चमत्कार हुआ, जिसे देख हर कोई हैरान रह गया. दरअसल हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में, सिराज घाटी के जंजैहली क्षेत्र में बसा कुथा गांव हाल ही में प्रकृति के प्रकोप का शिकार बना. 30 जून 2025 की रात, जब बादल फटे, नदियां उफनीं, और पहाड़ दरकने लगे, तब सिराज घाटी में भयावह तबाही मच गई.
गांव के घर मलबे में दफन हो गए, सेब के बगीचे बह गए, सड़कें गायब हो गईं, लेकिन इस विनाश के बीच, एक चमत्कारी शिला पांडव शिला अपनी जगह पर अडिग खड़ी रही. यह विशाल चट्टान, जिसे एक उंगली से हिलाया जा सकता है, मगर पूरी ताकत लगाने पर भी नहीं हिलती, न केवल प्रकृति के रौद्र रूप का सामना कर सकी, बल्कि ग्रामीणों की आस्था को भी नई ताकत दी. यह कहानी है उस पांडव शिला की, जो तबाही में भी अटल रही और आस्था का प्रतीक बनी.
तबाही का मंजर
30 जून 2025 की रात, सिराज घाटी में बादल फटने से मंडी जिले में अभूतपूर्व तबाही मची. मंडी में 15 स्थानों पर बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गईं, जिससे घर, सड़कें, पुल, और बगीचे बह गए. थुनाग, गोहर, और जंजैहली जैसे क्षेत्रों में भूस्खलन और बाढ़ ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया. सैकड़ों घर मलबे में दब गए. सेब के बगीचे, जो स्थानीय लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत थे, पूरी तरह नष्ट हो गए. सड़कें, बिजली, और पेयजल योजनाएं ठप हो गईं.
इस भयावह मंजर के बीच, कुथा गांव की पांडव शिला अपनी जगह पर जस की तस खड़ी रही. जब ग्रामीणों ने देखा कि उनकी आस्था का यह प्रतीक प्रकृति की इस मार से अछूता रहा, तो उनके टूटे दिलों में फिर से उम्मीद जगी. ग्रामीणों का कहना है, "घर गया, सामान गया, पर हमारी आस्था की शिला जस की तस खड़ी है. शायद यही हमें फिर से खड़े होने की ताकत दे रही है."
पांडव शिला: एक चमत्कारी चट्टान
पांडव शिला, मंडी जिले के जंजैहली क्षेत्र के कुथा गांव में स्थित एक विशालकाय चट्टान है. यह चट्टान अपने अनोखे संतुलन के लिए प्रसिद्ध है—इसे एक उंगली से हल्का सा धक्का देने पर यह हिलती है, लेकिन दोनों हाथों से पूरी ताकत लगाने पर भी अपनी जगह से नहीं हटती. यह प्राकृतिक संतुलन का एक वैज्ञानिक चमत्कार है, जिसे स्थानीय लोग और श्रद्धालु दैवीय शक्ति का प्रतीक मानते हैं.
पौराणिक मान्यताएं और दंतकथाएं
यह शिला न केवल अपनी संरचना के लिए अनोखी है, बल्कि इसके पीछे की पौराणिक मान्यताएं और दंतकथाएं इसे और भी खास बनाती हैं. पांडव शिला का संबंध महाभारत काल से जोड़ा जाता है, और इसके बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. सबसे लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव इस क्षेत्र में रुके थे. जब वे भोजन कर रहे थे, तभी पास के गांव से एक लाश को जलाने के लिए लाया गया. लाश देखकर भीम के हाथ से सत्तू का पेड़ा छूट गया, जो जमीन पर गिरकर यह विशाल चट्टान बन गया.
हिमाचल प्रदेश वन विभाग की एक दंतकथा के अनुसार, पांडव एक रात कुथा गांव में रुके थे. प्रस्थान से पहले उन्होंने अपनी कटोरी (चिलम) का चुगल यहीं छोड़ दिया, जो पांडव शिला के रूप में आज भी मौजूद है.एक अन्य कथा के अनुसार, कुथा गांव के लोग एक
राक्षस के आतंक से परेशान थे. उन्होंने पांडवों से मदद मांगी. भीम ने अपनी अपार शक्ति से इस विशाल चट्टान को उठाकर राक्षस का वध किया, और यह शिला तभी से यहां स्थापित है.
स्थानीय मान्यता है कि निःसंतान महिलाएं इस शिला पर कंकड़ फेंककर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगती हैं. यह प्रथा आज भी प्रचलित है और शिला को आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है.इन कथाओं ने पांडव शिला को केवल एक चट्टान नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कार का प्रतीक बना दिया है.
तबाही में अडिग, जेसीबी भी हारा
पांडव शिला की अटलता का एक और किस्सा सड़क निर्माण के दौरान का है. जब जंजैहली क्षेत्र में सड़क बनाई जा रही थी, तो इस शिला को हटाने की कोशिश की गई. लेकिन जेसीबी मशीन का अगला हिस्सा टूट गया, और शिला अपनी जगह से टस से मस नहीं हुई. इस घटना ने स्थानीय लोगों की आस्था को और मजबूत कर दिया. ग्रामीणों का मानना है कि यह शिला भगवान शिव और पांडवों की कृपा से अडिग है, क्योंकि मंडी को "छोटी काशी" भी कहा जाता है, जहां शिव मंदिरों की प्रचुरता है.