DRDO की बड़ी उपलब्धि, सफल हुआ पायलट बचाने वाला इंडियन-मेेड इजेक्शन सिस्टम, अमेरिका-रूस की कतार में भारत भी शामिल
DRDO: यह उपलब्धि साबित करती है कि भारत अब सिर्फ लड़ाकू विमान बनाने में ही नहीं, बल्कि पायलट सुरक्षा की उन्नत तकनीक में भी दुनिया की अग्रणी ताकतों के साथ खड़ा है.
Follow Us:
Indian Made Pilot Saving Ejection System: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है. भारत ने तेज गति से उड़ते लड़ाकू विमान में पायलट की जान बचाने वाले एस्केप सिस्टम यानी इजेक्शन सिस्टम का शानदार और पूरी तरह सफल परीक्षण किया है. इस उपलब्धि के बाद भारत अब अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिनके पास इस उन्नत तकनीक का स्वदेशी परीक्षण करने की क्षमता है. यह देश की रक्षा तकनीक और आत्मनिर्भर भारत मिशन के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
800 किमी/घंटा की रफ्तार पर हुआ कठिन टेस्ट
यह परीक्षण चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बैलिस्टिक्स रिसर्च लैब (TBRL) में किया गया. इसमें एक ऐसी डमी का इस्तेमाल किया गया जो दिखने और वजन में बिल्कुल पायलट जैसी होती है.
टेस्ट के लिए LCA यानी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के आगे वाले हिस्से को एक तेज गति से चलने वाले रॉकेट स्लेड पर लगाया गया. जब यह स्लेड करीब 800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर पहुंचा, तभी असली परीक्षण शुरू हुआ.
पहले विमान की कैनोपी यानी ऊपर का कांच सही समय पर टूटा. फिर इजेक्शन सिस्टम ने पायलट की डमी को सीट समेत सुरक्षित बाहर फेंका. थोड़ी ही देर में पैराशूट खुल गया और पूरा सिस्टम डमी को सुरक्षित जमीन पर ले आया.
टेस्ट के दौरान शरीर पर पड़ने वाला जोर (G-Force), वेग और सीट की प्रतिक्रिया जैसी हर छोटी-बड़ी चीज़ रिकॉर्ड हुई. इस तरह के टेस्ट असली आपात स्थिति जैसी परिस्थितियों में सिस्टम की क्षमता को सबसे सटीक तरीके से परखते हैं.
कई संस्थाओं ने मिलकर पूरा किया मुश्किल मिशन
इस बेहद जटिल परीक्षण को DRDO ने अकेले नहीं किया. इसके पीछे कई संस्थाओं की टीम वर्क शामिल था:
एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA)
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)
भारतीय वायुसेना के विशेषज्ञ
कई रॉकेट मोटर्स के सहारे रफ्तार को सटीक तरीके से बढ़ाना, विमान का हिस्सा स्लेड में लगाना, कैनोपी के समय पर अलग होने की जांच करना और पायलट की सुरक्षित निकासी, ये सभी मिलकर एक बेहद चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया थी. DRDO का यह टेस्ट इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि यह स्थिर टेस्ट की तुलना में कई गुना अधिक कठिन होता है. जीरो-जीरो टेस्ट या नेट टेस्ट में विमान स्थिर रहता है, लेकिन इस बार पूरा सिस्टम तेज गति से चल रहा था. ऐसे गतिशील परीक्षण असली युद्ध परिस्थितियों में सिस्टम कैसे काम करेगा, इसकी सटीक जानकारी देते हैं.
पायलट की जान और भी सुरक्षित
इस परीक्षण के सफल होने का मतलब यह है कि भविष्य में किसी भी भारतीय लड़ाकू विमान में अगर तकनीकी खराबी, आग, टक्कर या किसी भी प्रकार की आपात स्थिति पैदा होती है, तो पायलट की जान बचाने की संभावना और भी ज्यादा बढ़ जाएगी. सही समय पर कैनोपी टूटना और इजेक्शन सीट का सुरक्षित तरीके से बाहर निकलना किसी भी पायलट की जिंदगी के लिए सबसे जरूरी चीज़ है और अब यह तकनीक भारत के पास पूरी तरह स्वदेशी रूप में मौजूद है.
रक्षा मंत्री ने कही बड़ी बात
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस शानदार उपलब्धि पर DRDO, ADA, HAL, भारतीय वायुसेना और सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि भारत की स्वदेशी रक्षा तकनीक को और मजबूत करेगी और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है. यह उपलब्धि साबित करती है कि भारत अब सिर्फ लड़ाकू विमान बनाने में ही नहीं, बल्कि पायलट सुरक्षा की उन्नत तकनीक में भी दुनिया की अग्रणी ताकतों के साथ खड़ा है.
Advertisement
यह भी पढ़ें
Advertisement