उत्तर भारत का इकलौता मंदिर जहां आज भी मौजूद हैं भगवान कार्तिकेय की अस्थियां !
जिस मंदिर में आज भी मौजूद भगवान कार्तिके की अस्थियां, आज हम आपको इसी पौराणिक मंदिर के इतिहास और मान्यताओं के बारे में पूरी जानकारी देंगे, जिसकी तस्वीरें शेयर कर खुद सीएम धामी ने श्रद्धालुओं से इस मंदिर में आने के लिए अपील की है !
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देवभूमि उत्तराखंड को यूं ही देवों की भूमि नहीं कहा जाता है।यहां कई ऐसे पौराणिक मठ मंदिर मौजूद हैं। जो अपने आप में एक इतिहास और मान्यताओं को समेटे हुए हैं। यही वजह है कि सीएम पुष्कर सिंह धामी समय समय पर पौराणिक मंदिरों की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा करते रहते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में। जिसकी मनमोहक वीडियो पोस्ट करते हुए सीएम धामी ने लिखा।"जनपद रुद्रप्रयाग में स्थित श्री कार्तिक स्वामी मंदिर देवाधिदेव महादेव के पुत्र श्री कार्तिकेय जी को समर्पित है, यह दिव्य स्थान हजारों भक्तों की आस्था एवं श्रद्धा का केंद्र है, अपने रुद्रप्रयाग आगमन पर इस पवित्र स्थल के दर्शन अवश्य करें"
तो आज हम आपको इसी पौराणिक मंदिर के इतिहास और मान्यताओं के बारे में पूरी जानकारी देंगे। जिसकी तस्वीरें शेयर कर खुद सीएम धामी ने श्रद्धालुओं से इस मंदिर में आने के लिए अपील की है।
पहाड़ों की वादियों में। बादलों के करीब। ऊंची चोटियों पर मौजूद इस खूबसूरत और पौराणिक मंदिर के आप भी दर्शन करना चाहते हैं तो। चले आइये रुद्रप्रयाग पोखरी मार्ग पर स्थित कनक चौरी गांव। जहां तीन हजार पचास मीटर ऊंची क्रोंच पहाड़ी की चोटी पर मौजूद है ये पौराणिक श्री कार्तिक स्वामी मंदिर।जो भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिकेय का उत्तर भारत में इकलौता मंदिर है। और इस मंदिर में उनके बाल्य रूप की पूजा होती है। इतना ही नहीं क्रोंच पहाड़ी पर मौजूद इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी ऐसी हैं जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। कहते हैं एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश की परीक्षा लेने के लिए उनसे कहा कि दोनों में से जो भी सबसे पहले ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर वापस आएगा, उसकी पूजा समस्त देवी-देवताओं में सबसे पहले की जाएगी, कार्तिकेय तो ब्रह्मांड का चक्कर लगाने चले गए, लेकिन गणेश जी ने माता पार्वती और पिता शंकर जी के चारों ओर चक्कर लगाकर उनसे कहा कि मेरे लिए तो आप ही पूरा ब्रह्मांड हैं, इसलिए आपकी परिक्रमा करना मेरे लिए ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के समान ही है।
गणेश जी की इसी बुद्धिमत्ता से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने वचन के मुताबिक दिया कि किसी भी शुभ कार्य के दौरान सबसे पहले गणेश की ही पूजा की जाएगी। गणेश जी को मिले वरदान से कार्तिकेय क्रोधित हो गए और अपने शरीर का मांस माता-पिता के चरणों में समर्पित कर दिया और स्वयं हड्डियों का ढांचा लेकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। कहते हैं भगवान कार्तिकेय की अस्थियां आज भी इसी मंदिर में मौजूद हैं, जिनकी पूजा करने के लिए हर साल लाखों भक्त कार्तिक स्वामी मंदिर आते हैं। इतना ही नहीं कार्तिक के महीने में पड़ने वाली बैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के दिन दो दिन के लिए मेला भी लगता है। जिसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ कार्तिक स्वामी मंदिर आता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। इस मंदिर तक आप भी पहुंचना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले उत्तराखंड के रुद्र प्रयाग जिले में आना होगा। यहां से कनक चौरी गांव पहुंच कर आपको एक सुंदर से कच्चे ट्रैक पर करीब तीन किलोमीटर की यात्रा पैदल ही तय करनी होगी। तब जाकर इस पौराणिक मंदिर तक पहुंच पाएंगे। तो क्या आप भी उत्तर भारत के इकलौते कार्तिक मंदिर में दर्शन करने के लिए प्लान बनाएंगे।
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