Dhan Singh Rawat की वजह से BJP Uttarakhand में इतिहास रचने से चूक गई ?
CM Dhami ने महज 12 दिनों में ही ताबड़तोड़ 52 रैलियां और रोड शो करते हुए धुआंधार चुनाव प्रचार किया, जिसका असर ये हुआ उत्तराखंड की 11 में से 10 नगर निगमों पर बीजेपी ने जीत का भगवा गाड़ दिया लेकिन धन सिंह रावत की वजह से बीजेपी इतिहास रचने से चूक गई !
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देवभूमि उत्तराखंड की सत्ता संभाल रहे बीजेपी के फायरब्रांड नेता पुष्कर सिंह धामी ने पहले साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता दिलाई। और जब जनवरी में निकाय चुनाव हुआ तो एक बार फिर सीएम धामी के सामने बीजेपी को जिताने के लिए एक बड़ी चुनौती सामने आई। जिससे पीछे हटने की बजाए सीएम धामी ने दो कदम आगे बढ़कर खुद ही मोर्चा संभाला।और महज 12 दिनों में ही ताबड़तोड़ 52 रैलियां और रोड शो करते हुए धुआंधार चुनाव प्रचार किया।जिसका असर 26 जनवरी को देखने को मिला। जब उत्तराखंड की 11 में से 10 नगर निगमों पर बीजेपी ने जीत का भगवा गाड़ दिया।
सीएम धामी के नेतृत्व में बीजेपी ने निकाय चुनाव में 11 में से दस सीटों पर जीत का भगवा तो लहरा दिया।लेकिन धामी सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल रहे धन सिंह रावत के गढ़ में बीजेपी को जीत नसीब नहीं हुई। अगर श्रीनगर में भी बीजेपी जीत जाती तो निकाय चुनाव में क्लीन स्वीप करते हुए बीजेपी इतिहास रच देती। लेकिन जिस श्रीनगर को नगर निगम का दर्जा दिलवाने में खुद स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने बड़ी भूमिका निभाई। उसी नगर निगम में बीजेपी को जीत नहीं दिला पाए। एक निर्दलीय उम्मीदवार आरती भंडारी ने बीजेपी उम्मीदवार आशा उपाध्याय को हरा दिया। ये हार बीजेपी की हार नहीं। स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत की व्यक्तिगत हार बताई जा रही है।
क्योंकि वो खुद श्रीनगर गढ़वाल से विधायक हैं। और उन्होंने ही श्रीनगर को नगर निगम बनाने के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन इसके बावजूद बीजेपी को श्रीनगर में जीत नहीं दिला पाए। इस सीट पर कांग्रेस तो छोड़िये एक निर्दलीय उम्मीदवार ने बीजेपी को हरा दिया।और हार तो हार।बीजेपी को 40 में से सिर्फ 14 वार्डों में ही बीजेपी को जीत नसीब हो सकी।वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों ने 18 वार्डों में जीत हासिल की, जिससे साफ जाहिर होता है कि पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष और जनता में स्थानीय मुद्दों को लेकर भारी नाराजगी थी।इसी बात से आप समझ सकते हैं कि ये हार स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत की व्यक्तिगत हार क्यों बताई जा रही है। ये हाल तब है जब खुद धन सिंह रावत साल 2017 से श्रीनगर गढ़वाल से विधायक हैं।और धामी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी हैं। लेकिन इसके बावजूद श्रीनगर में बीजेपी को नगर निगम की एक सीट नहीं जिता पाए। इसी बात से समझ सकते हैं कि श्रीनगर गढ़वाल में धन सिंह रावत की पकड़ कितनी कमजोर होती जा रही है। इस एक हार ने धन सिंह रावत की सियासी साख पर ही सवाल उठा दिया है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ श्रीनगर में हुए नगर निगम चुनाव में ही बीजेपी को हार मिली है। बल्कि पौड़ी जिले की तीनों नगर पंचायतों – सतपुली, स्वर्गाश्रम जौंक और थलीसैंण में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। ये तीनों नगर पंचायत धन सिंह रावत के गृह क्षेत्र में ही आते हैं। जबकि नगर पालिका परिषद पौड़ी और नगर पालिका परिषद दुगड्डा में भी भाजपा तीसरे स्थान पर रही। बीजेपी की इस हालत के लिए मंत्री धन सिंह रावत की चुनावी उदासीनता को बड़ी वजह बताई जा रही है। क्योंकि जब सीएम पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रहे थे, उस समय धन सिंह रावत सिंगापुर घूम रहे थे। मंत्री जी का चुनाव को गंभीरता से न लेना बीजेपी को भारी पड़ गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर धन सिंह रावत ने चुनाव प्रचार में उतनी ही मेहनत की होती, जितनी उन्होंने श्रीनगर को नगर निगम बनाने में की थी, तो शायद परिणाम बीजेपी के पक्ष में होता। उनकी चुनावी उदासीनता की वजह से बीजेपी के पारंपरिक वोटर पार्टी से अलग हो गए, जिससे निर्दलीय प्रत्याशी को जीत का रास्ता मिल गया। श्रीनगर में बीजेपी की हार सिर्फ एक चुनावी हार नहीं, बल्कि पार्टी के लिए एक गंभीर संकेत हैं। पार्टी को अब यह समझना होगा कि आंतरिक गुटबाजी को कैसे खत्म किया जाए और जमीनी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर आगे बढ़ा जाए। तो वहीं अगर धन सिंह रावत को अपनी राजनीतिक साख बचाना चाहते हैं, तो उन्हें इस हार से सीख लेते हुए स्थानीय स्तर पर संगठन को और मजबूत करना होगा। नहीं तो भविष्य में यह हार उनके राजनीतिक करियर पर गहरा असर डाल सकती है।
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