क्या भीख मांगने पर रोक लगाने से खत्म हो जाएगा माफियाओं का रैकेट? भोपाल के फैसले पर बड़ी चर्चा!
भारत में भीख मांगना केवल गरीबी की निशानी नहीं, बल्कि यह एक संगठित अपराध का हिस्सा बन चुका है। भोपाल प्रशासन ने सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगने पर पाबंदी लगाई है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या इससे यह समस्या खत्म होगी?

भारत में भीख मांगना सिर्फ एक मजबूरी नहीं, बल्कि एक संगठित 'कारोबार' बन चुका है। हाल ही में भोपाल के जिला कलेक्टर ने एक सख्त आदेश जारी कर सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है। लेकिन अब यह सवाल उठता है कि क्या इस तरह के प्रतिबंध से भीख मांगने की समस्या खत्म हो जाएगी? क्या भीख मांगने वाले वास्तव में मजबूर हैं या इसके पीछे कोई संगठित गिरोह काम कर रहा है? और सबसे महत्वपूर्ण बात, भारतीय कानून इस पर क्या कहता है?
भारत में भीख मांगना मजबूरी या माफिया का खेल?
जब भी हम सड़क किनारे, ट्रैफिक सिग्नल, रेलवे स्टेशन या मंदिरों के बाहर किसी छोटे बच्चे, बुजुर्ग या विकलांग को हाथ फैलाते देखते हैं, तो हमारे मन में दो ही भावनाएं आती हैं सहानुभूति और दान देने की इच्छा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन भिखारियों की असली सच्चाई क्या है? भारत में भीख मांगने का 90% हिस्सा एक संगठित रैकेट का हिस्सा बन चुका है। बड़े शहरों में माफिया गिरोह छोटे बच्चों और महिलाओं को अगवा करके या गरीबी में फंसे परिवारों को लालच देकर उनसे भीख मंगवाते हैं। कई मामलों में तो बच्चों को अपंग बना दिया जाता है ताकि वे ज्यादा दयनीय दिखें और लोग अधिक पैसे दें। यह एक ऐसा कड़वा सच है जिसे आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय सामाजिक न्याय आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 4 लाख से ज्यादा लोग भीख मांगकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े शहरों में हर दिन करोड़ों रुपये भीख में दिए जाते हैं। NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल हजारों बच्चे लापता होते हैं, जिनमें से कई भीख माफिया के हाथ लग जाते हैं। और सबसे अहम बात कि कई भिखारियों की रोज़ाना की कमाई 1000-2000 रुपये तक होती है, जो कई मजदूरों की कमाई से भी ज्यादा है। अब जब बिना किसी मेहनत मजदूरी के भिखारी एक दिन का इतना कमा लेता है तो यकीन वो मेहनत क्यों ही करेगा।
क्या कहता है इस पर कानून?
भारत में भीख मांगने के खिलाफ कोई सख्त राष्ट्रीय कानून नहीं है, लेकिन कुछ राज्यों ने अपने कानून बनाए हैं। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 (Bombay Prevention of Begging Act) के तहत, भीख मांगना एक अपराध माना जाता है। यह कानून दिल्ली, महाराष्ट्र और कई अन्य राज्यों में लागू है।
भारत में भीख मांगने से जुड़े कानून
बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 के तहत किसी भी सार्वजनिक स्थान पर भीख मांगना गैरकानूनी है।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के तहत बच्चों से जबरन भीख मंगवाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।
IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 363A के तहत बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर करने वालों को 10 साल तक की सजा हो सकती है।
ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन्स (प्रिवेंशन, प्रोटेक्शन एंड रिहैबिलिटेशन) बिल, 2018 के तहत भीख मांगने वाले गिरोहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की बात कही गई है।
क्या सिर्फ कानून बनाना काफी है?
भोपाल प्रशासन का फैसला एक सकारात्मक कदम जरूर है, लेकिन यह पूरी समस्या का समाधान नहीं है। क्योंकि सिर्फ भीख मांगने पर रोक लगाने से यह समस्या खत्म नहीं होगी, बल्कि इसे जड़ से उखाड़ने की जरूरत है। सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि हर भिखारी मजबूरी में नहीं, बल्कि एक माफिया रैकेट का शिकार भी हो सकता है। पुलिस को उन गिरोहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो बच्चों और महिलाओं से जबरन भीख मंगवाते हैं। सरकार को ऐसे भिखारियों के लिए पुनर्वास केंद्र और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे, ताकि वे भीख मांगने के बजाय सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।
अब इन सब बात के बीच एक सवाल हमेशा मन में आता है कि भीख देने से मदद होती है या समस्या बढ़ती है? अगर हम किसी वास्तव में जरूरतमंद व्यक्ति को पैसे देते हैं, तो यह दयालुता है। लेकिन अगर यह पैसा किसी माफिया या गिरोह तक पहुंच रहा है, तो यह समस्या को और बड़ा बना रहा है। इसलिए जरूरी है कि हम सोच-समझकर ही भीख दें। अगर आप किसी जरूरतमंद की मदद करना चाहते हैं, तो आप NGOs के माध्यम से भोजन, कपड़े, या शिक्षा उपलब्ध करवा सकते हैं। इससे असली जरूरतमंदों की मदद भी होगी और गिरोहों को मिलने वाला पैसा भी रुक जाएगा।
NGOs और समाजसेवी संगठनों की भागीदारी कई गैर-सरकारी संगठन इस समस्या से निपटने के लिए काम कर रहे हैं। सरकार को इनका सहयोग लेना चाहिए। भोपाल जिला कलेक्टर का भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला एक अच्छी शुरुआत हो सकता है, लेकिन समस्या की जड़ तक पहुंचे बिना इसे खत्म नहीं किया जा सकता। भारत में भीख मांगना अब सिर्फ एक मजबूरी नहीं, बल्कि एक संगठित माफिया उद्योग बन चुका है।
तो अगली बार जब आप किसी भिखारी को देखें, तो सोचें क्या उसे पैसा देना सही है या उसे आत्मनिर्भर बनाने में मदद करना बेहतर होगा?