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क्या भारत 2050 में बूढ़ा देश बन जाएगा? जानें क्या होगा देश की अर्थव्यवस्था पर इसका असर

भारत 2050 तक एक नई जनसांख्यिकीय चुनौती का सामना करने वाला है। वर्तमान में दुनिया की सबसे युवा आबादी वाला देश धीरे-धीरे वृद्ध होता जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 2050 तक भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 35 करोड़ तक पहुंच जाएगी, जिससे कार्यबल में कमी, पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ता खर्च और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

भारत, जो अभी तक अपनी युवा आबादी के दम पर तेजी से विकास कर रहा था, अब एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है। एक ऐसी स्थिति, जहां देश की एक बड़ी आबादी वृद्ध हो रही है। इकोनॉमिस्ट की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्तमान में 15 करोड़ से अधिक लोग 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के हैं और 2050 तक यह आंकड़ा 35 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। यह भारत की कुल जनसंख्या का 21% होगा। इस बदलाव के साथ कई आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियां भी सामने आएंगी। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारत विकसित बनने से पहले बूढ़ा हो जाएगा? और अगर ऐसा होता है, तो इसका प्रभाव देश के आर्थिक विकास, कार्यबल और सामाजिक ताने-बाने पर कैसे पड़ेगा?

भारत की जनसांख्यिकी में बड़ा बदलाव

पिछले कुछ दशकों में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर घट रही है और जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है। 1947 में भारत में जीवन प्रत्याशा मात्र 41.2 वर्ष थी, जो अब बढ़कर 72 वर्ष तक पहुंच गई है। हालांकि, यह देश की स्वास्थ्य सेवाओं और जीवन स्तर में सुधार को दर्शाता है, लेकिन साथ ही बूढ़ी होती जनसंख्या की समस्या को भी जन्म दे रहा है। अभी भारत में 140 करोड़ की कुल आबादी में से आधे से अधिक 29 वर्ष से कम उम्र के हैं। यही युवा आबादी देश की अर्थव्यवस्था को गति दे रही है, लेकिन जैसे-जैसे यह युवा वर्ग वृद्ध होगा, वैसे-वैसे देश की उत्पादकता, निवेश और श्रम शक्ति पर दबाव बढ़ेगा।

2050 में भारत की तस्वीर कैसी होगी?

1. भारत में वृद्ध लोगों की संख्या तेजी से बढ़ेगी
आज भारत में करीब 15 करोड़ लोग 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के हैं, लेकिन अगले 25 वर्षों में यह संख्या दोगुनी होकर 35 करोड़ तक पहुंच जाएगी। इसका मतलब है कि हर पांच में से एक भारतीय वृद्ध होगा।

2. घटती जन्म दर से युवा आबादी में कमी आएगी
भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) लगातार गिर रही है। यह 2.1 के रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे गिरकर 2.0 से भी कम होने की आशंका है। इससे भारत की युवा आबादी में कमी आएगी और कार्यबल पर दबाव बढ़ेगा।

3. पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च बढ़ेगा
बढ़ती वृद्ध आबादी का मतलब है कि सरकार को पेंशन, स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर अधिक खर्च करना पड़ेगा। सरकारी वित्तीय संसाधनों पर इसका गंभीर असर पड़ेगा, जिससे अन्य विकास योजनाओं के लिए बजट सीमित हो सकता है।

4. कामकाजी लोगों का अनुपात घटेगा
अभी भारत में हर बुजुर्ग पर 9.8 कामकाजी वयस्क हैं। लेकिन 2050 तक यह अनुपात घटकर यूरोप के वर्तमान स्तर तक पहुंच जाएगा और सदी के अंत तक यह जापान के बराबर 1.9 रह जाएगा। इससे कार्यबल पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा और देश की उत्पादकता प्रभावित होगी।

बूढ़ी होती आबादी का भारत के विकास पर असर

1. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
बूढ़ी होती आबादी का सबसे बड़ा प्रभाव कार्यबल पर पड़ेगा। युवा श्रमिकों की संख्या कम होने से उत्पादकता में गिरावट आएगी और औद्योगिक विकास धीमा पड़ सकता है।पेंशन योजनाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर सरकार को अधिक खर्च करना पड़ेगा, जिससे सरकारी बजट पर दबाव बढ़ेगा। युवा आमतौर पर नई तकनीकों और स्टार्टअप्स के पीछे की ताकत होते हैं। लेकिन अगर युवा आबादी कम हो गई, तो नए इनोवेशन की गति धीमी पड़ सकती है।जब कामकाजी लोगों की संख्या कम हो जाएगी, तो सरकार के टैक्स संग्रह पर भी असर पड़ेगा। इससे भारत की विकास योजनाओं के लिए फंडिंग मुश्किल हो सकती है।

2. सामाजिक प्रभाव
बूढ़ी होती आबादी के साथ अस्पतालों, दवाओं और वृद्ध देखभाल सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ेगी। परिवारों पर बुजुर्गों की देखभाल का आर्थिक और भावनात्मक बोझ बढ़ेगा। वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ सकती है, लेकिन वे पर्याप्त होंगे या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक जीती हैं। ऐसे में वृद्ध महिलाओं को अधिक आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, खासकर अगर उनके पास वित्तीय सुरक्षा न हो।

3. राजनीति और समाज पर प्रभाव
जब आबादी में वृद्ध लोगों की संख्या बढ़ जाती है, तो वे सरकार से अधिक पेंशन और कल्याणकारी योजनाओं की मांग करते हैं। इससे युवा वर्ग के लिए जरूरी सुधार और विकास योजनाओं पर ध्यान कम हो सकता है। युवा वर्ग आमतौर पर तकनीकी प्रगति का वाहक होता है, लेकिन अगर युवा जनसंख्या कम होगी, तो भारत के टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप सेक्टर पर प्रभाव पड़ेगा। अगर भारत में रोजगार के अवसर घटे और करों का बोझ बढ़ा, तो अधिक युवा लोग विदेशों में नौकरी की तलाश करेंगे। इससे देश के अंदर कुशल श्रमिकों की कमी हो सकती है।

भारत इस चुनौती से कैसे निपट सकता है?

1. जनसंख्या नीति में सुधार: भारत को जन्म दर को स्थिर करने के लिए आर्थिक और सामाजिक प्रोत्साहन देने होंगे। अधिक बच्चों को जन्म देने वाले परिवारों के लिए कर छूट, मातृत्व लाभ और बाल देखभाल सेवाओं में सुधार जैसी योजनाएं लागू करनी होंगी।

2. तकनीकी समाधान: ऑटोमेशन, एआई और रोबोटिक्स को अपनाकर श्रमशक्ति की कमी को पूरा किया जा सकता है। इससे कम लोगों में अधिक उत्पादकता प्राप्त की जा सकेगी।

3. स्वास्थ्य और वित्तीय सुरक्षा: बुजुर्गों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और पेंशन योजनाएं तैयार करनी होंगी। वृद्धावस्था बीमा योजनाओं को मजबूत करने की जरूरत होगी।

4. आप्रवासन नीति में सुधार: भारत को युवा विदेशी श्रमिकों को आकर्षित करने की रणनीति बनानी होगी, जिससे श्रमशक्ति की समस्या को हल किया जा सके।

अगर भारत अपनी जनसंख्या नीति में सही बदलाव नहीं करता है, तो आने वाले वर्षों में देश को गंभीर आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, जापान और जर्मनी जैसे देशों के अनुभव से सीखकर भारत अपनी वृद्ध आबादी की समस्या को अवसर में बदल सकता है। सही नीतियों, तकनीकी नवाचार और वित्तीय सुधारों के जरिए भारत इस चुनौती से सफलतापूर्वक निपट सकता है और 2050 में भी एक सशक्त राष्ट्र बना रह सकता है।

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