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Ratan Tata: जब पिता के सपनों को पूरा करने के लिए Ratan tata ने मार दी थी अपनी इच्छा

Ratan Tata: रतन नवल टाटा ने अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए जो रास्ता चुना, वह आज हर युवा के लिए प्रेरणा बना हुआ है। आर्किटेक्चर की पढ़ाई के बाद जब उन्होंने बिजनेस की दुनिया में कदम रखा, तो उनकी कहानी ने सबको चकित कर दिया। क्या आपको पता है कि कैसे एक साधारण से शॉप फ्लोर कर्मचारी ने टाटा ग्रुप का उत्तराधिकारी बनने का सफर तय किया? आइए, जानते हैं रतन टाटा की अद्भुत यात्रा, जो संघर्षों और सफलताओं से भरी हुई है।

10 Oct, 2024
( Updated: 10 Dec, 2025
06:19 PM )
Ratan Tata:  जब पिता के सपनों को पूरा करने के लिए Ratan tata ने मार दी थी अपनी इच्छा
Ratan Tata: सपने देखना तो हर किसी का काम है, लेकिन उन्हें पूरा करने का जुनून हर किसी में नहीं होता। रतन नवल टाटा, जो टाटा ग्रुप के वर्तमान चेयरमैन हैं, ने अपनी जिंदगी में कई ऐसे मौके देखे, जहां उन्होंने अपने सपनों को छोड़कर अपने पिता के सपनों को पूरा करने का फैसला किया। उनकी कहानी केवल एक सफल बिजनेसमैन की नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे इंसान की है जिसने अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे और अपने परिवार की इच्छाओं को सर्वोपरि रखा। आज हम आपको बताएंगे कि कैसे रतन टाटा ने अपने पिता के सपनों को साकार करने के लिए अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं का बलिदान दिया, और इस सफर में उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

रतन टाटा का बचपन
28 दिसंबर 1937 को गुजरात के सूरत में जन्मे रतन टाटा का जीवन शुरू से ही संघर्ष से भरा रहा। उनके पिता, नवल टाटा, टाटा ऑयल मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर थे और माँ, सोनू टाटा, एक हाउसवाइफ थीं। रतन का बचपन मुश्किलों से भरा था, जब मात्र 10-12 साल की उम्र में उनके माता-पिता का तलाक हो गया। इस कठिनाई ने उन्हें संकोची और सादगी पसंद इंसान बना दिया। लेकिन उनकी प्रतिभा और मेहनत ने उन्हें अपने स्कूल में सबसे अच्छे छात्रों में से एक बना दिया।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई और शिमला में प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर की डिग्री ली। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए छोटे-मोटे काम करने शुरू कर दिए। यह सब करते हुए भी उन्होंने अपने पिता की इच्छा को ध्यान में रखा, जो उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे। रतन टाटा की आर्किटेक्ट बनने की ख्वाहिश ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया, लेकिन जब उन्होंने अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए जमशेदपुर में टाटा स्टील प्लांट में इंटर्नशिप शुरू की, तो उनकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया। उनका पहला कार्य अनुभव बहुत चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने इसे सफलतापूर्वक पार किया। उनका एक इंटरव्यू में कहना था कि उन्हें पछतावा नहीं है कि वे आर्किटेक्ट नहीं बन पाए, लेकिन यह जरूर था कि वे अपने सपनों का पालन करते हुए अपने परिवार के लिए भी कुछ कर सकें।

1971 में रतन टाटा को नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी का डायरेक्टर इनचार्ज नियुक्त किया गया। यह कंपनी संकट में थी, लेकिन रतन ने इसे पुनर्जीवित करने का कठिन कार्य किया। उन्होंने न केवल अपने कार्यों में सफल रहे, बल्कि उन्हें टाटा ग्रुप के बड़े फैसलों में भी शामिल किया जाने लगा। 1991 में, जब जेआरडी टाटा ने टाटा संस के चेयरमैन पद को छोड़ दिया, रतन टाटा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया। इस जिम्मेदारी ने रतन पर काफी दबाव डाला, लेकिन उन्होंने इसे एक अवसर में बदल दिया। अपने अनोखे दृष्टिकोण से उन्होंने टाटा ग्रुप में नए नियम लागू किए, और अपने अनुभव के बल पर उन्होंने कंपनी को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।

हालांकि, उनके फैसले ने उन्हें कंपनी के कुछ बड़े सदस्यों का विरोध भी झेलना पड़ा। लेकिन रतन ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने दृष्टिकोण को सही साबित करने के लिए नए टैलेंट को अपनी टीम में शामिल किया और नवाचार को प्राथमिकता दी।

टाटा मोटर्स का उत्थान
रतन टाटा ने अपने करियर में कई सफल प्रोजेक्ट्स शुरू किए, लेकिन सबसे चुनौतीपूर्ण था टाटा मोटर्स का निर्माण।  हर रास्ते पर सफल होने के बाद टाटा ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम करने के बारे में सोचा और 1998 में टाटा मोटर्स की शुरुआत की और इस कंपनी ने अपनी पहली कार इंडिका को लॉन्च किया, जिसे मार्केट में अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला और कुछ ही सालों में कंपनी बुरी तरह से घाटे में जाने लगी। अब इस नुकसान की भरपाई के लिए टाटा मोटर्स के पार्टनर्स ने उन्हें कंपनी को बेचने का आइडिया दिया और न चाहते हुए भी टाटा ने अपनी मोटर्स कंपनी को बेचने के लिए हामी भी भर दी। 

यह वही वक्त था जब टाटा अपने पार्टनर के साथ फोर्ड के हेड ऑफिस अमेरिका पहुंच गए थे। यहां उन्होंने फोर्ड के चेयरमैन WilliamClay Ford Jr. के  साथ लगभग 3 घंटे मीटिंग की। Ratan Tataमीटिंग के बाद बातों ही बातों में विलियम ने रतन टाटा पर ऐसा कमेंट कर दिया जो टाटा मोटर्स के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। विलियम ने कहा कि ‘जब तुम्हें इस बिजनेस के बारे में जानकारी ही नहीं थी, तो तुमने इसे शुरू करने में इतने पैसे क्यों ही लगाए। हम तुम्हारी इस कंपनी को खरीद कर तुम पर एहसान ही कर रहे हैं।' बस यही बात थी जो रतन टाटा के दिल में घर करने लगी। जिसके बाद वो रातों-रात अपने पार्टनर्स और टीम के साथ इंडिया लौट आए। अब विलियम के उस कमेंट का जवाब देने के लिए टाटा जबरदस्त तैयारी करने लगे और जल्द ही उनकी मेहन तरंग भी लाई। टाटा मोटर्स ने अब मार्केट अपनी जगह बना ली, मोटर्स बिजनेस में टाटा का ग्राफ दिनों दिन बढ़ने लगा और इस तरह रतन टाटा ने एक और सक्सेस हासिल की।

वहीं दूसरी तरफ फोर्ड कंपनी के बुरे दिन शुरू हो गए थे, वो दिन ब दिन घाटे में जा रही थी 2008 आते आते वो पूरी तरह से दिवालिया होने की कगार पर आ गई। इस टाइम रतन टाटा ने विलियम के सामने उनकी लग्जरी सीरीज की कार लैंड रोवर और जगुआर को खरीदने का ऑफर दिया और बदले में उन्हें इनकी अच्छे प्राइज भी ऑफर कि। विलियम जो कि इन कारों के वजह से घाटे में जा रहे थे, टाटा की ये डील सुनकर खुश हो गए। इस बार विलियम अपनी टीम और पार्टनर्स के साथ डील के लिए टाटा के ऑफिस पहुंचे थे। और तब विलियम ने टाटा से कहा कि ‘आप ने हमारी कारों की सीरीज को खरीद कर हम पर एहसान किया है और इसके लिए हम आपके शुक्रगुजार हैं’। अब फोर्ड की दो लग्जरी कारें लैंड रोवर और जगुआर टाटा ग्रुप का हिस्सा है जो कार मार्केट में धूम मचा रही हैं।
 इस तरह उन्होंने अपने 21 साल के करियर में टाटा ग्रुप को 50 गुना बढ़ाया और भारतीय ब्रांड को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया।

रतन टाटा ने अपने पिता के सपनों को साकार करने के लिए जो यात्रा की, वह न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह हर एक युवा के लिए एक सीख है। उनकी कहानी यह बताती है कि अगर आपके भीतर जुनून और मेहनत हो, तो कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। रतन टाटा केवल एक सफल बिजनेसमैन नहीं, बल्कि वह करोड़ों लोगों के लिए एक आदर्श रहें। 

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