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26/11 से पुलवामा तक: भारत के सबसे खतरनाक आतंकी हमले जिनसे कांप उठा देश

भारत के उन 5 बड़े आतंकवादी हमलों की कहानी है, जिन्होंने न सिर्फ देश की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दी, बल्कि करोड़ों भारतीयों के दिल में डर और गुस्से की लहर दौड़ा दी। 26/11 मुंबई हमला, संसद पर आतंकी हमला, पुलवामा आत्मघाती हमला, उरी बेस कैंप पर हमला और हालिया पहलगाम टूरिस्ट अटैक – हर घटना एक जिंदा दास्तान है भारत की पीड़ा और उसकी अटूट हिम्मत की।
26/11 से पुलवामा तक: भारत के सबसे खतरनाक आतंकी हमले जिनसे कांप उठा देश
भारत, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक है, हमेशा से आतंकवाद के खिलाफ मजबूती से खड़ा रहा है. लेकिन बीते दो दशकों में ऐसे कई क्षण आए जब आतंक की काली परछाई ने देश के हर कोने को दहला दिया. आज हम उन पांच सबसे भयावह आतंकी हमलों की बात करेंगे, जिन्होंने न केवल इंसानी जानें लीं, बल्कि देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया. 

1. 26/11 मुंबई हमला – समुद्र के रास्ते आई थी मौत

26 नवंबर 2008 की रात को जब मुंबई, देश की आर्थिक राजधानी, सो रही थी, तभी समंदर के रास्ते आए 10 आतंकियों ने शहर का नक्शा ही बदल दिया. CST रेलवे स्टेशन, ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, लियोपोल्ड कैफे, और नरीमन हाउस जैसे स्थान इस नरसंहार के गवाह बने. इस हमले में 166 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए.

इन आतंकियों को पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा ने ट्रेन किया था. आतंकवादियों के पास आधुनिक हथियार, GPS डिवाइस और मिक्स्ड कम्युनिकेशन सिस्टम थे, जिससे साफ हो गया कि यह हमला सिर्फ भावनात्मक या धार्मिक नहीं, बल्कि एक सैन्य अभियान जैसा था. मुंबई पुलिस और एनएसजी कमांडो ने 60 घंटे तक चले ऑपरेशन के बाद सभी आतंकियों को मार गिराया, सिवाय एक – अजमल कसाब, जिसे बाद में फांसी दी गई.

2. संसद हमला – लोकतंत्र पर चली थी गोली

13 दिसंबर 2001 – यह तारीख भारत के लोकतंत्र के इतिहास में काली स्याही से लिखी गई. उस दिन भारत की संसद भवन पर आतंकियों ने हमला किया, जब सदन का सत्र समाप्त ही हुआ था. पांच आतंकवादी संसद परिसर में घुसे और अंधाधुंध गोलियां बरसाईं.

हमले में दिल्ली पुलिस, CRPF और संसद की सुरक्षा में तैनात जवानों ने बहादुरी से आतंकियों का सामना किया और पांचों को मार गिराया. हालांकि, इस हमले में नौ लोग शहीद हुए. जांच के बाद इस हमले का लिंक जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा पाया गया. अफजल गुरु को हमले में साजिश रचने का दोषी ठहराया गया और उसे 2013 में फांसी दी गई.

3. पुलवामा अटैक – एक धमाके ने पूरे देश को रुला दिया

14 फरवरी 2019 – वेलेंटाइन्स डे पर जब देश प्यार मना रहा था, तब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF के काफिले पर एक आत्मघाती हमला हुआ. एक कार बम में बैठे आतंकी ने जवानों की बस को टक्कर मारी और विस्फोट कर दिया. इस हमले में 40 जवान शहीद हो गए.

इस दिल दहला देने वाले हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली, और इसकी साजिश पाकिस्तान से रची गई थी. इसके बाद भारत सरकार ने पहली बार नियंत्रण रेखा पार कर बालाकोट में एयरस्ट्राइक की. पुलवामा हमला सिर्फ एक घटना नहीं थी, यह भारत के बदले हुए रुख का प्रतीक बन गया.

4. उरी हमला – सूरज उगा गोलियों की बरसात के साथ

18 सितंबर 2016 – जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में स्थित भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर तड़के आतंकियों ने हमला किया. यह हमला भारत की सेना पर सबसे बड़ा हमला माना जाता है, जिसमें 19 जवान शहीद हुए और दर्जनों घायल हो गए.

चार heavily armed आतंकवादी, जो LOC पार कर आए थे, उन्होंने तंबू और बैरकों को आग के हवाले कर दिया. यह हमला पाकिस्तान प्रायोजित था. भारत ने जवाब में 'सर्जिकल स्ट्राइक' की योजना बनाई और 29 सितंबर को POK में आतंकी ठिकानों पर हमला कर पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारत अब सिर्फ सहने वाला देश नहीं रहा.

5. पहलगाम का बैसरन हमला 
2025 में पहलगाम के प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन बैसरन घाटी में आतंकियों ने जिस तरह हमला किया, वह सीधे-सीधे आम नागरिकों को निशाना बनाने की कोशिश थी. 1000 से ज्यादा पर्यटक वहां मौजूद थे. जब घने जंगलों से 3-4 लोग ‘यूनिफॉर्म’ में उतरे और लोगों से नाम पूछने लगे, किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन अगले ही पल गोलियां चलने लगीं. आतंकियों ने सिर्फ पुरुषों को निशाना बनाया और औरतों को छोड़ दिया. कुछ को पॉइंट-ब्लैंक पर मारा गया. एक पर्यटक विनय बाई, जो गुजरात से थे, घायल हुए. बैसरन की सड़कें सुनसान थीं, गाड़ियाँ नहीं थीं, ऐसे में घोड़े वालों और स्थानीय लोगों ने घायलों को पहलगाम तक पहुंचाया.

इस हमले ने लोगों को एक बार फिर 20 मार्च 2000 की उस काली रात की याद दिला दी, जब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा से ठीक पहले पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के चिट्टी सिंहपोरा गांव में 36 निर्दोष सिखों की नृशंस हत्या कर दी थी. उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. उन्होंने क्लिंटन के समक्ष पाकिस्तान के आतंक समर्थक चेहरे को बेनकाब किया था. यह हमला न सिर्फ इंसानियत पर धब्बा था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के खिलाफ एक सशक्त प्रमाण भी.

कालूचक हमला: बच्चों तक को बख्शा नहीं गया
14 मई, 2002 की बात करें तो उस दिन दक्षिण एशियाई मामलों की अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री क्रिस्टीना बी रोका भारत दौरे पर थीं. उसी दिन तीन आतंकियों ने मनाली से जम्मू जा रही हिमाचल परिवहन निगम की बस को निशाना बनाया. सात लोगों को गोली मारने के बाद वे सेना के फैमिली क्वार्टर में घुस गए और वहां 10 बच्चों, आठ महिलाओं और पांच सैनिकों की हत्या कर दी. उन मासूम बच्चों की चीखें आज भी भारत के ज़ेहन में गूंजती हैं. कालूचक हमला न सिर्फ एक आतंकी वारदात थी, बल्कि यह भारत के नागरिक और सैन्य दोनों वर्गों के मनोबल पर सीधा हमला था.

इन हमलों ने भारत को झकझोरा जरूर, लेकिन देश की आत्मा को झुका नहीं सके. अब भारत सिर्फ हमलों के बाद रोने वाला देश नहीं, बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक, एयरस्ट्राइक और मजबूत खुफिया तंत्र के जरिए पहले से ज्यादा सतर्क, जवाबी और सक्रिय हो चुका है. ऐसे में अब देखना होगा कि पहलगाम हमले को को लेकर भारत क्या कुछ कदम उठाता है.
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