पश्चिम बंगाल में CM ममता की मुश्किलें बढ़ीं, हुमायूं-ओवैसी गठजोड़ दे रहा BJP को बड़ा मौका
पश्चिम बंगाल में नए साल के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति गर्म है. ममता बनर्जी के लिए सत्ता बचाना चुनौती बन चुकी है, जबकि बीजेपी मजबूत बूथ प्रबंधन और आक्रामक रणनीति के साथ सत्ता पर कब्जा करने को तैयार है.
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देश की राजनीति में इन दिनों जिस राज्य की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह पश्चिम बंगाल है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सूबे में नए साल के शुरुआती महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य में बनी मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बार टीएमसी (TMC) प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के लिए सत्ता बचाना एक बड़ी चुनौती बनता नजर आ रहा है. वहीं दूसरी ओर बीजेपी राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए पूरी ताकत झोंकने को तैयार दिख रही है. इसी बीच ममता बनर्जी की मुश्किलें उनकी पार्टी से निष्कासित विधायक हुमायूं कबीर के कारण और बढ़ती हुई नजर आ रही हैं. हुमायूं कबीर ने एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और इंडिया सेकुलर फ्रंट के प्रमुख पीरजाद से संपर्क साधकर राज्य की राजनीति को और गर्मा दिया है.
दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने मजबूत बूथ प्रबंधन के दम पर सत्ता परिवर्तन की जमीन तैयार करने की रफ्तार तेज कर दी है. मौजूदा सियासी हालात में राज्य में बीजेपी (BJP) और तृणमूल कांग्रेस के बीच लगभग सीधी टक्कर दिखाई दे रही है. कांग्रेस के साथ-साथ तीन दशकों तक सत्ता में रही माकपा और उसके सहयोगी दल फिलहाल राजनीतिक रूप से कमजोर पड़ चुके हैं. ऐसे माहौल में तृणमूल कांग्रेस से अलग हुए हुमायूं कबीर खुद को एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करने की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि उनका प्रभाव अभी सीमित इलाकों तक सिमटा हुआ है, लेकिन अगर उन्हें असदुद्दीन ओवैसी और पीरजादा जैसे नेताओं का समर्थन मिलता है तो कई सीटों पर चुनावी समीकरण बिगड़ सकते हैं. इससे मुकाबला और दिलचस्प होने के आसार बनते दिख रहे हैं.
क्या मुस्लिम नेताओं की एकता ममता को करेगी परेशान
हाल के दिनों में बिहार में मिली सफलता ने यह संकेत दिया है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को मुस्लिम मतदाताओं के बीच धीरे-धीरे स्वीकार्यता मिलने लगी है. वहीं, इंडिया सेकुलर फ्रंट ने पिछले विधानसभा चुनाव में सीट जीतकर अपनी राजनीतिक मौजूदगी दर्ज कराई थी. मौजूदा हालात में अगर ये तीनों प्रमुख मुस्लिम चेहरे एक साझा मंच पर आते हैं, तो समुदाय के भीतर उनकी पकड़ और मजबूत हो सकती है. इससे राज्य की राजनीति में नया समीकरण उभरने की संभावना बन सकती है. साथ ही यह गठजोड़ पारंपरिक वोट बैंक की दिशा को भी प्रभावित कर सकता है.
ममता को कैसे हो सकता है नुकसान?
जानकारी देते चलें कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी लगभग 30% है. हुमायूं कबीर जिस तरह राज्य की राजनीतिक हवा को बदलने की कोशिश कर रहे हैं, अगर उन्हें मुस्लिम मतदाताओं में किसी हद तक ध्रुवीकरण करने में सफलता मिलती है, तो यह ममता बनर्जी के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है. इस स्थिति का फायदा सीधे बीजेपी को मिल सकता है, जो चुनावी रणनीति को नई दिशा देने के लिए तैयार बैठी है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हुमायूं कबीर की चाल के चलते कुछ सीटों पर परंपरागत वोट बैंक में बदलाव भी देखने को मिल सकता है.
बीजेपी की झोंक रही पूरी ताकत
बीजेपी ने राज्य में कई चुनौतियों के बावजूद अपना विस्तार कायम रखा है और उसके विधायक लगातार मैदान में सक्रिय हैं. केंद्रीय नेतृत्व ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि वह अधिक आक्रामक रुख अपनाएगा और ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ाने की रणनीति पर काम करेगा. पिछली बार पार्टी अपने बूथ प्रबंधन में कमजोर पाई गई थी, इसलिए इस बार पूरा जोर स्थानीय स्तर पर मजबूत नेटवर्क और संगठन पर लगाया गया है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी की यह रणनीति छोटे और मध्यम कस्बों में भी असर दिखा सकती है और चुनावी मुकाबले को और रोचक बना सकती है.
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बताते चलें कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच राजनीति गर्म होती जा रही है. ममता बनर्जी के लिए सत्ता बचाना चुनौती बन चुकी है, वहीं बीजेपी मजबूत बूथ प्रबंधन और आक्रामक रणनीति से सत्ता पर कब्जा करने को तैयार है. पार्टी से अलग हुए हुमायूं कबीर मुस्लिम मतदाताओं में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं और ओवैसी व पीरजादा का समर्थन मिलने पर कई सीटों पर समीकरण बदल सकते हैं. मुस्लिम आबादी पर असर ममता को नुकसान पहुँचा सकता है और बीजेपी को फायदा दे सकता है.
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