राम भक्तों पर गोली चलाने वाले क्या जानें दीपोत्सव? करोड़ों सनातनियों ने अखिलेश यादव पर बोला हमला, सोशल मीडिया पर छिड़ी जंग
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा दिए गए बयान से आहत करोड़ों सनातनियों ने सोशल मीडिया पर जमकर निंदा की है. लोगों ने कहा है कि रामभक्तों पर गोली चलाने वाले क्या जानें दीपोत्सव का महत्व? इसके अलावा कई लोगों ने अखिलेश को आईना दिखाते हुए कहा कि सपा के हाथ रामभक्तों के खून से रंगे हुए हैं. ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम के अलावा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों ने कहा कि अखिलेश यादव की सनातन विरोधी मानसिकता का एक नया सबूत देखने को मिला है.
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सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा दीपावली पर दीयों और मोमबत्तियों पर किए गए खर्च को फिजूलखर्ची बताने पर सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हो रही है. लोगों ने कहा है कि सपा प्रमुख ने फिर से सनातन विरोध का सबूत पेश किया है. बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दीपावली की तुलना क्रिसमस त्योहार से करते हुए कहा था कि पूरी दुनिया में क्रिसमस के दौरान शहर महीनों तक जगमगाते रहते हैं, हमें उनसे सीखना चाहिए. हमें दीयों और मोमबत्तियों पर इतना पैसा खर्च नहीं करना चाहिए. उनके बयान के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और तमाम साधु-संतों के अलावा करोड़ों सनातनियों ने हमला बोला है.
क्या है पूरा मामला?
बता दें कि सपा प्रमुख ने अयोध्या के दीपोत्सव कार्यक्रम पर निशाना साधते हुए कहा है कि 'पूरी दुनिया में क्रिसमस के दौरान शहर महीनों तक जगमगाते रहते हैं, हमें उनसे सीखना चाहिए. हमें दीयों और मोमबत्तियों पर इतना पैसा खर्च नहीं करना चाहिए.' अखिलेश यादव के इस बयान के बाद भयंकर बवाल मच गया.
सपा प्रमुख करोड़ो सनातनियों के निशाने पर
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा दिए गए बयान से आहत करोड़ों सनातनियों ने सोशल मीडिया पर जमकर निंदा की है. लोगों ने कहा है कि 'रामभक्तों पर गोली चलाने वाले क्या जानें दीपोत्सव का महत्व?' इसके अलावा कई लोगों ने अखिलेश को आईना दिखाते हुए कहा कि 'सपा के हाथ रामभक्तों के खून से रंगे हुए हैं.' ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम के अलावा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों ने कहा कि 'अखिलेश यादव की सनातन विरोधी मानसिकता का एक नया सबूत देखने को मिला है.'
'अखिलेश का बयान धार्मिक-सांस्कृतिक भावनाओं का अपमान'
सोशल मीडिया पर सपा प्रमुख की जमकर आलोचना हो रही है. उनके इस बयान को धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं के अपमान से जोड़कर बताया गया है. बड़ी संख्या में लोगों ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा कि 'समाजवादी पार्टी के मूल में ही सनातन विरोध है. वोटबैंक और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण इस पार्टी के वैचारिकी का आधार है. इनका डीएनए सनातन विरोधी है.'
'सपा के हाथ राम भक्तों के खून से रंगे हुए हैं'
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने कहा कि 'सपा के हाथ रामभक्तों के खून से रंगे हुए हैं. मुलायम सिंह यादव हों या अखिलेश यादव अथवा पार्टी के अन्य नेता, इनके बयान और निर्णय अक्सर धार्मिक भावनाओं के विपरीत रहे हैं.' लोगों का कहना है कि यह केवल एक बयान नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी की नीति और राजनीतिक सोच का हिस्सा है.
'कई बार सनातन परंपराओं का अपमान किया'
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह पहली बार नहीं है कि अखिलेश यादव ने सनातन परंपराओं और धार्मिक प्रतीकों पर इस तरह की विवादित टिप्पणी की है. इससे पहले भी उन्होंने कई बार सनातन परंपराओं और धार्मिक प्रतीकों को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की है. इससे पूर्व उन्होंने कहा था कि 'हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो, पीपल के नीचे लाल झंडा लगा दो, तो मंदिर बन जाता है.' इसी तरह उन्होंने मठाधीशों और माफियाओं की तुलना करते हुए कहा था कि 'मठाधीश और माफिया में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता.' जाहिर है, ऐसे बयान समाजवादी मानसिकता और धर्म के प्रति दृष्टिकोण को उजागर करते हैं.
'कब्रिस्तान की बाउंड्री पर करोड़ों खर्च और कांवड़ यात्रा पर रोक'
अखिलेश यादव के बयान से मचे बवाल के बाद लोगों ने सपा शासनकाल पर भी सवाल उठाए. कई लोगों ने कहा कि 'सपा के प्रशासनिक फैसलों ने भी कई बार विवाद खड़ा किया है. इनमें कब्रिस्तानों की बाउंड्री पर करोड़ों रुपए खर्च करना, कांवड़ यात्रा पर रोक लगाना और राममंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से दूरी बनाए रखने का फैसला सपा के अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और सनातन विरोधी होने का प्रमाण है.'
'अखिलेश यादव का बयान वोट बैंक की राजनीति'
राजनीतिक विश्लेषकों ने अखिलेश यादव के बयान को धर्म या संस्कृति पर की गई टिप्पणी से नहीं जोड़ा, बल्कि उसे वोटबैंक की राजनीति और रणनीति से जोड़कर बताया है. बीजेपी जहां धर्म और आस्था को अपने वैचारिक आधार के रूप में प्रस्तुत करती है, वहीं सपा बार-बार ऐसे बयान देती दिखती है, जो परंपरागत प्रतीकों से टकराते हैं.
'अपने पिता की राजनीतिक शैली से बढ़कर कर रहे राजनीति'
कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 'अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक शैली से आगे बढ़ते हुए अब खुलकर ऐसी राजनीति कर रहे हैं, जिसमें धार्मिक प्रतीकों और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ टकराव को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. उनके फैसले और बयान न केवल राजनीतिक बहस का विषय बनते हैं, बल्कि समाज और सांस्कृतिक संवेदनाओं में भी हलचल पैदा करते हैं. उनके द्वारा क्रिसमस-दीया विवाद केवल एक बयान तक सीमित नहीं है. यह समाजवादी राजनीति और सनातन प्रतीकों के बीच वर्षों से चल रहे वैचारिक और सांस्कृतिक टकराव का नया अध्याय है.' राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि इसके प्रभाव और चर्चा लंबे समय तक बनी रहेगी.
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