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‘पत्नी प्रेग्नेंसी को ढाल नहीं बना सकती…’ मानसिक क्रूरता के शिकार पति को तलाक की इजाजत, दिल्ली हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पति की तलाक याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि पति क्रूरता साबित नहीं कर सका.

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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक मामले की सुनवाई करते हुए एक शख्स को पत्नी की क्रूरता का पीड़ित माना है. कोर्ट ने शख्स को तलाक की इजाजत देते हुए कहा, पत्नी प्रेग्नेंट है सिर्फ इसलिए पति पर उसकी प्रताड़ना को जायज नहीं ठहराया जा सकता. 

केस की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस रेणु भटनागर की बेंच ने की. जिसमें बेंच ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पति की तलाक याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि पति क्रूरता साबित नहीं कर सका. अब मामला हाईकोर्ट पहुंचा और फैसला पति के पक्ष में रहा. 

दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा? 

दो जजों की बेंच ने कहा, पत्नी की प्रेग्नेंसी को पति पर हुई क्रूरता के खिलाफ ढाल नहीं बनाया जा सकता है. कोर्ट ने माना कि पत्नी के व्यवहार से पति ने मानसिक प्रताड़ना झेली और इससे वैवाहिक संबंध भी पूरी तरह टूट गए. कोर्ट ने ये भी कहा कि साल 2019 की शुरुआत में पत्नी का मिसकैरेज यह दिखाता है कि रिश्ते सामान्य थे. कोर्ट ने साफ कहा कि यह तय करने के लिए कि किसी के साथ क्रूरता हुई या नहीं, पूरे रिश्ते और सारी घटनाओं को देखा जाता है. 

क्या है मामला? 

दरअसल, मार्च साल 2016 में एक कपल में शादी के बाद लगातार झगड़े हो रहे थे. 5 साल बाद बात तलाक तक पहुंच गई. साल 2021 में पति ने पत्नी के खिलाफ क्रूरता का हवाला देते हुए तलाक की अर्जी दायर कर दी.  पति ने कोर्ट को बताया कि पत्नी ने उसे और उसकी मां को लगातार अपमानित किया. इसके अलावा वह खुद को नुकसान पहुंचाने की धमकियां भी देती थी और साथ रहने से इनकार करती थी. पत्नी कई बार बिना घर छोड़ चुकी है. 

पत्नी ने क्या आरोप लगाए? 

दूसरी ओर पत्नी ने भी ससुराल और पति पर दहेज उत्पीड़न और घर से निकाले जाने का आरोप लगाया था. इसके बाद मामला फैमिली कोर्ट में पहुंचा लेकिन यहां पति को तलाक की इजाजत नहीं मिली. 

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दिल्ली हाईकोर्ट ने पति को तलाक की मंजूरी देते हुए कहा, बीच-बीच में कुछ समय के लिए सुलह होना या पत्नी का प्रेग्नेंट होना, ये बातें पहले हुए बुरे बर्ताव का खत्म नहीं करती. खासकर जब रिकॉर्ड में बाद में भी धमकियों और गलत व्यवहार के सबूत हों. मौजूदा रिकॉर्ड से साबित होता है कि दोनों के बीच वैवाहिक रिश्ते टूट चुके हैं. कोर्ट ने माना कि ये सभी व्यवहार मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आते हैं. शादी का खत्म होना किसी की जीत या हार नहीं होती. इसका मतलब सिर्फ इतना है कि रिश्ता ऐसी हालत में पहुंच चुका है कि उसे अब ठीक नहीं किया जा सकता. हालांकि बेंच ने तलाक की इजाजत के साथ मेंटेनेंस जैसी शर्तें भी रखीं. कोर्ट ने कहा, आगे चलकर भले ही मेंटेनेंस या दूसरे मुद्दों पर बातें हों लेकिन इस दौरान दोनों पक्षों को शालीनता और सम्मान बनाए रखना चाहिए. 

 

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