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मीथेन गैस लीक से काँपा भोपाल! 1 किलोमीटर एरिया सील, रातभर चला रेस्क्यू

भोपाल से सटे मंडीदीप इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित GAIL प्लांट से मीथेन गैस के रिसाव ने एक बार फिर चार दशक पुरानी भोपाल गैस त्रासदी की यादें ताज़ा कर दीं। मंगलवार-बुधवार की रात अचानक हुए इस गैस लीक के कारण पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। जिला प्रशासन ने तुरंत रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर 1 किलोमीटर के दायरे को सील कर दिया।

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24 Apr 2025
( Updated: 11 Dec 2025
04:50 AM )
मीथेन गैस लीक से काँपा भोपाल! 1 किलोमीटर एरिया सील, रातभर चला रेस्क्यू
40 साल पहले की वो भयावह रात आज भी लोगों के जहन में जिंदा है, जब भोपाल गैस त्रासदी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था. और अब एक बार फिर वही डर, वही अफरातफरी, वही सांसों में घुलता ज़हर भोपाल के पास मंडीदीप इंडस्ट्रियल एरिया में दोहराया गया. मंगलवार-बुधवार की दरम्यानी रात GAIL (गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) के एक प्लांट से जहरीली मीथेन गैस का रिसाव हो गया, जिसने पूरे इलाके में अफरा-तफरी मचा दी.

प्लांट से उठती अदृश्य और गंधहीन गैस की परतों ने जैसे पूरे शहर को अपनी गिरफ्त में लेने की कोशिश की. लोगों को कुछ समझ नहीं आया कि अचानक हवा में सांस लेना मुश्किल क्यों हो गया है. देखते ही देखते इलाके में हड़कंप मच गया, और प्रशासन हरकत में आया. यह कोई छोटी मोटी लीकेज नहीं थी, बल्कि लेवल-3 गैस रिसाव की घटना थी — यानी बेहद खतरनाक और जानलेवा.

कैसे हुआ गैस रिसाव?

यह घटना रात के लगभग 12 बजे शुरू हुई. मंडीदीप के साइलेंट शिफ्ट में काम कर रहे कर्मचारियों को अचानक एक अजीब-सा दबाव महसूस हुआ. हालांकि मीथेन गैस रंगहीन और गंधहीन होती है, लेकिन उसकी मात्रा जैसे-जैसे हवा में बढ़ी, लोगों को सिर दर्द, आंखों में जलन और घबराहट होने लगी.

कुछ ही देर में फायर ब्रिगेड की टीम को सूचना मिली और आनन-फानन में नगर पालिका मंडीदीप की टीम को भी मौके पर बुला लिया गया. यह समझने में देर नहीं लगी कि LNG को PNG में कन्वर्ट करने वाले प्लांट में गंभीर लीकेज हो चुका है, और स्थिति काबू से बाहर हो सकती है.

10 घंटे तक चला रेस्क्यू ऑपरेशन

इस गैस रिसाव को कंट्रोल करने में प्रशासन की फायर सेफ्टी टीम और प्लांट ऑपरेटर्स को करीब 10 घंटे लग गए. रिसाव के बाद तुरंत आसपास की फैक्ट्रियों को बंद करवा दिया गया और एक किलोमीटर के दायरे को खाली करा दिया गया. 200 मीटर के दायरे में सभी इंडस्ट्रियल यूनिट्स पूरी तरह सील कर दी गईं.

सड़कें बंद कर दी गईं, ट्रैफिक डायवर्ट किया गया. सतलापुर और मंडीदीप पुलिस को मौके पर तैनात किया गया ताकि कोई भी आम नागरिक उस क्षेत्र में न जा सके. NDRF और SDER की टीमें भी राहत और बचाव कार्य में जुट गईं. हालात इतने गंभीर थे कि जयपुर से स्पेशल GAIL सेफ्टी टीम को रातों-रात बुलाना पड़ा, जो अब लीकेज की जांच करेगी और पूरे प्लांट का सेफ्टी ऑडिट करेगी.

सुबह तक नहीं थमा रिसाव

बुधवार सुबह करीब 10 बजे जाकर रिसाव को पूरी तरह बंद किया जा सका. तब तक हवा में फैली गैस लोगों के जहन में खौफ का जहर घोल चुकी थी. गेल के प्रोजेक्ट मैनेजर डी. डोंगरे ने मीडिया को बताया कि अब हालात पूरी तरह नियंत्रण में हैं. फिलहाल गैस प्रोडक्शन बंद कर दिया गया है और लीकेज के कारणों की जांच की जा रही है. जिला कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा ने प्लांट का मुआयना किया और सख्त निर्देश दिए कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हो इसके लिए नई सेफ्टी SOPs बनाई जाएंगी. साथ ही प्लांट का संपूर्ण सेफ्टी ऑडिट कराने का आदेश दिया गया है.

GAIL प्लांट में क्या होता है काम?

इस प्लांट में LNG (Liquefied Natural Gas) को PNG (Piped Natural Gas) में बदला जाता है. यहीं से आसपास के इलाकों – घरों और फैक्ट्रियों – को पाइपलाइन के जरिये गैस सप्लाई होती है. यानी यह प्लांट सिर्फ एक इंडस्ट्रियल यूनिट नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों की रसोई से लेकर फैक्ट्री के बॉयलर तक सबकी धड़कन है.

लेकिन सवाल ये है कि क्या इतनी महत्वपूर्ण यूनिट में सुरक्षा के मापदंड पूरे हैं? क्योंकि यह पहली बार नहीं है जब इस प्लांट से गैस लीक हुई हो. दो साल पहले भी एक बड़ा रिसाव हुआ था, जिसमें लोगों को आंखों में जलन, घबराहट और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत हुई थी.

क्यों खतरनाक होती है मीथेन गैस?
मीथेन गैस बेहद ज्वलनशील होती है. ये एक रंगहीन और गंधहीन गैस है, जो लीकेज के समय बेहद खतरनाक बन जाती है. इसकी एक चिंगारी से आग लग सकती है. यही नहीं, अगर वातावरण में इसकी मात्रा बढ़ जाए तो यह ऑक्सीजन की मात्रा को घटा देती है, जिससे सांस लेने में कठिनाई और घातक स्थिति बन सकती है.

मंडीदीप इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल ने इस घटना को "लेवल-3" की गंभीरता का बताया है. हालांकि समय रहते गैस सप्लाई को बंद कर दिया गया और फायर टीम की तत्परता से बड़ा हादसा टल गया. इस पूरी घटना ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि भले ही तकनीक कितनी भी एडवांस क्यों न हो, अगर सेफ्टी प्रोसेस कमजोर हैं तो खतरा हमेशा बना रहेगा. जिस तरह से दो साल में दो बार गैस लीकेज की घटना हुई है, उससे यह तय है कि सिस्टम में कहीं न कहीं बड़ी चूक है.

भोपाल के पास हुआ यह गैस रिसाव हादसा चाहे जितना छोटा दिखे, लेकिन उसने एक बार फिर 1984 की याद दिला दी. इस बार जान-माल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन अगली बार इतनी किस्मत सबकी नहीं हो सकती. जरूरी है कि हम तकनीक पर जितना भरोसा करते हैं, उससे ज़्यादा सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान दें.

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