शिव, शव और श्मशान, जानें अघोरी बनने के लिए किन कठिन परीक्षाओं से गुजरते हैं साधु?
अघोरी साधु भगवान शिव को अपना आदर्श मानते हैं और उनकी आराधना में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। इन साधुओं का जीवन श्मशान, शव और तंत्र साधनाओं से जुड़ा होता है। अघोरी बनने के लिए तीन कठिन परीक्षाएं होती हैं।

महाकुंभ, भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का सबसे बड़ा पर्व है, जहां लाखों साधु-संत और श्रद्धालु अपनी धार्मिक आस्था को सशक्त करने के लिए एकत्रित होते हैं। लेकिन इस मेले में जो सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करते हैं, वे हैं अघोरी साधु। इनकी रहस्यमयी साधना, विचित्र जीवनशैली और तंत्र साधना के प्रति समर्पण इन्हें अन्य साधुओं से अलग बनाता है।
अघोरी साधु भगवान शिव के अनुयायी होते हैं, जिन्हें अघोर का प्रणेता माना जाता है। अघोरी अपने साधनों से सिद्धियां प्राप्त कर जनकल्याण के कार्य करते हैं। हालांकि, अघोरी बनना आसान नहीं होता। इसके लिए तीन कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, जिसमें जीवन और मृत्यु का दांव लगता है। आज हम आपको अघोरी बनने की इस रहस्यमयी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताएंगे।
अघोर पंथ का दर्शन
अघोर का शाब्दिक अर्थ है "जो घोर नहीं है," अर्थात सरल और सौम्य। हालांकि, अघोरी साधु दिखने में विचित्र और डरावने लगते हैं, लेकिन उनके मन में सरलता और निर्मलता होती है। अघोर पंथ का मूल दर्शन है सभी के प्रति समान दृष्टि रखना और संसार के हर रूप को स्वीकार करना। इनका उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और समाज का कल्याण है। अघोरी साधु श्मशान में साधना करते हैं और शिव तथा शव को एक मानते हैं। ये मानते हैं कि शिव ही अंतिम सत्य हैं और श्मशान जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक है। इनकी साधना में शव साधना, तंत्र साधना और अघोर मंत्र शामिल होते हैं।
अघोरी बनने की प्रक्रिया
पहली परीक्षा हिरित दीक्षा, अघोरी बनने की प्रक्रिया गुरु के चरणों में समर्पण से शुरू होती है। सबसे पहले, व्यक्ति को एक योग्य गुरु की तलाश करनी पड़ती है। गुरु जब शिष्य को स्वीकार करते हैं, तो उसे हिरित दीक्षा दी जाती है। इस दीक्षा के तहत गुरु शिष्य को एक बीज मंत्र देते हैं, जिसे साधक को निरंतर जपना होता है। यह मंत्र अघोर साधना का आधार होता है और शिष्य के मन, आत्मा और शरीर को तैयार करता है। इस चरण में गुरु की हर आज्ञा शिष्य के लिए अंतिम होती है।
दूसरी परीक्षा शिरित दीक्षा, हिरित दीक्षा के बाद शिष्य को अगली परीक्षा देनी होती है, जिसे शिरित दीक्षा कहा जाता है। इस चरण में गुरु शिष्य को कुछ खास नियमों का पालन करने का आदेश देते हैं।
गुरु शिष्य के शरीर पर काले धागे बांधते हैं और उसे नियमों का पालन करने की शपथ दिलाते हैं। इन नियमों का पालन शिष्य के धैर्य और आत्मानुशासन की परीक्षा होती है। अगर शिष्य इन नियमों को तोड़ता है, तो वह अघोरी बनने की प्रक्रिया से बाहर हो जाता है।
तीसरी परीक्षा रंभत दीक्षा, अघोरी बनने की अंतिम और सबसे कठिन परीक्षा है रंभत दीक्षा। यह चरण शिष्य के लिए जीवन और मृत्यु का दांव बन जाता है।
गुरु शिष्य को अपना जीवन और मृत्यु दोनों सौंपने का आदेश देते हैं। इस दीक्षा के दौरान शिष्य को श्मशान में साधना करनी होती है, जहां उसे शव साधना, तंत्र साधना और अन्य गूढ़ विधियों का अभ्यास करना पड़ता है।
गुरु के आदेश पर, शिष्य को हर कठिन परिस्थिति का सामना करना होता है। अगर वह इस परीक्षा में सफल होता है, तो गुरु उसे अघोर पंथ के रहस्यों और सिद्धियों में दीक्षित करते हैं।
अघोरियों की साधना के रहस्य
अघोरी साधु की साधना का मुख्य स्थान श्मशान होता है। ये भगवान शिव की साधना में लीन रहते हैं और तंत्र साधनाओं का अभ्यास करते हैं। इनकी साधना में शव साधना महत्वपूर्ण है, जिसमें वे शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं। इनकी तांत्रिक साधना के लिए कामाख्या पीठ, उज्जैन का चक्रतीर्थ और त्र्यम्बकेश्वर जैसे स्थान प्रमुख हैं। अघोरी साधु तंत्र साधना से कई सिद्धियां प्राप्त करते हैं, जिनका उपयोग समाज के कल्याण के लिए किया जाता है।
महाकुंभ में अघोरी साधु हर किसी का ध्यान खींचते हैं। उनकी विचित्र वेशभूषा, भस्म से सना शरीर, और गूढ़ साधना उन्हें रहस्यमय और आकर्षक बनाती है। महाकुंभ 2025 में अघोरी साधु फिर से इस पर्व के केंद्र बिंदु होंगे। इनकी साधना और कठिन तपस्या केवल आत्मशुद्धि के लिए नहीं, बल्कि समाज के प्रति उनकी सेवा भावना को दर्शाती है। अघोर पंथ के ये साधक हमें सिखाते हैं कि सच्चा अध्यात्म आत्मा की गहराई में जाकर दुनिया के हर रूप को स्वीकार करना है।
अघोरी बनना केवल एक साधना नहीं, बल्कि जीवन का पूरा त्याग और समर्पण है। यह पथ जितना कठिन और रहस्यमय है, उतना ही गूढ़ और आकर्षक भी। महाकुंभ 2025 में इन अघोरी साधुओं की झलक पाना न केवल एक आध्यात्मिक अनुभव होगा, बल्कि शिव की अनंत महिमा का प्रमाण भी।
अघोरी साधुओं का जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिन साधनाओं के माध्यम से आत्मा को शुद्ध कर, हर प्राणी को समान दृष्टि से देखा जा सकता है।