पूजा-पाठ के बाद आखिर क्यों ईश्वर से क्षमायाचना मांगना होता है जरूरी? जानें मंत्र और वजह
अक्सर आपने देखा होगा कि जब कोई व्यक्ति पूजा-पाठ करता है तो ईश्वर से अपनी गलतियों की क्षमा ज़रूर मांगता है. लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है? क्या पूजा के बाद भगवान से गलतियों की माफी मांगना ज़रूरी होता है? क्षमा याचना के लिए किस ख़ास मंत्र का जाप करना चाहिए? आइए विस्तार से जानते हैं…
Follow Us:
सनातन धर्म में किसी भी देवी-देवता की पूजा में मंत्रों को बहुत महत्व दिया गया है. पूजा की हर क्रिया जैसे प्रार्थना, स्नान, ध्यान, भोग आदि के लिए अलग-अलग मंत्र बनाए गए हैं. इन्हीं में से एक है क्षमायाचना मंत्र भी. कहा जाता है कि पूजा के अंत में जब हम भगवान से अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा मांगते हैं, तभी वह पूजा पूरी मानी जाती है.
पूजा के अंत में क्यों मांगी जाती है क्षमायाचना?
अक्सर पूजा करते समय जाने-अनजाने हमसे कई गलतियां हो जाती हैं, जैसे कभी उच्चारण में गलती, कभी विधि में कोई कमी या कभी ध्यान कहीं और चला जाता है. इसलिए पूरी पूजा हो जाने के बाद हम भगवान से क्षमायाचना करते हैं. इसके लिए एक खास मंत्र भी है. जिसका आप ईश्वर से क्षमा मांगने के लिए पूजा के अंत में उच्चारण कर सकते हैं.
पूजा के अंत में करें इस मंत्र का जाप!
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्.
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन.
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे॥
इस मंत्र का क्या अर्थ है?
इस मंत्र का अर्थ है कि हे प्रभु, मुझे न तो आपको बुलाना आता है, न ही सही तरह से पूजा करना. मैं आपकी आराधना की विधि नहीं जानता. मैं मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन इंसान हूं. मेरे द्वारा की गई पूजा को स्वीकार करें. यदि इस दौरान मुझसे कोई गलती हुई हो तो मुझे क्षमा करें.
पूजा के अंत में क्षमा मांगने से क्या होता है?
ऐसा करने के पीछे का उद्देश्य साफ है कि जब भी हम भगवान की पूजा करते हैं तो हमसे जाने-अनजाने में कोई न कोई कमी या भूल-चूक हो जाती है. इसलिए हमें पूजा के बाद भगवान से क्षमायाचना जरूर करनी चाहिए. जीवन में जब भी हमसे कोई गलती हो, तो हमें तुरंत क्षमा मांग लेनी चाहिए, चाहे वह भगवान से हो या किसी इंसान से. क्षमा मांगने से अहंकार खत्म होता है और रिश्तों में प्रेम व अपनापन बना रहता है. यही सच्ची भक्ति और मानवता का मूल है. इसलिए पूजा के अंत में जब हम भगवान से क्षमा याचना करते हैं. यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि विनम्रता और आत्मचिंतन का प्रतीक भी है.
Advertisement
यह भी पढ़ें
Advertisement