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आखिर क्यों काशी के महाश्मशान में इन 5 लाशों को नही जलाया जाता है ? नाविक ने खोले राज

मोक्ष नगरी कही जाने वाली काशी में, जहां रोजाना सैकड़ों लाशें जलाई जाती हैं, वहां इन पांच तरह की लाशों को जलाने पर पाबंदी है. इन लाशों को श्मशान घाट से ही वापस लौटा दिया जाता है.

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14 Apr 2025
( Updated: 10 Dec 2025
07:59 AM )
आखिर क्यों काशी के महाश्मशान में इन 5 लाशों को नही जलाया जाता है ?  नाविक ने खोले राज

धर्म नगरी काशी, जिसे महादेव की नगरी कहा जाता है, जिसे भगवान शिव ने भगवान विष्णु से अपने निवास के लिए माँगा था. यहां मरने के लिए लोग तरसते हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति का भी इस पावन धरा पर अंतिम संस्कार होता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है लेकिन काशी का एक ऐसा रहस्य भी है जो आपके होश उड़ा देगा. काशी का मणिकर्णिका घाट एक ऐसा घाट है जहां मौत का सिलसिला कभी रुकता नहीं है. यहां दिन में सैकड़ों लाशें जलाई जाती हैं. इस घाट की रौनक जलती चिताओं से होती है. यहां चिताओं का जलना कभी बंद नहीं होता क्योंकि इस घाट का संबंध मां पार्वती से है.

मान्यता है कि एक बार माँ पार्वती के कान का कुंडल इस घाट पर गिर गया, जो बहुत खोजने पर भी नहीं मिला। इस पर माँ पार्वती इतनी क्रोधित हो गईं कि उन्होंने इस स्थान को श्राप दे दिया कि अगर मेरा कुंडल नहीं मिला, तो यह स्थान हमेशा जलता रहेगा। तब से लेकर आज तक, साल के 12 महीने, हफ्ते के 7 दिन और दिन के 24 घंटे, यहां चिताएं जलती ही रहती हैं। यह घाट इतना रहस्यमय है कि यहां नरवधुएं अपने जीवन से मुक्त होने के लिए जलती चिताओं के बीच नाचती हैं। अघोरी यहाँ चिताओं की राख से होली खेलते हैं। इस घाट में कई ऐसे रहस्य छिपे हैं जिन्हें शायद ही कोई जानता हो — जैसे कि एक नाविक ने बताया कि काशी में इन 5 तरह के लोगों की लाशें नहीं जलाई जातीं  


1. साधु  काशी में साधुओं की लाशों को जलाने पर पाबंदी है। उन्हें या तो जल समाधि दी जाती है या फिर थल समाधि। सरल भाषा में कहें तो साधुओं की लाशों को या तो पानी में बहा दिया जाता है या जमीन में दफनाया जाता है। 


2. 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे काशी में 12 साल से कम उम्र के बच्चों की लाशें नहीं जलाई जातीं। उन्हें भगवान का स्वरूप माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार भी, छोटे बच्चों के शवों को जलाना वर्जित है। 


3. सांप के ज़हर से मरा व्यक्ति 

जो व्यक्ति साँप के काटने से मरता है, उसे भी नहीं जलाया जाता। मान्यता है कि साँप के ज़हर से मरे व्यक्ति का मस्तिष्क 21 दिनों तक जीवित रहता है। इसलिए, शव को केले के तने में लपेटकर पानी में बहा दिया जाता है। यह भी मान्यता है कि अगर किसी तांत्रिक की नज़र ऐसी लाश पर पड़ जाए, तो वो उसे जीवित कर अपना गुलाम बना सकता है। 


4. गर्भवती महिलाएं काशी में गर्भवती महिलाओं की लाशें भी काशी में नहीं जलाई जातीं। नाविक के अनुसार, यदि गर्भवती महिला की चिता जलाई जाए, तो पेट फट सकता है और अंदर पल रहा बच्चा हवा में ऊपर उठ सकता है, जो दृश्य बेहद भयावह होगा। इसलिए, उन्हें नहीं जलाया जाता।

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5. चर्म रोग से पीड़ित व्यक्ति  काशी में चर्म रोग से पीड़ित व्यक्ति की लाश को जलाना मना है। इस बारें में नाविक का कहना है कि ऐसे शरीर को जलाने से बैक्टीरिया हवा में फैल सकते हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। इसलिए, ऐसी लाशों को भी नहीं जलाया जाता। 

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