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महादेव का ऐसा धाम जहां पूजा में तुलसी दल वर्जित नहीं, यहां विराजते हैं ज्योतिर्लिंगों के राजा

ओडिशा का लिंगराज मंदिर, जहां शिव और विष्णु एक ही रूप में पूजे जाते हैं, और तुलसी अर्पण करना शुभ माना जाता है. यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है, जहां महादेव को तुलसी दल अर्पित किया जाता है.

16 Jul, 2025
( Updated: 16 Jul, 2025
05:22 PM )
महादेव का ऐसा धाम जहां पूजा में तुलसी दल वर्जित नहीं, यहां विराजते हैं ज्योतिर्लिंगों के राजा

सावन का पावन महीना चल रहा है. ऐसे में देवों के देव महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए शिवालयों में भक्तों की रोज लंबी कतार लग रही है. वहीं, शिव के प्रमुख धाम जिन्हें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है, यहां पहुंचने वाले शिवभक्तों की संख्या में भी खासी वृद्धि देखी जा रही है. ऐसे में इस पावन महीने में हम आपको शिव के एक ऐसे धाम के बारे में बताएंगे जिन्हें ज्योतिर्लिंगों के राजा के रूप में पूजा जाता है. इसके साथ ही यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है, जहां महादेव को तुलसी दल अर्पित किया जाता है. 

शिव पूजा और तुलसी – परंपरा क्या कहती है?

हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा में तुलसी दल को वर्जित माना गया है. क्योंकि तुलसी माता को भगवान विष्णु की पत्नी माना गया है, इसलिए आम मान्यता यह है कि शिवलिंग पर तुलसी चढ़ाना निषिद्ध है. लेकिन इस मान्यता से परे, भारत में कुछ ऐसे मंदिर हैं जो इस परंपरा को तोड़ते हैं. 

जहां नियम नहीं, भक्ति है सर्वोपरि

भगवान शिव की पूजा से जुड़े कई नियम भारतीय परंपरा में देखे जाते हैं. एक प्रमुख नियम यह है कि शिवलिंग पर तुलसी दल चढ़ाना वर्जित माना जाता है, क्योंकि तुलसी देवी को भगवान विष्णु की पत्नी माना गया है. लेकिन ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित भगवान लिंगराज का मंदिर इस नियम से बिल्कुल अलग है. 

भगवान लिंगराज – शिव और विष्णु का अद्वितीय स्वरूप

लिंगराज शब्द का अर्थ है "लिंगम के राजा", जो द्वादश ज्योतिर्लिंग के राजा हैं. ऐसे में ज्योतिर्लिंग के राजा के रूप में यहां इनकी पूजा भी होती है. इस मंदिर का प्रांगण इतना विशाल है कि इसमें छोटे-बड़े 150 मंदिर हैं. लिंगराज मंदिर के इस विशाल प्रांगण में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के मंदिर के साथ ही भगवान शिव के कुल 108 मंदिर स्थित हैं. लिंगराज मंदिर के शिवलिंग को “हरिहर” कहा जाता है — यह भगवान शिव और विष्णु दोनों का संयुक्त रूप है. इसी कारण इस मंदिर में तुलसी दल चढ़ाना वर्जित नहीं, बल्कि विशेष रूप से स्वीकार किया जाता है. यह मंदिर आस्था, समरसता और परंपरा की अनूठी मिसाल है. 

कहां स्थित है यह चमत्कारी मंदिर?

भगवान लिंगराज का मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है. यह मंदिर 11वीं शताब्दी में कलिंग स्थापत्य शैली में निर्मित किया गया था. यहां भगवान शिव को 'त्रिभुवनेश्वर' यानी तीनों लोकों के स्वामी कहा जाता है, और इसी नाम पर शहर का नाम भी "भुवनेश्वर" पड़ा. मंदिर में लिंगराज के रूप में विराजित स्वयंभू शिवलिंग का आकार बेहद खास है. इसका व्यास 8 फुट और ऊंचाई 8 इंच है। इस मंदिर में गैर हिंदुओं का गर्भगृह में प्रवेश वर्जित है। इस भव्य प्राचीन संरचना की झलक पाने हेतु परिसर के बाहर एक मंच बनाया गया है. 

तुलसी दल चढ़ाने की मान्यता और विशेषता

यह भारत का एकमात्र प्रमुख शिव मंदिर है जहां तुलसी दल चढ़ाया जाता है और उसे दोषयुक्त नहीं माना जाता. क्योंकि यहां शिवलिंग में विष्णु तत्व भी मौजूद है, इसलिए तुलसी – जो विष्णु को प्रिय है – यहां पूजन सामग्री का हिस्सा बन जाती है. भक्त विशेष मनोकामनाओं के लिए तुलसी दल चढ़ाते हैं और मानते हैं कि भगवान लिंगराज उन्हें शीघ्र प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. 

भक्तों की अटूट श्रद्धा – मिलता है चमत्कारी लाभ

लिंगराज मंदिर में पूजा करने वाले भक्तों का मानना है कि यहां तुलसी दल अर्पित करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है, रोग व संकटों से मुक्ति मिलती है और संतान व विवाह संबंधी इच्छाएं पूर्ण होती हैं. यह मंदिर शिव और विष्णु दोनों भक्तों के लिए विशेष आध्यात्मिक केंद्र है. 

आस्था का धाम, परंपरा से परे एक चमत्कार

ओडिशा का भगवान लिंगराज मंदिर एक ऐसा दिव्य स्थान है जहां शिव और विष्णु की आराधना एक साथ होती है, जहां तुलसी जैसी विष्णु प्रिय वस्तु शिवलिंग पर अर्पित की जाती है — और उसे भक्ति का सर्वोच्च रूप माना जाता है. यह धाम सिखाता है कि जब श्रद्धा सच्ची हो, तो हर नियम ईश्वर की इच्छा से छोटा पड़ जाता है. 

लिंगराज मंदिर के पास प्रसिद्ध मुक्तेश्वर मंदिर, राजरानी मंदिर, अनंत वासुदेव मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर और परशुरामेश्वर मंदिर स्थित हैं. ये सभी मंदिर हिंदू धर्म के लिए पवित्र हैं और अपनी मनमोहक वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं. लिंगराज मंदिर की ऊंचाई 180 फीट है, जो भगवान जगन्नाथ के मंदिर से भी ज्यादा ऊंचा है. इसे 1984 से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है. 

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