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मकर संक्रांति 2025: इस दिन से क्यों रातें छोटी और बड़े हो जाते हैं दिन, जानें क्या है इसके पीछे वैज्ञानिक पक्ष ?

14 जनवरी 2025 को सुबह 9:03 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। मकर संक्रांति के साथ ही सूर्य के उत्तरायण होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

मकर संक्रांति 2025: इस दिन से क्यों रातें छोटी और बड़े हो जाते हैं दिन, जानें क्या है इसके पीछे वैज्ञानिक पक्ष ?
मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से समान रूप से अहम माना जाता है। हर साल मकर संक्रांति तब मनाई जाती है, जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है। यह दिन न केवल धार्मिक अनुष्ठानों और परंपराओं से जुड़ा है, बल्कि इसमें खगोलीय घटनाओं और मौसम परिवर्तन का भी गहरा प्रभाव है।
इस साल कब है मकर संक्रांति?
पंचांग के अनुसार, इस साल सूर्य 14 जनवरी 2025 को सुबह 9:03 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। मकर संक्रांति के साथ ही सूर्य के उत्तरायण होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसका मतलब यह है कि अब से दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगेंगे और रातें छोटी होने लगेंगी।

मकर संक्रांति को "उत्तरायण" की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। उत्तरायण का मतलब है कि सूर्य अब धरती के उत्तरी गोलार्द्ध की ओर बढ़ना शुरू करता है। इस बदलाव को पवित्र और शुभ माना गया है। महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए उत्तरायण के शुभ काल का इंतजार किया था। यह पर्व पुण्य अर्जित करने का भी अवसर माना जाता है। इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने और दान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। लोग तिल, गुड़ और खिचड़ी का भोग लगाकर इसे भगवान विष्णु और सूर्य देव को अर्पित करते हैं।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक पक्ष
मकर संक्रांति केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक खगोलीय घटना भी है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है। इसी झुकाव और परिक्रमा के कारण पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध पर सूर्य की किरणों का झुकाव बदलता रहता है।

जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तो पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुकने लगता है। इस झुकाव के कारण सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्द्ध पर अधिक सीधी पड़ती हैं, जिससे दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। इस खगोलीय प्रक्रिया को उत्तरायण कहते हैं।
दिन बड़े और रातें छोटी क्यों होती हैं?
जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध पर सूर्य का झुकाव बढ़ जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि उत्तरी गोलार्द्ध पर सूर्य की रोशनी अधिक समय तक बनी रहती है। वहीं, दक्षिणी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं, जिससे वहां दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं। यह प्रक्रिया सालभर चलती रहती है और जून तक दिन लंबे और रातें छोटी होती रहती हैं।

मकर संक्रांति पर पूरे भारत में विभिन्न प्रकार की परंपराएं निभाई जाती हैं। उत्तर भारत में गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है। तिल-गुड़ और खिचड़ी खाने की परंपरा है। गुजरात में पतंग उड़ाने का त्योहार "उत्तरायण" के नाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में लोग तिल-गुड़ बांटकर "तिल गुड़ घ्या, गोड गोड बोला" कहते हैं। बंगाल में गंगा सागर मेले का आयोजन होता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति का दिन भगवान विष्णु द्वारा असुरों पर विजय प्राप्त करने और उनकी समाप्ति के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर शांति स्थापित की थी। अगर आप मकर संक्रांति के शुभ फल चाहते हैं, तो इस दिन गंगा स्नान, दान और तिल-गुड़ के सेवन की परंपरा को निभाएं। भगवान सूर्य की पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप करें। यह दिन सकारात्मक ऊर्जा और नई शुरुआत का प्रतीक है, जिसे पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

मकर संक्रांति न केवल त्योहार है, बल्कि यह प्रकृति के बदलते स्वरूप और जीवन के सकारात्मक बदलावों का संदेश भी है। यह हमें सिखाता है कि हर अंधकार के बाद उजाला आता है और हर रात के बाद एक नई सुबह।

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