Whirlpool India में बड़ा सौदा तय! 1 अरब डॉलर में बदलने जा रहा मालिकाना हक
व्हर्लपूल भारत में 1980 के दशक के अंत में आई थी और यह शुरुआती मल्टीनेशनल ब्रांड्स में से एक थी। लेकिन इसके बावजूद, कंपनी LG, सैमसंग और वोल्टास जैसे ब्रांड्स से पीछे रह गई.हालांकि यह प्रीमियम सेगमेंट में एक भरोसेमंद नाम है, लेकिन बड़े पैमाने पर भारतीय ग्राहकों के बीच इसकी पकड़ उतनी मजबूत नहीं बन पाई जितनी उम्मीद थी.
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भारत के घरेलू उपकरणों के बाजार से एक बड़ी खबर सामने आई है. अमेरिकी कंपनी व्हर्लपूल (Whirlpool) अब अपने भारतीय कारोबार की बड़ी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है. खबरों के मुताबिक, अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म एडवेंट इंटरनेशनल (Advent International) व्हर्लपूल ऑफ इंडिया में कंट्रोलिंग स्टेक यानी नियंत्रण वाली हिस्सेदारी खरीदने जा रही है. यह सौदा करीब 1 अरब डॉलर (लगभग 9,682 करोड़ रुपये) का हो सकता है. दोनों कंपनियों के बीच बातचीत अंतिम दौर में है और इस महीने के अंत तक इस पर फैसला हो सकता है. यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब कई विदेशी कंपनियां भारत में अपने कारोबार को घटा रही हैं.
क्यों बेच रही है व्हर्लपूल अपनी हिस्सेदारी?
लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर इतनी बड़ी और पुरानी कंपनी भारत में अपनी हिस्सेदारी क्यों बेच रही है? इसका जवाब उसकी अमेरिकी पैरेंट कंपनी की मुश्किलों में छिपा है. व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन को 2022 के आखिर में 1.5 अरब डॉलर का बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था. इसके बाद कंपनी ने अपनी रणनीति बदलने का फैसला किया. अब वह अपना पूरा ध्यान अमेरिका जैसे घरेलू बाजारों पर लगाना चाहती है और ऐसे उत्पादों पर फोकस करना चाहती है जिनसे ज्यादा मुनाफा जैसे ब्लेंडर, कॉफी मेकर वगैरह. इस रणनीति को लागू करने और कर्ज घटाने के लिए कंपनी को पैसों की जरूरत है. इसलिए भारत में हिस्सेदारी बेचकर पूंजी जुटाने की तैयारी की जा रही है. इससे पहले, कंपनी फरवरी 2024 में 24.7% हिस्सेदारी पहले ही बेच चुकी है. अब उसका प्लान है कि वह भारत में अपनी हिस्सेदारी घटाकर सिर्फ 20% तक कर दे.
एडवेंट इंटरनेशनल के हाथों में जाएगी कमान
इस डील के लिए शुरू में कई कंपनियां रेस में थीं, जैसे बेन कैपिटल (Bain Capital) और ईक्यूटी (EQT). लेकिन अब एडवेंट इंटरनेशनल ही इस सौदे की दौड़ में बचा है. सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल व्हर्लपूल और एडवेंट के बीच डील एक्सक्लूसिविटी की शर्त तय हुई है, यानी इस दौरान व्हर्लपूल किसी और खरीदार से बात नहीं करेगा. योजना के अनुसार, एडवेंट पहले 31% हिस्सेदारी खरीदेगा. इसके बाद SEBI के नियमों के तहत, उसे बाकी 26% हिस्सेदारी के लिए ओपन ऑफर लाना होगा. अगर यह ओपन ऑफर पूरा सफल रहता है, तो एडवेंट के पास व्हर्लपूल इंडिया की 57% हिस्सेदारी हो जाएगी और कंपनी का पूरा नियंत्रण उसी के हाथ में आ जाएगा.
एडवेंट के लिए नया नहीं है भारतीय बाजार
एडवेंट इंटरनेशनल भारतीय बाजार में पहले से सक्रिय है. उसने पहले क्रॉम्पटन ग्रीव्ज (Crompton Greaves) और यूरेका फोर्ब्स (Eureka Forbes) जैसी कंपनियों में निवेश किया है. दिलचस्प बात यह है कि पहले एडवेंट की व्हर्लपूल में दिलचस्पी थोड़ी कम हो गई थी, लेकिन हाल में यह फिर से बढ़ गई. इसकी वजह है कि व्हर्लपूल इंडिया ने अपनी अमेरिकी पैरेंट कंपनी के साथ लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स किए हैं, जैसे 30 सालों तक ‘Whirlpool’ ब्रांड नाम का इस्तेमाल करने की अनुमति और 10 साल का टेक्नोलॉजी लाइसेंस एग्रीमेंट. इससे एडवेंट को भरोसा मिला कि अगर अमेरिकी कंपनी भविष्य में अपनी बाकी हिस्सेदारी भी बेच दे, तब भी भारत में व्हर्लपूल का कारोबार बिना किसी दिक्कत के चलता रहेगा.
भारत में क्यों नहीं चला व्हर्लपूल का जादू?
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व्हर्लपूल भारत में 1980 के दशक के अंत में आई थी और यह शुरुआती मल्टीनेशनल ब्रांड्स में से एक थी. लेकिन इसके बावजूद, कंपनी LG, सैमसंग और वोल्टास जैसे ब्रांड्स से पीछे रह गई.हालांकि यह प्रीमियम सेगमेंट में एक भरोसेमंद नाम है, लेकिन बड़े पैमाने पर भारतीय ग्राहकों के बीच इसकी पकड़ उतनी मजबूत नहीं बन पाई जितनी उम्मीद थी.अब एडवेंट के आने से उम्मीद की जा रही है कि व्हर्लपूल इंडिया को नए निवेश, आधुनिक तकनीक और आक्रामक मार्केटिंग से एक नई दिशा मिलेगी.
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