Being Ghumakkad को मिले ईश्वरा महादेव में अदृश्य शक्ति के सबूत | कैसी थी ये खतरनाक यात्रा?
दूर-दूर तक फैली पहाड़गढ़ की पहाड़ियां साफ-साफ नज़र आ रही थीं। लेकिन यहां तक पहुंचने से पहले हम अंजान थे कि ईश्वरा महादेव जाने में कितने कठिन रास्तों से होकर गुज़रना होगा। इसका पहला ट्रेलर कुछ ही दूरी पर मिल गया, जब एक नदी को पार कर दूसरी तरफ़ जाना था। हम खुशकिस्मत थे जो इन दिनों पानी की रफ्तार उतनी ज्यादा नहीं थी।
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ईश्वरा महादेव : घुमक्कड़ी की किसी भी कहानी को गढ़कर आप तक पहुंचाना आसान नहीं होता | खतरनाक रास्तों से गुजरना पड़ता है। जान हथेली पर लेकर चलना पड़ता है | पहाड़, नदियां, बीहड़, दलदल के सफर को आसमानी आफत के बीच चुनना पड़ता है | तब जाकर पूरा होता है Being Ghumakkad का एक अद्भुत, अविश्वसनीय एपिसोड।
तो, चलिए बीहड़ में बसे ईश्वरा महादेव के दरबार। वहां जाने से पहले अभी सिर्फ इतना भर कहेंगे कि Being Ghumakkad की टीम ऐसे हैरतअंगेज़ और धुकधुकी बढ़ा देने वाले रास्तों पर आज से पहले कभी नहीं गई। जैसे बाक़ी राहगीर यहां रास्ता भटक जाते हैं, हम भी इस बियाबान में खो जाते।अगर स्थानीय Ghumakkad और मुरैना के Reporters की टीम हमारे साथ न होती तो शायद हम कभी अपने गंतव्य यानी ईश्वरा महादेव तक पहुंच नहीं पाते। वही ईश्वरा महादेव जहां के लिए लोग कहते हैं कि ब्रह्ममुहूर्त में कोई आता है और शिव का पूजन करके चला जाता है। वो इंसान है या कोई मायावी शक्ति, कोई नहीं जानता।
ईश्वरा महादेव तक का खतरनाक सफर
दूर-दूर तक फैली पहाड़गढ़ की पहाड़ियां साफ-साफ नज़र आ रही थीं। लेकिन यहां तक पहुंचने से पहले हम अंजान थे कि ईश्वरा महादेव जाने में कितने कठिन रास्तों से होकर गुज़रना होगा। इसका पहला ट्रेलर कुछ ही दूरी पर मिल गया, जब एक नदी को पार कर दूसरी तरफ़ जाना था। हम खुशकिस्मत थे जो इन दिनों पानी की रफ्तार उतनी ज्यादा नहीं थी।
आगे ऊंचाई पर चढ़ने के बाद दूर-दूर तक पसरे सन्नाटे की मारक़ता समझी जा सकती थी। कंटीली झाड़ियों के अलावा कहीं कुछ नज़र नहीं आ रहा था, सिवाय डामरी रोड के। कुछ किलोमीटर खामोशी का ये कारवां हमारे साथ-साथ चलता रहा। Being Ghumakkad की टीम अभी मुश्किल से पांच से सात किलोमीटर चली होगी, तभी सहयोगी घुम्मकड़ों ने कहा- ‘हमारी छोटी कार है आगे नहीं जा सकती। इसलिए हमें आपकी कार में बैठना होगा।’
बात ऐसी थी कि आगे का रास्ता कच्चा, दलदली और पानी से भरा था। ऊपर से इस बात का भी अंदाज़ा नहीं था कि जाना तो जाना किस तरफ़ है। फिर भी जैसा हमारे सहयोगी घुमक्कड़ बताते रहे, मजबूत और दमदार कार के पहिए हर बाधा को नेस्तनाबूद करके आगे बढ़ते गए। इस दौरान बारिश पल-पल हमारा इम्तिहान लेने को आमादा थी। शायद इंद्रदेव को पता था कि ईश्वरा महादेव के दर्शन करना इतना आसान नहीं। आखिरकार दो घंटे के सफर के बाद हमें मंज़िल नज़दीक आने का आभास हो गया।
कहते हैं इस रहस्य को सदियों से आज तक कोई नहीं सुलझा सका। जिसने भी कोशिश की, उसे नाक़ामी ही मिली। फिर भी एक उम्मीद दिल में पाले Being Ghumakkad की टीम सीढ़ियों से होते हुए पहाड़ की तलहटी पर बसे महादेव के मंदिर की ओर बढ़ चली। कुछ ही पलों में सामने थे ईश्वरा महादेव। जिनका पहाड़ की कंदराओं से गिरता पानी हर दम जलाभिषेक करता है। मुख्य शिवलिंग एक गुफानुमा स्थान पर बना है। बाहर भी एक शिवलिंग है जिस पर अंदर की अपेक्षा ज्यादा पानी गिरता दिखाई देता है।
दूर-दूर से लोग मंदिर में उस अदृश्य शक्ति को महसूस करने के लिए पहुंचते हैं, जो सुबह-सुबह शिव का पूजन करके चला जाता है। पूजन भी ऐसा वैसा नहीं बेलपत्र, चंदन और चावल से। कहा जाता है इसी पहाड़ी पर मौज़ूद 3, 5, 7, 11 और 21 मुखी बेलपत्र से शिव की पूजा की जाती है।
ईश्वरा महादेव की सेवा में कई सालों से पुजारी रघुवर दास जी जुटे हैं। उन्होंने Being Ghumakkad को बताया साल भर तो वो अदृश्य शक्ति ब्रह्ममुहूर्त में पूजा करके नहीं जाती, लेकिन सावन के महीने में चमत्कार ज़रूर होता है। वो खुद इन घटनाओं के साक्षी रहे हैं। इस रहस्य से पर्दा उठाने की कई कोशिशों को उन्होंने नाकाम होते हुए देखा है।
ऐसा नहीं कि ब्रह्ममुहूर्त में शिवलिंग की पूजा का रहस्य मौज़ूदा वक्त में ही जन-मानस के बीच चर्चा का विषय बना है। राजा-महाराजाओं के वक्त से यहां के किस्से-कहानियां सुने-सुनाए जाते रहे हैं। कहा जाता है - ‘एक बार किसी शख्स ने पूजा का रहस्य जानने के लिए शिवलिंग के ऊपर ब्रह्ममुहूर्त में हाथ रख दिया, तभी तेज़ हवा चली जिससे उस शख्स का हाथ कुछ देर के लिए शिवलिंग से हट गया। इस दौरान वो अदृ्श्य ताकत शिवलिंग का पूजन करके गायब हो गई। कहा तो ये भी जाता है जिसने ये कदम उठाया वो कोढ़ी हो गया।’
वैसे तो ईश्वरा महादेव के दर्शनों को दूर-दूर से भक्त आते हैं। सावन के महीने में यहां ज्यादा भीड़ रहती है। भक्त शिवलिंग का जलाभिषेक करने का संकल्प लेकर यहां पहुंचते हैं। कई जगह से कांवर लेकर भी लोग यहां आते हैं।
मनोकामनाओं के अलावा ईश्वरा महादेव में एक जलकुंड है, जहां पहाड़ की कंदराओं से निकला पानी निरंतर बना रहता है। लोग इस कुंड के पानी को काफी पवित्र मानते हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में उन साधु का समाधि स्थल भी है, जिन्होंने ईश्वरा महादेव का सच कई सौ साल पहले दुनिया के सामने रखा।
अब तक ईश्वरा महादेव से जुड़ी कई नई और अनसुनी बातें पता चल चुकी थीं। हमारी यात्रा लगभग पूरी हो चुकी थी। तभी यहां के लोगों ने हमें बताया मंदिर की दूसरी तरफ पहाड़ी से बहुत बड़ा और खूबसूरत झरना नीचे गिरता है। कहने भर की देर थी, Being Ghumakkad की टीम उसी ओर बढ़ चली। कुछ ही देर में झरने का विहंगम दृश्य भी नज़र आ गया। फिल्म बाहुबली में आपने इस तरह की मिलती-जुलती लोकेशन देखी होंगी। ये झरना बरसात के पीक में बाहुबली वाले झरने से कम अद्भुत नज़र नहीं आता। पहाड़गढ़ के चप्पे-चप्पे पर ऐसा ही प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा हुआ है। बड़े-बड़े शहरों से लोग यहां एक पंथ दो काज करने आते हैं। मतलब ये कि पिकनिक के साथ-साथ ईश्वरा महादेव के दर्शन। अब वापसी का वक्त हो रहा था, सूर्यदेव विदा ले चुके थे। ऐसे में बियाबान में ज्यादा देर तक रुकना खतरे से खाली नहीं था। आखिरकार, एक बार फिर उसी बेहद दुर्गम रास्तों से होते हुए Being Ghumkakkad की टीम ग्वालियर में अपने होटल की तरफ लौट चली।
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