बीकानेर के करणी माता मंदिर में रहते हैं 25000 चूहे !
ये ऐसा मंदिर है जो हज़ारों रहस्य खुद में समेटे हुए है। करणी माता का नाम लेते ही सबसे पहले चूहों का अक्स आंखों के सामने उभर आता है। चूहों का मातारानी से क्या संबंध है। देवी के चमत्कारों की क्या कहानियां हैं। मंदिर में 25 हज़ार से ज्यादा चूहे कैसे आए? साइंस ने भी इस मंदिर के आगे सरेंडर क्यों कर दिया?
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करणी माता मंदिर के रहस्यों से वैज्ञानिक और तर्कशास्त्री भी हैरान रह जाते हैं। करणी माता मंदिर की यात्रा पर Being Ghumakkad की टीम बीकानेर से क्या निकली, मौसम पल-पल आंख मिचौली खेलने लगा। कभी सूरज बादलों के बीच छिपता, तो कभी चुपके से निकल आता। 45 मिनट में हम बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक पहुंच गए। यहां बाहर से ही पता चल गया हम एक भव्य और दिव्य मंदिर की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं। मंदिर के ऊपर मातारानी का ध्वज लहराता नज़र आता है, मंदिर के शिखर की शोभा बढ़ाता हुआ त्रिशूल भी दूर से ही दिखाई देता है।ये ऐसा मंदिर है जो हज़ारों रहस्य खुद में समेटे हुए है। करणी माता का नाम लेते ही सबसे पहले चूहों का अक्स आंखों के सामने उभर आता है। चूहों का मातारानी से क्या संबंध है। देवी के चमत्कारों की क्या कहानियां हैं। मंदिर में 25 हज़ार से ज्यादा चूहे कैसे आए? साइंस ने भी इस मंदिर के आगे सरेंडर क्यों कर दिया?
हम मंदिर के द्वार से आगे बढ़े ही थे कि बाहर पूजा सामग्री की दुकानें सजी-धजी मिल गईं। यहीं पर Being Ghumakkad को बेहद ज़रूरी बात पता चली। हमें एक दुकानदार ने बताया कि मंदिर परिसर में हज़ारों चूहे होने के बावजूद भी चूहे कभी उनकी दुकान को नुकसान नहीं पहुंचाते। चूहों को लेकर यहां लोगों में एक अजीबोगरीब आकर्षण दिखाई देता है।
करणी माता के मंदिर में हज़ारों चूहों से प्रसाद और पकवानों का भोग लगाया जाता है। बाद में इसी प्रसाद को मंदिर आए श्रद्धालुओं में बांटा जाता है। हैरानी की बात ये है कि आज तक चूहों के चखे प्रसाद से न किसी तरह की बीमारी फैली, न ही कोई भक्त बीमार पड़ा। एक बात यहां श्रद्धालुओं को और चौंकाती है सभी के सभी चूहे लगभग एक जैसे आकार के दिखाई देते हैं |
करणी माता मंदिर में चूहों को लेकर क्या मान्यता है?
चूहों को लेकर यहां इतनी मान्यता क्यों है? यहां मन्नत के धागे हैं, जिन्हें दूर-दूर से आए श्रद्धालु यूंही बांधकर चले जाते हैं। यहां से जाते हुए मन की मुराद मांगते हैं और मंदिर परिसर में जहां-कहीं भी चूहे दिख जाते हैं उन्हें दाना डालते हैं। इस मंदिर को दुनिया भर में मूषक मंदिर के रूप में भी ख्याति प्राप्त है। विश्वास जताया जाता है कि देवी करणी माता दुर्गा का अवतार हैं। जो यहां आकर दर्शन करने वाले भक्तों के मन की हर मुराद को पूरा कर देती हैं। इसलिए हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने लाखों भक्त दूर-दूर से बीकानेर आते हैं और करणी माता के दर्शन करना नहीं भूलते।
यहां कतारबद्ध होकर करणी माता मंदिर में जाना पड़ता है। Being Ghumakkad की टीम अंदर पहुंची तो बहुत दिव्य मंदिर नज़र आया। मंदिर के दोनों तरफ देवी दुर्गा के वाहन सिंह विराज़मान हैं। दोनों ही शेरों की अलग-अलग भाव-भंगिमा है। एक घोर निद्रा में नज़र आता है, तो दूसरा जागा हुआ है। मंदिर का मुख्य द्वार चांदी से बहुत भव्य बना हुआ है। इसमें गज़ब की नक्काशी की गई है। हाथी, शेर और करणी मां का अक्स इसमें नक्काशी कर उभारा गया है।
सन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान बीकानेर के आस-पास करीब 3000 बम गिरे। पाकिस्तान ने यहां तांडव मचाने की हर चाल चली। लेकिन बीकानेर में एक भी बम नहीं फटा। बम को भी बेकार कर देने वाली शक्ति के पीछे यहां के लोग देवी करणी का आशीर्वाद मानते हैं।
करणी माता मंदिर में चूहों को 'काबा' क्यों कहा जाता है?
सृष्टि के सभी देवी देवताओं के देशनोक के इस पावन स्थान में आने की एक कहानी है। जो इसी द्वार के अंदर से गुजरने पर पता चलती है। यहां से अंदर बढ़ते ही जगह-जगह पर चूहे दिखाई देते हैं। कुछ दाना खाते हुए मिलते हैं, कुछ चांदी की थाल पर दूध पीते हुए नज़र आते हैं। हर घड़ी इधर-उधर सैकड़ों चूहे भागते मिल जाते हैं, इसलिए कदम संभल-संभलकर यहां बढ़ाने पड़ते हैं। इन चूहों को मंदिर से जुड़े लोग ‘काबा’ कहते हैं। इस नामकरण के पीछे क्या घटना है, वो जानने से पहले आपको करणी माता के बारे में जानना चाहिए।
माता करणी को दैवीय मानने से पहले उनका नाम रिधूबाई था। लेकिन बचपन में ही रिधू के चमत्कारों से अभीभूत होकर उनकी बुआ ने नाम बदलकर करणी रख दिया। करणी जी की शादी लौकिक रूप से देपाजी के साथ हुई, लेकिन कहा जाता है मां ने खुद को ब्रह्मचर्य व्रत में रखा और देपाजी की शादी अपनी छोटी बहन से करवा दी, जिसके बाद मां करणी देशनोक की एक गुफा में तपस्या में लीन हो गई।अभी भी सवाल ये था कि करणी माता से चूहों यानी ‘काबों’ का क्या रिश्ता है। जो प्रसाद भक्त लाते हैं, उसका भोग चूहों को लगवाकर वापस दे दिया जाता है।
गर्भगृह में स्थापित मूर्ति जैसलमेरी पीले पत्थर से बनाई हुई है। मूर्ति के सिर पर मुकुट, कानों में कुण्डल, एक हाथ में त्रिशूल जिसके नीचे महिष का सिर है। जबकि दूसरे हाथ में नरमुण्ड लटका है। यहां सुबह 5 बजे मंगला आरती और शाम 7 बजे सांझ आरती के समय चूहों का जुलूस देखने लायक होता है | गर्भगृह के अंदर भी हर जगह काबे नज़र आ जाते हैं। जगह-जगह इनके लिए भोग लगाने की व्यवस्था की गई है। जिनमें श्रद्धालु प्रसाद और दाना डालते हैं। कहा जाता है जीवन के 100 साल माता करणी इसी जगह पर रहीं। घोर साधना की, जीवन कल्याण के लिए तप किया।
अब उस सवाल का जवाब देने का वक्त आ गया है, जो हर कोई जानना चाहता है। सवाल वही कि चूहों यानी काबों से करणी माता का क्या रिश्ता है। तो इसका जवाब है चूहे मां करणी के बेटे हैं। काबों की मंदिर और उसके आस-पास रहने की भी मान्यता है। इस मान्यता को आज भी करणी माता के वंशज शिद्दत के साथ पूरा करते हैं। जिस दौरान करणी माता के वंशज हमसे बात कर रहे थे, उस दौरान काबों के साथ उनका प्यार देखते ही बन रहा था। काबे उनके शरीर में चढ़ उतर रहे थे, लेकिन उन्हें किसी बात की फिक्र नहीं थी। काबे उनके परिवार की सदस्य की तरह विचरण कर रहे थे।मान्यता है जिस किसी को सफेद काबा दिख जाता है उसका जीवन धन्य हो जाता है। उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है।
एक बार देश में प्लेग रोग फैला, तो हज़ारों लोग दूर-दूर से देशनोक के करणी माता मंदिर आ गए। लोगों का विश्वास था का कि माता करणी उनकी रक्षा करेंगी। चमत्कार देखिए, हर जगह फैलने के बावजूद इस इलाके में प्लेग छू भी नहीं सका, वो भी तब जब यहां हज़ारों की तादाद में चूहे मौजूद रहते हैं। ये वाकई चमत्कार है। दूर-दूर से आए भक्त चूहों का भोग लगाया प्रसाद ग्रहण करते हैं लेकिन आज तक कभी किसी के बीमार होने की शिकायत नहीं मिली, न ही प्लेग जैसा रोग फैला। यही नहीं, मंदिर परिसर में हज़ारों चूहे होने के बावजू़द कहीं से गंध नहीं आती, जिससे श्रद्धालुओं को तकलीफ हो।
अब मौज़ूदा मंदिर के निर्माण की बात जान लीजिए। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से इस स्थान पर करणी माता की पूजा होती आ रही है। मौज़ूदा मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराज गंगा सिंह ने राजूपत शैली में करवाया और जगह-जगह संगमरमर लगवाया। बीकानेर पहुंचकर कोई भी पर्यटक या श्रद्धालु देशनोक के करणी धाम आसानी से पहुंच सकता है। टैक्सी और बस बीकानेर से मिल जाते हैं। बीकानेर में अच्छे होटल, धर्मशालाओं समेत देशनोक में भी रुकने के लिए धर्मशाला की व्यवस्था है।
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