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जिसे कभी झूठा, मक्कार और आतंक परस्त कहा, अब उस PAK से पींगे क्यों बढ़ा रहे ट्रंप, नई दिल्ली से नाराजगी पड़ेगी भारी?

डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में पाकिस्तान को झूठा, मक्कार, धोखेबाज और आतंकियों का पनाहगार तक कहा था, अब उसी पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ ट्रंप की प्राइवेट लंच मीटिंग और अमेरिकी अधिकारियों से उनकी प्रस्तावित मुलाकातें कई सवाल खड़े करती हैं. बड़ा सवाल ये कि आखिर उनकी क्या मजबूरी है? क्या ट्रंप इस्लामाबाद को खुश करने के लिए नई दिल्ली को नाराज़ करेंगे?

Created By: केशव झा
18 Jun, 2025
( Updated: 19 Jun, 2025
09:34 AM )
जिसे कभी झूठा, मक्कार और आतंक परस्त कहा, अब उस PAK से पींगे क्यों बढ़ा रहे ट्रंप, नई दिल्ली से नाराजगी पड़ेगी भारी?

साल 2018, महीना जनवरी, नए अमेरिकी राष्ट्रपति के ओवल ऑफिस में आए करीब एक साल हुए थे, डोनाल्ड ट्रंप ने अपेक्षा के अनुरूप ही दक्षिण एशिया को लेकर अपना पहला ट्वीट किया और आतंकवादियों के साथ पींगे बढ़ाने वाले ब्लैकमेलर पाकिस्तान पर तगड़ा निशाना साधा और कहा कि उसने अमेरिका के साथ वर्षों तक विश्वासघात किया. उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान ने अमेरिका को सालों तक मूर्ख बनाया और 15 वर्षों में करीब 33 अरब डॉलर से अधिक राशि ऐंठ लिए और US Administration ने मूर्खतापूर्वक उसकी मदद भी की, बदले में उसे छल, झूठ और सिर्फ धोखा ही मिला. 

ट्रंप का कुल मिलाकर ये कहना था कि पाकिस्तान ने वर्षों तक उन उन आतंकवादियों को पनाह दिया जिसे वो अफगानिस्तान में ढूंढ रहे थे. ट्रंप का ये बयान उस वक्त आया था जब काबुल में तालिबान का कब्जा नहीं हुआ था, अमेरिका लगातार तालिबानियों से लड़ाई कर रहा था. पाकिस्तान इस लड़ाई में अमेरिका का साथ देने का दिखावा कर रहा था और अंदर ही अंदर तालिबानियों को दूध पिला रहा था. इसी का हवाला देते हुए ट्रंप ने विभिन्न मद में दी जाने वाली सुरक्षा सहायता निलंबित कर दी थी और उस पर आतंकवादियों को शरण देने और अफगानिस्तान में अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाने की चार्जशीट पेश कर दी थी. ये ट्रंप का शुरूआती दौर था, ये उनका पहला कार्यकाल था.

ये तब के ट्रंप थे और अब के ट्रंप, जिनसे अपेक्षा थी कि वो पहले कार्यकाल के अधूरे वादों को पूरा करेंगे, जो बाकी रह गया था उसे खत्म करेंगे, लेकिन अब उनके एक्शन, नीति और सोच में बदलाव देखा जा रहा है. जिस पाकिस्तान पर उन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा देने और अमेरिकी हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया था, उसे वो अब अपना पार्टनर और साझेदार बता रहे हैं, ट्रेड की अपेक्षा जता रहे हैं, भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौल रहे हैं. 

दरअसल हाल ही में अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTCOM) के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने पाकिस्तान को 'आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक असाधारण साझेदार' बताया. क्या अमेरिका भूल गया कि जिसे वो साझेदार बता रहे हैं वो वर्षों तक दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी को अपने यहां छिपाए रखा. जिस अलकायदा के चीफ ओसामा बिन लादेन को दुनिया की सारी एजेंसियां यहां-वहां खोज रही थीं वो पाक आर्मी के बेस के पास में ही एबोटाबाद में मिला था. क्या अमेरिका भूल गया कि पाकिस्तान कैसे न्यूक्लियर अंब्रेला के तहत अमेरिका और दुनिया को ब्लैकमेल करता आया है और हक्कानी नेटवर्क से लेकर TTA को पनाह देता रहा है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिस पाकिस्तान की सेना को कभी खुद अमेरिका ने आतंकियों को पनाह देने वाला बताया था, अब वही अमेरिका उस पाकिस्तानी फौज के साथ नरमी क्यों बरत रहा है? उसे भाव क्यों रहा है?

चीन से अधिक करीबी, इमरान खान के दौर में एंटी वेस्ट-एंटी और अमेरिका विरोधी नीति के कारण वॉशिंगटन और इस्लामाबाद के संबंधों में काफी तल्खी देखी गई लेकिन अब इस पर ठंडी फुहार पड़ रही है. कौन किसे पुचकार रहा है ये तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन एक बात तो तय है कि जो कहावत है कि 'अमेरिकी से न दोस्ती अच्छी न ही दुश्मनी! कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि अमेरिका से दोस्ती, दुश्मनी की तुलना में ज्यादा घातक है, ये बात नई दिल्ली को अच्छी तरह समझ आ रही है.'

खैर, खबर ये है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर, बुधवार को व्हाइट हाउस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से एक बंद कमरे में लंच पर मिलने वाले हैं. ये मुलाकात उस समय हो रही है जब ऑपरेशन सिंदूर में मार खाने के बाद पाकिस्तान अमेरिका के पास भारत की मार से बचाने की गुहार लगा रहा था, वहां चीन काम नही आया था. पाक की गुहार पर अमेरिका ने भारत से बात भी की थी जिसके बाद पाकिस्तानी पीएम शबहाज शरीफ अपने हर बयान में अमेरिका को थैंक्यू कह रहे थे कि उन्हें बचा लिया.

मुनीर, एक आर्मी चीफ होते हुए अमेरिका दौरे पर गए हैं और ट्रंप से वो ही मिलेंगे न कि शहबाज शरीफ. ये बताने के लिए काफी है कि पाकिस्तान में किसकी चलती है. ट्रंप और मुनीर के बीच यह निजी बैठक व्हाइट हाउस के कैबिनेट रूम में दोपहर 1 बजे (वॉशिंगटन समयानुसार) होगी, और मीडिया को इसमें शामिल होने की इजाजत नहीं दी गई है. ट्रंप के सार्वजनिक शेड्यूल के मुताबिक, ये मुलाकात पूरी तरह प्राइवेट रखी गई है.

रिपोर्ट्स के अनुसार, अपने अमेरिका दौरे के दौरान आसिम मुनीर की अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और रक्षा मंत्री पीट हेजसेथ से भी मुलाकात होने की संभावना है. बताया जा रहा है कि ये पांच दिन की आधिकारिक यात्रा है और इसका मकसद अमेरिका के साथ रणनीतिक रिश्तों को और मजबूत करना है.

दोनों के बीच इस मुलाकात के पीछे कई गहरे रणनीतिक कारण हैं, जो अमेरिका की बदलती विदेश नीति और क्षेत्रीय समीकरणों की ओर इशारा करते हैं. कहा जा रहा है कि ट्रंप, पाकिस्तान को भाव देने के बदले नई दिल्ली को ट्रेड टॉक्स और चीन के साथ लड़ाई के मोर्चे पर दबाव में लाना चाहते हैं. इसके अलावा माना जा रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान में एक नया सैन्य अड्डा बनाने पर विचार कर सकता है, जिससे उसे कई स्तरों पर फायदा हो सकता है. खासकर ऐसे समय में जब उसका दुश्मन ईरान, इज़रायल के साथ युद्ध की हालत में है.

ट्रंप ये बात अच्छे से समझते हैं कि पाकिस्तान जैसे देश में जो कर्ज के बोझ तले दबा है, गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, राजनीतिक अस्थिरता से घिरा है और जहां सरकार से लेकर सेना तक भ्रष्टाचार फैला हुआ है, वहां अपने हित साधना ज्यादा मुश्किल नहीं है.

ट्रंप का खाड़ी प्लान और पाकिस्तान की भूमिका
मिडिल ईस्ट इस वक्त जबरदस्त तनाव से गुजर रहा है. पाकिस्तान की इसमें भूमिका बढ़ जाती है. सैन्य अड्डों के लिहाज से नहीं बल्कि उसके अंदर मौजूद आतंकियों, कट्टरपंथियों और मुल्ला ताकतों को कंट्रोल में रखने को लेकर. अमेरिका कभी नहीं चाहेगा एक परमाणु ताकत से लैश मुल्क में मोर्चा खोलना. ज्ञात को कि ईरान के एक सैन्य जनरल ने कहा था कि अगर इजरायल ईरान पर परमाणु हमले करेगा तो पलटवार में पाकिस्तान तेलअवीव पर एटम बम मार देगा. उन्होंने ऐसा दावा बड़ी गंभीरता से किया था. हालांकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था. ट्रंप शायद इसी किसी मंशा को फिलहाल के लिए टालना चाहते हों.

अगर अमेरिका जंग में कूदा तो पाकिस्तान बनेगा मददगार!

जो इज़रायल अब तक सिर्फ हमास से लड़ रहा था, वो अब सीधे तौर पर ईरान के साथ भी जंग के मोर्चे पर है. इज़रायल के साथ न सिर्फ अमेरिका, बल्कि पूरा पश्चिमी जगत खड़ा है, और खुलकर कह रहा है कि किसी भी हालत में ईरान को परमाणु हथियार नहीं बनाने दिए जाएंगे.इस बीच कयास लग रहे हैं कि अमेरिका खुद भी इस युद्ध में सीधे कूद सकता है. एक तरफ उसका सबसे करीबी दोस्त इज़रायल है, और दूसरी तरफ उसका कट्टर दुश्मन ईरान. ऐसे में अगर पाकिस्तान में अमेरिका को सैन्य अड्डा मिल जाता है, तो वह ईरान की पूर्वी सरहद पर अपनी सीधी मौजूदगी दर्ज करा सकता है. ये पाकिस्तान के लिए आसान नहीं होगा. एक तो लड़ाई यहूदी बनाम मुसलमान देश ईरान है, दूसरी कि पाक में लंबे समय से अमेरिका विरोधी सोच पाई जाती है, ये अलग बात है कि उसके नेता और जनरल चुपके से अमेरिका के साथ गलबहियां करते नजर आते हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान ने यमन जंग में ऑफिशियल पोजीशन ली थी कि वो किसी जंग में नहीं कूदेगा. ऐसे में वो अपने यहां सैन्य अड्डा देता है तो इसका जमकर विरोध होगा. ऐसा पहले भी हुआ है, खुले तौर पर मुशर्रफ और उसके जनरल मिलिट्री बेस, अमेरिकी कार्रवाई का विरोध करते रहे बदले में उससे डॉलर भी लेते रहे. यहां तक की अड्डा देने का फैसला भी जनरल और आर्मी ने ही अमेरिका को दी थी.

पाकिस्तान में सैन्य बेस और ठिकाना मिलने से न सिर्फ उसे जमीन से खुफिया जानकारी इकट्ठा करने में मदद मिलेगी, बल्कि जरूरत पड़ने पर वह तुरंत सैन्य कार्रवाई कर पाएगा. 

काउंटरिंग चाइना
अमेरिका के लिए 'ओपन एंड फ्री' इंडो-पैसिफिक की अपनी नीति में सबसे बड़ा रोड़ा चीन को मानता है. अमेरिका मानता है कि चीन इस क्षेत्र में अपनी सैन्य और आर्थिक पकड़ बढ़ाकर बाकी देशों की आज़ादी और संप्रभुता को चुनौती दे रहा है. इसी खतरे को संतुलित करने के लिए ‘क्वाड’ जैसी रणनीतिक साझेदारियों की नींव रखी गई है. बाइडेन प्रशासन में इसे और मजबूती दी गई और इसे शिखर सम्मेलम तक ले जाया गया, लेकिन ट्रंप-2 में ऐसा लगा कि इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. अब ख़बर आई है कि ट्रंप ने क्वाड समिट के लिए भारत के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है, वो नई दिल्ली आएंगे. न चाहते हुए भी ट्रंप, भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की सदस्यता वाले संगठन, क्वाड को दरकिनार नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि ये चीन की दक्षिण चीन सागर में प्रसार और प्रभुत्व को काउंटर करने में सक्षम और जरूरी है.
चीन की 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI) योजना, और खासकर इसका सबसे अहम हिस्सा, चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC), जो ग्वादर बंदरगाह से होकर गुजरता है, ये अमेरिका के लिए चिंता का विषय है. अमेरिका नहीं चाहता कि पाकिस्तान पूरी तरह से चीन के असर में चला जाए.

ऐसे में अगर अमेरिका को पाकिस्तान में सैन्य उपस्थिति मिलती है, तो वो न सिर्फ चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती दे सकेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन भी बनाए रख सकेगा. ये कदम अमेरिका को ज़मीन और समुद्र दोनों पर चीन के खिलाफ रणनीतिक बढ़त देगा.

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