‘हमने इस देश को सब कुछ दिया…’, भारतीय मूल की महिला ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस को सुनाई सच्चाई, पूछा- अब दरवाजे बंद क्यों?
अमेरिका के मिसिसिपी विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान भारतीय मूल की महिला ने उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से ट्रंप सरकार की इमिग्रेशन नीति पर तीखे सवाल किए. महिला ने पूछा कि 'आपने हमें सपने दिखाए, मेहनत कराई और अब कह रहे हैं कि हमारे पास जगह नहीं बची?' महिला के सवालों पर दर्शकों ने तालियां बजाईं, जबकि वेंस ने कहा, 'हम किसी ड्रामे के करीब भी नहीं हैं,' और इमिग्रेशन पर स्पष्ट जवाब देने से बचते रहे.
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अमेरिका के University of Mississippi (मिसिसिपी) में आयोजित एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जेडी वेंस छात्रों से सीधे संवाद कर रहे थे. इस दौरान अचानक एक भारतीय मूल की महिला ने ट्रंप सरकार की कठोर इमिग्रेशन पॉलिसी के मुद्दे पर कई तीखे सवालों की बौछार कर दी. सवाल इतने महत्वपूर्ण थे कि वेंस को भी पलटकर जवाब देना पड़ा. अब इस बातचीत का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.
भारतीय महिला ने दागे तीखे सवाल
दरअसल, कार्यक्रम की शुरुआत में उपराष्ट्रपति वेंस ने कहा कि अमेरिका में कानूनी इमिग्रेशन (प्रवास) की संख्या वर्तमान स्तर से काफी कम होनी चाहिए. उन्होंने स्वीकार किया कि 'हमें समूची संख्या बहुत कम करनी होगी.' हालांकि उपराष्ट्रपति ने किसी सटीक संख्या के बारे में खुलकर जानकारी नहीं दी. लेकिन सवाल-जवाब के इस सत्र के दौरान जब भारतीय मूल की महिला ने बोलना शुरू किया, तो कार्यक्रम में मौजूद लोग एकदम शांत हो गए. महिला ने कहा, 'हमें अब ‘बहुत ज्यादा’ प्रवासी मिल रहे हैं? आपने हमें इस देश में अपनी जवानी और संपत्ति लगाने पर मजबूर किया, सपने दिखाए, और अब कह रहे हैं कि ‘हमारे पास अब पर्याप्त लोग हैं और हम उन्हें बाहर करेंगे’?' महिला ने आगे कहा कि 'आपकी पत्नी उषा हिंदू पृष्ठभूमि से हैं, आप एक अंतर-सांस्कृतिक परिवार में रहते हैं. तो क्या मुझे अमेरिका से प्यार साबित करने के लिए ईसाई बनना पड़ेगा?' यह सवाल वाकई में उस पूरी चर्चा को हिला कर रख गया.
जेडी वेंस ने दिया महिला के सवाल का जवाब
महिला के सवाल को सुनते ही कार्यक्रम में मौजूद लोगों की भीड़ ने जोरदार तालियां बजाईं. इस पर उन्होंने तुरंत सफाई दी और कहा कि उनका मकसद ड्रामा करना नहीं है. इस पर जेडी वेंस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, 'हम किसी ड्रामे के करीब भी नहीं हैं, चिंता न करें.' हालांकि इमिग्रेशन के मुद्दे पर उन्होंने स्पष्ट जवाब देने से परहेज किया और कहा, 'हम कानूनी तरीके से आए लोगों का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें भविष्य में बहुत कम इमिग्रेशन चाहिए, क्योंकि वर्तमान संख्या अमेरिका की सामाजिक संरचना को खतरा दे रही है.'
पत्नी उषा वेंस को लेकर कही बड़ी बात
वहीं, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपनी शादी और परिवार की पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए कहा, 'उषा हिंदू पृष्ठभूमि से हैं. हमारी शादी आपसी सम्मान पर आधारित है. मुझे उम्मीद है कि वह एक दिन ईसाई बन जाएंगी, लेकिन यह उनकी स्वतंत्र इच्छा पर निर्भर है. हमारे बच्चे ईसाई परवरिश पा रहे हैं. लेकिन अमेरिका से प्यार दिखाने के लिए किसी को धर्म परिवर्तन करने की जरूरत नहीं है. इसका मतलब है कि आप समावेश करें, योगदान दें और हमारी संस्कृति का सम्मान करें.'
क्यों यह बहस है इतनी महत्वपूर्ण
जेडी वेंस ने आगे अपने जवाब में यह स्पष्ट किया कि समस्या सिर्फ अवैध इमिग्रेशन की नहीं, बल्कि कानूनी इमिग्रेशन की संख्या भी अब 'बहुत अधिक' हो चुकी है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 1924-25 में अमेरिका ने सीमाएं बंद की थीं, और उसी नीति ने वह अमेरिका बनाया जिसे हम आज जानते हैं. उनका तर्क था कि अगर केवल इसलिए कि कुछ प्रवासी आए और उन्होंने योगदान दिया, तो क्या इसका मतलब यह होगा कि हम हर साल लाखों लोगों को आने देंगे? नहीं, यह उचित नहीं होगा.
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बताते चलें कि यह बहस इसलिए और भी अहम हो जाती है क्योंकि आज अमेरिका में प्रवासन नीति सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चिंताओं से गहराई से जुड़ी हुई है. वेंस का कहना था कि प्रवास ने श्रम बाजार, सामाजिक सुरक्षा प्रणाली और अमेरिका की साझा पहचान पर गहरा प्रभाव डाला है. हालाँकि महिला के सवाल ने इस संवेदनशील मुद्दे को व्यक्तिगत अनुभव से जोड़कर प्रस्तुत किया 'हमने खून-पसीना बहाया है.' इस तरह उन्होंने सिर्फ नीति-परिवर्तन की बात नहीं की, बल्कि प्रवासी समुदायों के मानसिक अनुभव को सामने रखा. यह घटना इस बात का संकेत है कि आज प्रवासी-संबंधित नीतियां सिर्फ संख्या का मामला नहीं हैं, बल्कि पहचान, सम्मान और आत्म-सम्मान का भी मामला हैं.
America consider a world leader, in development of America there is enough contribution of almost all citizens. In real sense there is no the Original American, all are migrated officially and unofficially. The unofficial and invited factor is hindrance in Pieace, Progress and Prosperity so it is essential to tackle them, the same is with EU countries also.