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ट्रंप को मिलेगा जोरदार जवाब, दिखेगी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की ताकत... डोभाल के रूस दौरे के बाद दिल्ली आ रहे चीनी विदेश मंत्री, जानें क्यों

चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18-19 अगस्त को दो दिवसीय भारत दौरे पर रहेंगे. विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की है. इस दौरान वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ सीमा विवाद पर 24वें दौर की विशेष प्रतिनिधि वार्ता करेंगे. इसके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर संग भी उनकी द्विपक्षीय बैठक होगी.

17 Aug, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
04:06 AM )
ट्रंप को मिलेगा जोरदार जवाब, दिखेगी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की ताकत... डोभाल के रूस दौरे के बाद दिल्ली आ रहे चीनी विदेश मंत्री, जानें क्यों
Source: X ( File Photo)

भारत और चीन के रिश्तों में नई हलचल देखने को मिल रही है. सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिशों के बीच चीन के विदेश मंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की पोलित ब्यूरो के सदस्य वांग यी सोमवार से दो दिवसीय भारत दौरे पर आ रहे हैं. विदेश मंत्रालय ने शनिवार को उनकी यात्रा की आधिकारिक पुष्टि की.

दरअसल, अमेरिका द्वारा भारत पर थोपे गए 50% टैरिफ के बीच चीन के विदेश मंत्री की यह यात्रा कई मायनों में खास है क्योंकि वांग यी दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात करेंगे. डोभाल और वांग यी सीमा विवाद पर भारत और चीन की ओर से नामित स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव्स (SRs) हैं. ऐसे में यह मुलाकात दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा तनाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है.

सीमा विवाद पर 24वां दौर की वार्ता

विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा कि डोभाल के निमंत्रण पर वांग यी 18 और 19 अगस्त को भारत आएंगे और इस दौरान सीमा विवाद पर विशेष प्रतिनिधियों के बीच 24वां दौर की वार्ता होगी. यह बातचीत सिर्फ सीमा मसले पर नहीं, बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों के अन्य मुद्दों पर भी दिशा तय कर सकती है. विदेशी मामलों के जानकारों की माने तो गलवान घाटी संघर्ष के बाद से भारत-चीन संबंधों में गहरी खाई आ गई है. हालांकि कई इलाकों से सैनिकों की वापसी हो चुकी है, लेकिन अभी भी 50 से 60 हजार सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तैनात हैं. ऐसे में यह वार्ता बेहद अहम होगी.

मोदी की संभावित चीन यात्रा से पहले बड़ा संकेत

वांग यी का दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस महीने के अंत में चीन यात्रा की संभावना जताई जा रही है. 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन होना है, जिसमें पीएम मोदी की भागीदारी तय मानी जा रही है. इससे पहले प्रधानमंत्री 29 अगस्त को जापान की यात्रा करेंगे. बीते साल अक्टूबर में रूस के कजान में प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद दोनों देशों ने संवाद की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने का फैसला किया था. इसके तहत NSA अजीत डोभाल दिसंबर 2024 और जून 2025 में चीन का दौरा कर चुके हैं. स्पष्ट है कि वांग यी का यह भारत दौरा पीएम मोदी की संभावित चीन यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार करने जैसा है.

तनाव कम करने की कोशिशें

भारत और चीन के रिश्ते साल 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद से काफी तनावपूर्ण रहे हैं. हालांकि दोनों देशों ने कई स्थानों से सैनिकों को हटाया है, लेकिन पूरी तरह विश्वास बहाली अभी बाकी है. इस बीच कुछ ऐसे कदमों पर भी चर्चा चल रही है जिनसे रिश्तों को सामान्य बनाने का रास्ता आसान हो सकता है. इनमें कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना, चीनी नागरिकों के लिए भारत का पर्यटक वीजा बहाल करना और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करना शामिल हैं. इस साल की शुरुआत में विदेश सचिव विक्रम मिस्री बीजिंग गए थे और उन्होंने इन मुद्दों पर बातचीत की थी. हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी चीन में आयोजित SCO बैठकों में भाग लिया था. इन मुलाकातों ने वार्ता की जमीन तैयार करने में अहम भूमिका निभाई है.

कूटनीतिक गतिविधियों का बढ़ता दायरा

दिल्ली में वांग यी की जयशंकर और डोभाल से मुलाकात सिर्फ सीमा विवाद तक सीमित नहीं होगी. इसमें व्यापार, निवेश, सांस्कृतिक संबंध और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा हो सकती है. खासकर ऐसे समय में जब एशिया में भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. विदेश मंत्री जयशंकर हाल ही में ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी से भी फोन पर बातचीत कर चुके हैं. इसमें यूक्रेन युद्ध और अमेरिका-रूस वार्ता जैसे बड़े मुद्दों पर चर्चा हुई. यह दिखाता है कि भारत अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखते हुए बहुपक्षीय वार्ताओं में सक्रिय है.

भारत-चीन रिश्तों की राह

पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के बीच अविश्वास की दीवार खड़ी हुई है. सीमा पर तनाव, आर्थिक प्रतिस्पर्धा और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बदलते समीकरण ने दोनों देशों को सतर्क कर दिया है. इसके बावजूद यह भी सच है कि भारत और चीन दोनों ही एशिया की बड़ी ताकतें हैं और आपसी सहयोग से ही भविष्य सुरक्षित और स्थिर हो सकता है. वांग यी की यात्रा इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है. यदि दिल्ली में होने वाली वार्ता में ठोस सहमति बनती है तो यह न केवल LAC पर तनाव कम करेगी बल्कि दोनों देशों के बीच विश्वास की नई शुरुआत भी कर सकती है. जो टैरिफ और ट्रेड की वार की धमकियों पर अपनी बातों को मनवाने के लिए दबाव बनाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को बड़ा झटका दे सकती है. 

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बताते चलें कि भारत और चीन के रिश्ते हमेशा उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं. लेकिन हर बार संवाद और कूटनीति ने तनाव को संभालने में मदद की है. इस बार भी उम्मीद की जा रही है कि वांग यी का भारत दौरा सकारात्मक माहौल बनाएगा और सीमा विवाद पर बातचीत को नई दिशा देगा. प्रधानमंत्री मोदी की संभावित चीन यात्रा और SCO शिखर सम्मेलन के मद्देनजर यह मुलाकात और भी अहम हो जाती है. अब देखना होगा कि क्या दोनों देश आपसी अविश्वास को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हैं या फिर वार्ता सिर्फ औपचारिकताओं तक सीमित रह जाएगी.

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