'टैरिफ बम' के दबाव में नहीं आया भारत तो बौखला गए ट्रंप, अब यूरोपीय देशों पर बना रहे कड़े प्रतिबंध लगाने और तेल-गैस खरीद रोकने का प्रेशर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के सख्त रवैये से नाराज हैं. टैरिफ दबाव के बावजूद भारत झुकने को तैयार नहीं है. इसी कारण ट्रंप प्रशासन ने यूरोपीय देशों से अपील की है कि वे भी भारत पर प्रतिबंध लगाएं और तेल-गैस की खरीद रोक दें. 27 अगस्त से अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लागू कर दिया है, लेकिन यूरोपीय देशों ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है.
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भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक तनाव एक बार फिर सुर्खियों में है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के सख्त रुख से बौखलाए नजर आ रहे हैं. भारत ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी दबाव में झुकने वाला नहीं है. यही कारण है कि ट्रंप प्रशासन अब यूरोपीय देशों को भी भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक व्हाइट हाउस ने यूरोपीय देशों से अपील की है कि वे भी भारत पर वैसे ही प्रतिबंध लगाएं जैसे अमेरिका ने लगाए हैं. इसमें यह शर्त भी शामिल है कि यूरोप भारत से तेल और गैस की खरीद तुरंत बंद कर दे. दरअसल, ट्रंप चाहते हैं कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग किया जाए ताकि रूस से उसकी ऊर्जा खरीद पर अंकुश लगे.
भारत ने टैरिफ को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बनाया बड़ा मुद्दा
दरअसल, अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया जो 27 अगस्त से लागू है. ट्रंप प्रशासन का दावा है कि भारत रूस से कच्चा तेल खरीदकर मास्को को मजबूती दे रहा है और यूक्रेन युद्ध को लंबा खींच रहा है. हालांकि भारत ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है. भारत का तर्क है कि रूस से ऊर्जा खरीद कोई नई बात नहीं है और वैश्विक स्तर पर कई देश ऐसा कर रहे हैं. भारत ने सवाल उठाया है कि चीन रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है और यूरोप भी लगातार मास्को से ऊर्जा उत्पाद खरीद रहा है. इसके बावजूद न तो चीन पर और न ही यूरोप पर किसी तरह का टैरिफ लगाया गया है. भारत ने इस भेदभावपूर्ण रवैये को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी मुद्दा बनाया है.
यूरोपीय नेताओं से नाराज हैं: ट्रंप
व्हाइट हाउस का मानना है कि अगर यूरोप भी भारत के खिलाफ खड़ा हो जाए तो भारत को झुकाना आसान होगा. सूत्रों का दावा है कि ट्रंप यूरोपीय नेताओं से बेहद नाराज हैं. वजह यह है कि कई यूरोपीय देश सार्वजनिक रूप से ट्रंप के यूक्रेन युद्ध खत्म करने के प्रयासों का समर्थन करते हैं, लेकिन निजी तौर पर वे अलास्का शिखर सम्मेलन में ट्रंप और पुतिन के बीच हुई प्रगति को कमजोर करने में लगे हैं. एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “यूरोपीय नेता यूक्रेन को समझौते के लिए दबाव में डालने के बजाय उल्टा उसे सलाह दे रहे हैं कि वह रूस को कोई रियायत न दे.” ट्रंप का मानना है कि यूरोप की यह मैक्सिमलिस्ट रणनीति यूक्रेन युद्ध को और भड़का रही है.
भारत की सख्ती पर टिकी दुनिया की नजरें
भारत ने अमेरिका की इस आक्रामक नीति को स्पष्ट संदेश दिया है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र है और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं. भारत का कहना है कि ऊर्जा खरीद का मुद्दा केवल अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, न कि राजनीति से. भारत ने पश्चिमी देशों से सवाल किया है कि अगर वे रूस से गैस और तेल खरीद सकते हैं तो भारत क्यों नहीं. यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के इतर मुलाकात करने वाले हैं. इस बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिकी टैरिफ सबसे बड़ा मुद्दा होगा. माना जा रहा है कि इस शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका काफी अहम रहेगी क्योंकि वह अमेरिका और रूस दोनों के साथ संबंध बनाए हुए है.
भारत की कूटनीति का वैश्विक समीकरण
भारत की विदेश नीति हमेशा संतुलन बनाने पर केंद्रित रही है. एक ओर भारत अमेरिका और यूरोप के साथ व्यापार और सुरक्षा साझेदारी मजबूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर रूस से भी गहरे संबंध बनाए रखे हुए है. यही रणनीति भारत को वैश्विक मंच पर खास बनाती है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका भारत पर दबाव बनाए रखता है और यूरोप भी उसके साथ खड़ा हो जाता है तो आने वाले दिनों में वैश्विक ऊर्जा बाजार में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिलेगी. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा आयातक देश है. ऐसे में उसकी नीतियों का असर सीधा अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर पड़ेगा.
अमेरिका-भारत रिश्तों की अगली परीक्षा
भारत और अमेरिका के बीच यह टकराव केवल टैरिफ तक सीमित नहीं है. यह दोनों देशों के बीच बढ़ते राजनीतिक और सामरिक रिश्तों की भी परीक्षा है. भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ कई रक्षा समझौते किए हैं. लेकिन जब बात राष्ट्रीय हितों की आती है तो भारत किसी भी दबाव को स्वीकार करने के मूड में नहीं है. भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा. वहीं, अमेरिका की कोशिश है कि रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए भारत को भी मजबूर किया जाए. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस रस्साकशी का अंत किस दिशा में होता है.
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भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ के तनाव ने वैश्विक राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है. ट्रंप का रवैया और भारत की सख्ती अब अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है. यूरोप इस समय दो राहे पर खड़ा है. अगर यूरोप अमेरिका की राह पर चलता है तो भारत को चुनौती बढ़ेगी. लेकिन अगर वह तटस्थ रहा तो ट्रंप की रणनीति कमजोर पड़ सकती है. ऐसे में इतना तय है कि आने वाले दिनों में भारत-अमेरिका रिश्तों की अगली परीक्षा होने वाली है और इसका असर न केवल द्विपक्षीय संबंधों पर बल्कि पूरे वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर भी पड़ेगा.
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