'US संग रिश्तों की तीन बड़ी समस्या…', विदेश मंत्री जयशंकर का दो टूक संदेश, कहा- भारत से तेल न खरीदना चाहें तो दूर रहें
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में भारत की रेड लाइन्स हैं और किसानों व छोटे उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं होगा. उन्होंने तीन प्रमुख मुद्दे बताए: व्यापार और टैरिफ, रूस से तेल खरीद और पाकिस्तान मामले में अमेरिका का हस्तक्षेप.
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भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के दिनों में आई तल्खी के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट संदेश दिया है कि व्यापार और रणनीतिक मामलों में भारत अपनी 'रेड लाइन्स' तय करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. शनिवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत किसी भी हाल में किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं करेगा, भले ही इसके लिए अमेरिकी पक्ष के दबाव का सामना करना पड़े.
जयशंकर के अनुसार, इस समय भारत-अमेरिका संबंधों में तीन मुख्य मुद्दे प्रमुख हैं. व्यापार और टैरिफ, रूस से कच्चे तेल की खरीद और पाकिस्तान के साथ संबंधों में अमेरिका की मध्यस्थता. विदेश मंत्री ने इन तीनों विषयों पर स्पष्ट और तथ्यपूर्ण दृष्टिकोण रखा, जो भारत की राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है,
क्या है भारत रेड लाइन्स?
विदेश मंत्री ने व्यापारिक मुद्दों पर कहा कि भारत के लिए वास्तविक और सबसे बड़ा मुद्दा व्यापार है. उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की अपनी 'रेड लाइन्स' हैं और सरकार किसी भी समझौते में किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं करेगी. हाल ही में अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की योजना ने इस स्थिति को और संवेदनशील बना दिया है. जयशंकर ने बताया कि ट्रंप प्रशासन ने पहले ही रूसी कच्चे तेल के कारण 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लागू किया था और अब 27 अगस्त से और टैरिफ प्रभावी होगा. विदेश मंत्री ने कहा, "हमने ऐसा कोई अमेरिकी राष्ट्रपति पहले नहीं देखा जिन्होंने इतना सार्वजनिक रूप से विदेश नीति चलाई हो. यह बदलाव केवल भारत तक सीमित नहीं है."
रूस से कच्चा तेल खरीदना कितना फायदेमंद
रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर अमेरिकी प्रशासन के आरोपों का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत ने यह कदम पूरी तरह अपने राष्ट्रीय हितों के लिए उठाया है. उन्होंने कहा, "यह हमारा अधिकार है कि हम अपने रणनीतिक स्वायत्तता के तहत तेल खरीदें ताकि बाज़ार स्थिर रहे. हमने कभी इसे छिपाया नहीं और यह वैश्विक हित में भी है." जयशंकर ने यह भी कहा कि रूस से तेल आयात को युद्ध फंडिंग के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने जोर देकर कहा कि यूरोप और अमेरिका खुद रूस से तेल और रिफाइंड उत्पाद खरीद रहे हैं. "अगर पसंद नहीं है तो मत खरीदिए, लेकिन यूरोप और अमेरिका खरीद रहे हैं," उन्होंने मज़ाकिया अंदाज में कहा, विदेश मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि भारत-रूस व्यापार का पैमाना यूरोप या चीन के मुकाबले छोटा है और इसे वैश्विक संदर्भ में समझना चाहिए. उन्होंने यह भी बताया कि पिछले कुछ वर्षों में रूस से भारत का तेल आयात बढ़ा है, लेकिन यह पूरी तरह राष्ट्रीय और रणनीतिक हितों के कारण है.
पाकिस्तान के मामले में अमेरिका की मध्यस्थता अस्वीकार्य
जयशंकर ने तीसरा बड़ा मुद्दा पाकिस्तान के साथ संबंधों में अमेरिका की मध्यस्थता बताया. उन्होंने कहा कि भारत 1970 के दशक से यह नीति अपनाए हुए है कि पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों में किसी भी तरह की बाहरी मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा. विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस पर भारत का दृष्टिकोण बहुत मजबूत है और इसे बदला नहीं जाएगा. जयशंकर ने यह भी खंडन किया कि भारत और चीन के संबंधों में सुधार भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव का परिणाम है. उन्होंने कहा, "हर परिस्थिति का जवाब अपने संदर्भ में दिया जाना चाहिए, सभी को जोड़कर समग्र निष्कर्ष निकालना गलत है." उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र और संतुलित दृष्टिकोण पर आधारित है.
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बता दें कि जयशंकर के बयानों से स्पष्ट होता है कि भारत-अमेरिका संबंध इस समय जटिल मोड़ पर हैं. व्यापार, तेल और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भारत अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और रणनीतिक स्वायत्तता को सर्वोपरि मानता है. विदेश मंत्री ने यह संदेश भी दिया कि भारत किसी भी विदेशी दबाव में अपने किसानों, छोटे उत्पादकों और राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा. ऐसे में इस बयान से एक बार फिर यह साफ हो गया है कि भारत अपने वैश्विक रिश्तों में संतुलन, विवेक और स्पष्टता के साथ आगे बढ़ रहा है. चाहे व्यापारिक समझौते हों या रणनीतिक मुद्दे, भारत की विदेश नीति हमेशा राष्ट्रीय हितों के साथ जुड़ी रहेगी और किसी भी परिस्थिति में देश के हितों से समझौता नहीं किया जाएगा.
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