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'कंपनी ने 16,000 अमेरिकन को निकाला, 5,189 विदेशियों को नौकरी दी...' H-1B वीजा फीस बढ़ाने पर ट्रंप प्रशासन ने जारी किया बयान, जनिए क्या कहा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा आवेदनों पर 100,000 डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) की नई फीस लगाने की घोषणा करने के पीछे तर्क दिया है. जानिए क्या है नई फीस लगाने की वजह

Donald Trump(@realDonaldTrump)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा आवेदनों पर 100,000 डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) की नई फीस लगाने की घोषणा की है. व्हाइट हाउस ने शुक्रवार को जारी एक पत्र में इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि यह कदम प्रोग्राम के दुरुपयोग को रोकने, अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए जरूरी है. पत्र में विस्तार से बताया गया है कि वीजा फीस बढ़ाने का यह निर्णय क्यों लिया गया. 

फैसले के बचाव में ट्रंप प्रशासन ने गिनाए तर्क

ट्रंप प्रशासन ने तर्क देते हुए कहा है कि कंपनियों द्वारा H-1B प्रोग्राम का जानबूझकर गलत इस्तेमाल किया गया है जिससे अमेरिकी कर्मचारियों की जगह कम सैलरी वाले विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त किया जा सके. अमेरिका के बाहर से दायर सभी नए H-1B आवेदनों पर लगाई गई 1 लाख डॉलर की अनिवार्य फीस का उद्देश्य दुरुपयोग को रोकना और उच्च कौशल एवं उच्च वेतन वाली नियुक्तियों को प्राथमिकता देना है. व्हाइट हाउस ने इस नीति को सही ठहराने के लिए प्रमुख दावे और आंकड़े पेश किए हैं.

ट्रंप प्रशासन की H-1B वीजा फीस बढ़ाने पर तर्क

1- वित्तीय वर्ष 2003 में आईटी सेक्टर की कुल नौकरियों में H-1B कर्मियों की हिस्सेदारी 32% थी. अनुमान है कि 2025 तक यह आंकड़ा 65% से अधिक हो जाएगा, जो अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक में विदेशी श्रम पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है.

2- हाल ही में कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर 6.1% दर्ज की गई है, जबकि कंप्यूटर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के लिए यह दर 7.5% है. यह दर बायोलॉजी या आर्ट एंड हिस्ट्री ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर से दोगुनी से भी अधिक है.

3- 2000 से 2019 के बीच विदेश में जन्मे STEM पेशेवरों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई, जबकि कुल STEM रोजगार में केवल 44.5% की वृद्धि हुई. प्रशासन का तर्क है कि यह प्रवृत्ति अमेरिकी प्रतिभा की कमी नहीं, बल्कि उसके विस्थापन को दर्शाती है.

4- ट्रंप प्रशासन ने अपने फैसले के समर्थन में उन कंपनियों के उदाहरण दिए हैं, जो अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी के बावजूद बड़ी संख्या में H-1B कर्मियों की भर्ती कर रही हैं.  इनमें से एक अनाम कंपनी ने 5,189 H-1B मंजूरी प्राप्त करने के बाद 2025 में 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया.

5- रिपोर्टों में उल्लेख है कि अमेरिकी तकनीकी कर्मचारियों को नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट के तहत अपने H-1B प्रतिस्थापनों को प्रशिक्षित करने के लिए मजबूर किया गया, जिससे यह कार्यक्रम कॉर्पोरेट आउटसोर्सिंग का साधन प्रतीत होता है.

6- प्रशासन का कहना है कि H-1B प्रोग्राम की मौजूदा संरचना नौकरी की सुरक्षा और वेतन प्रतिस्पर्धा घटाकर युवा अमेरिकियों को टेक सेक्टर में आने से हतोत्साहित करती है.

7- ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह मुद्दा बार-बार राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा गया है. उनका तर्क है कि तकनीक सहित अहम अवसंरचना क्षेत्रों में विदेशी श्रम पर बढ़ती निर्भरता अमेरिका की मजबूती और आत्मनिर्भरता को कमजोर करती है.

8- प्रशासन का दावा है कि ट्रंप के कार्यालय में लौटने के बाद से सभी नौकरियां अमेरिकी मूल के श्रमिकों को दी गई हैं, जो पिछली सरकार की नीति के विपरीत है. फेडरल वर्कफोर्स प्रोग्राम को अवैध अप्रवासियों को बाहर करने के लिए संशोधित किया गया है, ताकि जॉब ट्रेनिंग संसाधन केवल अमेरिकी नागरिकों के लिए उपलब्ध हों.

9- घोषणा के साथ ही राष्ट्रपति ट्रंप ने निर्देश दिया कि श्रम विभाग प्रचलित वेतन नियमों में बदलाव करेगा, ताकि H-1B वर्कर्स को उचित वेतन सुनिश्चित किया जा सके. वहीं, गृह सुरक्षा विभाग ऐसे नियम बनाएगा जो उच्च वेतन और उच्च कौशल वाली नौकरियों के लिए वीजा मंजूरी को प्राथमिकता देंगे.

व्हाइट हाउस 100,000 डॉलर के H-1B वीजा फीस को सीधे जवाबी कदम के तौर पर देख रहा है, जिसे वह एक बिखरा हुआ सिस्टम मानता है, जो अमेरिकी नौकरियों और सुरक्षा की कीमत पर विदेशी श्रमिकों को प्राथमिकता देता है.

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