अमेरिका में लगे ‘डोनाल्ड ट्रंप वापस जाओ’ के नारे... दुनिया में टैरिफ बम फोड़ने वाले US राष्ट्रपति अपने ही देश में घिरे
भारत से टैरिफ वॉर लड़ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब अपने ही देश में विरोध का सामना कर रहे हैं. श्रमिक दिवस पर हजारों कामगार न्यूयॉर्क स्थित उनके आवास के बाहर जुटे और ‘ट्रंप वापस जाओ’ के नारे लगाए. शिकागो और न्यूयॉर्क में वन फेयर वेज संगठन के तहत हुए प्रदर्शनों में श्रमिकों ने न्यूनतम मजदूरी 7.25 डॉलर प्रति घंटा बढ़ाने और फासीवादी नीतियां खत्म करने की मांग उठाई.
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भारत समेत कई देशों पर टैरिफ का बोझ थोपने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों अपने ही देश में घिरते नजर आ रहे हैं. उनकी नीतियों के खिलाफ अब अमेरिका के भीतर ही विरोध की लहर उठने लगी है. श्रमिक दिवस के मौके पर सोमवार को हजारों कामगार सड़कों पर उतर आए और न्यूयॉर्क स्थित ट्रंप के आवास के बाहर ‘ट्रंप वापस जाओ’ के नारे लगाए. यही नहीं, एक साथ कई शहरों में प्रदर्शन हुए और लोगों ने राष्ट्रपति की नीतियों पर खुलकर नाराजगी जताई.
श्रमिक दिवस पर फूटा गुस्सा
सोमवार को अमेरिका में लेबर डे यानी श्रमिक दिवस मनाया गया. इस मौके पर हजारों कामगार ट्रंप की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए. न्यूयॉर्क स्थित उनके आवास के बाहर मजदूरों ने जमकर नारेबाज़ी की. भीड़ ने ‘ट्रंप वापस जाओ’ और ‘फासीवादी शासन खत्म करो’ जैसे नारे लगाए. न्यूयॉर्क और शिकागो में वन फेयर वेज संगठन के बैनर तले यह विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए. संगठन का उद्देश्य न्यूनतम मजदूरी की मांग और कामगारों को हो रही दिक्कतों को उजागर करना था. अमेरिका में संघीय न्यूनतम मेहनताना फिलहाल सिर्फ 7.25 डॉलर प्रति घंटा है, जिसे लेकर लंबे समय से बहस जारी है.
शिकागो और न्यूयॉर्क में गरजे प्रदर्शनकारी
शिकागो में ट्रंप टॉवर के बाहर प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां लहराते हुए कहा कि 'नेशनल गार्ड नहीं चाहिए' और 'उसे जेल में डालो'. वहीं, न्यूयॉर्क में हजारों लोग हाथों में बैनर लिए जुटे. उनके पोस्टरों पर लिखा था– ‘फासीवादी शासन खत्म करो’, ‘कामगारों को न्याय दो’ और ‘ट्रंप की नीतियां बंद करो’. वॉशिंगटन डीसी और सैन फ्रांसिस्को में भी माहौल कुछ ऐसा ही रहा। राजधानी में इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एन्फोर्समेंट (ICE) की नीतियों के खिलाफ लोगों ने ‘अतिक्रमण बंद करो’ और ‘डीसी को मुक्त करो’ जैसे नारे लगाए. कई प्रदर्शनकारी नकाबपोश होकर आए और उनके बैनरों पर लिखा था – ‘हमें नकाबपोश गुंडे नहीं चाहिए.
ट्रंप की नीतियों से असंतोष
दरअसल, ट्रंप प्रशासन पर आरोप है कि उन्होंने श्रमिकों की समस्याओं को नज़रअंदाज़ किया और केवल कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता दी. भारत समेत कई देशों से आने वाले सामानों पर भारी टैरिफ लगाने से जहां अमेरिकी उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ बढ़ा, वहीं स्थानीय श्रमिकों को भी कोई बड़ा लाभ नहीं मिला. उल्टा, कई उद्योगों में कामकाज प्रभावित हुआ और रोजगार के अवसर घटे. इसी तरह, ट्रंप की आव्रजन नीति भी विवादों में रही. उन्होंने दक्षिणी सीमा पर नेशनल गार्ड की तैनाती कराई और अवैध प्रवासियों पर नकेल कसने के आदेश दिए. इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इससे मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ और प्रवासी मजदूरों की स्थिति और खराब हो गई.
अदालत ने भी जताई आपत्ति
प्रदर्शनकारियों के गुस्से को अदालत से भी बल मिला है. दक्षिणी कैलिफोर्निया के एक संघीय न्यायाधीश ने कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रदर्शनों को दबाने के लिए नेशनल गार्ड का इस्तेमाल करना अवैध है. यह आदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर सीधा सवाल उठाता है और संकेत देता है कि ट्रंप की नीतियां कानूनी रूप से भी टिकाऊ नहीं थीं. स्पष्ट है कि अमेरिका में ट्रंप की नीतियों के खिलाफ असंतोष लगातार बढ़ रहा है। मजदूर संगठन और आम नागरिक उनकी आर्थिक और सामाजिक नीतियों को अमेरिकी लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए खतरा मानते हैं. श्रमिक दिवस पर हुए ये विरोध प्रदर्शन इसी असंतोष की बड़ी तस्वीर हैं.
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बताते चलें कि ट्रंप भले ही अपने कार्यकाल में अमेरिका फर्स्ट की नीति को आगे बढ़ाकर आर्थिक मजबूती का दावा करते रहे हों, लेकिन वास्तविकता यह है कि उनकी नीतियों से अमेरिकी समाज में असंतोष गहराता गया. श्रमिकों, प्रवासियों और आम नागरिकों ने उनकी नीतियों को न केवल अन्यायपूर्ण बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ माना.
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