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रूस को भारत के टैलेंट पर भरोसा... 10 लाख भारतीयों को देगा रोजगार, जानिए क्या है पूरी योजना

यूक्रेन युद्ध के चलते मजदूरों की भारी कमी से जूझ रहे रूस ने भारत से 10 लाख कामगार बुलाने का फैसला किया है. उराल चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार, यह डील भारत के साथ फाइनल हो चुकी है और 2025 के अंत तक स्वेर्दलोव्स्क जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में भारतीय मजदूरों की तैनाती शुरू हो जाएगी.

10 Jul, 2025
( Updated: 11 Jul, 2025
11:08 AM )
रूस को भारत के टैलेंट पर भरोसा... 10 लाख भारतीयों को देगा रोजगार, जानिए क्या है पूरी योजना
File Photo

रूस और भारत के रिश्तों में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है. यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस में मजदूरों की भारी कमी महसूस की जा रही है और इसी संकट से उबरने के लिए अब रूस ने भारत से 10 लाख कामगार बुलाने का बड़ा फैसला लिया है. यह कदम 2025 के अंत तक लागू होने की उम्मीद है और इसके जरिए रूस की मैनपावर की जरूरतों को पूरा करने का प्रयास किया जाएगा. उराल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष आंद्रेई बेसेदिन ने खुद इस बात की पुष्टि की है कि भारत के साथ एक अहम डील फाइनल हो चुकी है. उनका दावा है कि 10 लाख भारतीय मजदूर स्वेर्दलोव्स्क इलाके में जल्द पहुंचेंगे.

रूस के उद्योगिक केंद्रों में भारतीय मजदूरों की बढ़ेगी अहमियत
रूस का स्वेर्दलोव्स्क क्षेत्र देश का एक प्रमुख इंडस्ट्रियल हब माना जाता है, जहां मेटल और मशीन निर्माण की बड़ी फैक्ट्रियां हैं. यूक्रेन युद्ध के चलते एक बड़ी संख्या में पुरुष सैनिकों के रूप में तैनात हैं, जिससे इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों की भारी कमी हो गई है. स्थानीय युवा भी फैक्ट्री में काम करने की जगह अन्य क्षेत्रों में जा रहे हैं, जिससे इंडस्ट्री को झटका लग रहा है. ऐसे में भारत जैसे देश से आने वाले मेहनती और प्रशिक्षित मजदूर रूस के लिए वरदान साबित हो सकते हैं. स्वेर्दलोव्स्क की राजधानी येकातेरिनबर्ग न केवल ट्रांस-साइबेरियन रेलवे का अहम जंक्शन है, बल्कि आने वाले समय में यह आर्कटिक क्षेत्र के विकास में भी निर्णायक भूमिका निभाएगा. ऐसे में यहां काम के अवसर भी तेजी से बढ़ने वाले हैं.

मजदूरों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा मौसम
भारत से रूस जाने वाले कामगारों के लिए एक बड़ा सवाल यह होगा कि वे वहां की कड़ाके की ठंड और अलग खानपान शैली के साथ कैसे तालमेल बैठाएंगे. येकातेरिनबर्ग में सर्दियों का तापमान -17 डिग्री तक गिर सकता है और अक्टूबर से अप्रैल तक बर्फ की मोटी परत जमा रहती है. जहां भारतीय मजदूर मध्य पूर्व की गर्म वातावरण में काम करने के आदी हैं, वहीं रूस की बर्फीली ठंड उनके लिए नई चुनौती बन सकती है. इसके अलावा, जिन मजदूरों की भोजन शैली शुद्ध शाकाहारी है, उनके लिए वहां रोज़मर्रा का खाना ढूंढना भी मुश्किल होगा. हालांकि, रूस में भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के गर्म कपड़े उपलब्ध हैं, जो उन्हें मौसम से बचाव में मदद कर सकते हैं.

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एशियाई मजदूरों के साथ पहली बार काम करेगा रूस
भारत के अलावा रूस श्रीलंका और उत्तर कोरिया से भी कामगार बुलाने की योजना बना रहा है. हालांकि रूस में पहले से ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और अन्य पुराने सोवियत देशों के मजदूर बड़ी संख्या में मौजूद हैं, जो न केवल रूसी भाषा बोलते हैं बल्कि वहां की संस्कृति से भी भली-भांति परिचित हैं. दक्षिण एशियाई मजदूरों के साथ काम करने का अनुभव रूस के पास कम है. ऐसे में शुरुआती दौर में सांस्कृतिक अंतर, भाषा और काम करने के तरीकों को लेकर कुछ दिक्कतें जरूर आ सकती हैं. लेकिन उम्मीद की जा रही है कि समय के साथ यह समन्वय स्थापित हो जाएगा.

4,000 भारतीयों ने किया आवेदन 
रूस ने इस योजना को परखने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत कर दी है. सैमोल्योत ग्रुप नाम की रूसी कंपनी ने भारतीय निर्माण मजदूरों को हायर करने का काम शुरू किया है. अब तक सेंट पीटर्सबर्ग में करीब 4,000 भारतीयों ने आवेदन कर दिया है. मॉस्को और कैलिनिनग्राद में कुछ साइट्स पर भारतीय पहले से काम भी कर रहे हैं. रूस के उद्योगपतियों ने भारत में ट्रेनिंग स्कूल खोलने की बात भी कही है, ताकि मजदूरों को वहां की जरूरतों के मुताबिक तैयार किया जा सके. इस विचार को रूस के शिक्षा मंत्री सर्गेई क्रावत्सोव ने समर्थन दिया है और विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर इसे लागू करने की बात भी कही है. भारतीय मजदूरों की मदद के लिए एक और बड़ी घोषणा की गई है. स्वेर्दलोव्स्क की राजधानी येकातेरिनबर्ग में नया भारतीय दूतावास खोलने की तैयारी चल रही है. यह दूतावास मजदूरों की सुरक्षा, सहायता और कानूनी सलाह के लिए अहम भूमिका निभाएगा. इससे भारतीयों को न केवल एक आधिकारिक समर्थन मिलेगा, बल्कि किसी भी परेशानी में तुरंत मदद भी मिल सकेगी.

रिश्ते होंगे मजबूत
यह पूरी योजना भारत के लिए भी फायदे का सौदा साबित हो सकती है. भारतीय मजदूरों की रूस में तैनाती से रेमिटेंस इकोनॉमी को बूस्ट मिलेगा. कामगारों की कमाई भारत में पैसे भेजने के रूप में आएगी, जिससे देश की विदेशी मुद्रा भंडार को भी लाभ मिलेगा. साथ ही, भारत और रूस के बीच पहले से मजबूत रणनीतिक संबंध अब सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी गहरे होंगे. भारत पहले से रूस के तेल, गैस, दवाइयों और आईटी सेक्टर में निवेश करता आ रहा है और अब श्रमिकों के स्तर पर भी यह साझेदारी और मज़बूत होगी. भारत सरकार ने भी इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई है और अपने नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए रूसी अधिकारियों से लगातार संवाद कर रही है.

बताते चलें कि रूस में मैनपावर की कमी भारत के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आई है. यह केवल मजदूरों के विदेश में रोजगार का मामला नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक भूमिका को मजबूत करने का एक अहम कदम है. यदि यह योजना सफल रहती है, तो आने वाले समय में भारतीय कामगार दुनिया के और भी ज्यादा हिस्सों में अपनी मेहनत और हुनर से नई पहचान बनाएंगे. 

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