ट्रंप के टैरिफ की काट के लिए RIC एक्टिव! चीन जाएंगे PM मोदी, रूस में हैं NSA डोभाल...जयशंकर का प्लान भी तैयार
अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ का दबाव बढ़ाने के बीच भारत ने अपनी कूटनीतिक सक्रियता तेज कर दी है. एनएसए अजित डोभाल रूस में हैं और जल्द ही विदेश मंत्री जयशंकर भी रूस जाएंगे. वहीं प्रधानमंत्री मोदी 30 अगस्त को जापान और फिर 31 अगस्त को चीन (SCO समिट) की यात्रा पर जाएंगे. जापान दौरे में रणनीतिक सहयोग पर बात होगी, जबकि चीन में क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी.
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वैश्विक राजनीति में इस वक्त भारत का रुख न सिर्फ स्पष्ट है, बल्कि बेहद ठोस भी नजर आ रहा है. अमेरिका के टैरिफ दबाव और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तीखी टिप्पणियों के बीच भारत ने अपना कूटनीतिक एजेंडा और मजबूत कर दिया है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इस समय रूस की राजधानी मॉस्को में हैं, वहीं विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी जल्द ही रूस की यात्रा पर रवाना होंगे. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस महीने जापान और चीन की अहम यात्राओं पर निकलने वाले हैं.
दरअसल, ये यात्राएं ऐसे समय पर हो रही हैं, जब अमेरिका की ओर से भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी जा रही है. ट्रंप ने हाल ही में भारत को "अच्छा ट्रेड पार्टनर नहीं" बताया और कच्चे तेल पर और अधिक टैरिफ लगाने की बात कही. इसके जवाब में भारत ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि "हम अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेंगे." इन यात्राओं से यह साफ है कि भारत अब आरआईसी यानी Russia-India-China त्रिपक्षीय समूह के साथ मिलकर आगे बढ़ने वाला है और अमेरिका के किसी भी दबाव में नहीं आने वाला.
RIC की प्रमुख बातें
RIC की अवधारणा 1990 के दशक के अंत में उभरी थी और इसका पहला अनौपचारिक संवाद 2002 में हुआ और बाद में यह त्रिपक्षीय समूह के रूप में विकसित हुआ. इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर सहयोग को बढ़ाना. संयुक्त राष्ट्र, बहुपक्षीय व्यापार, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर साझा दृष्टिकोण बनाना और एशिया में स्थिरता और शांति को बढ़ावा देना है. इसकी बैठक में आमतौर पर तीनों देशों के विदेश मंत्री हिस्सा लेते हैं. कई बार प्रधानमंत्री स्तर पर भी विचार हुआ है, लेकिन मुख्य वार्ता विदेश मंत्रियों के स्तर पर होती है. इसका दायरा कुछ मामलों में SCO (शंघाई सहयोग संगठन) और BRICS के साथ भी जुड़ा हुआ है. दरअसल, BRICS (Brazil, Russia, India, China, South Africa) की नींव भी RIC संवाद के अनुभव से मजबूत हुई थी.
डोभाल-जयशंकर की रूस यात्रा के गहरे मायने
अजित डोभाल की रूस यात्रा भारत-रूस रणनीतिक रिश्तों को एक नई ऊंचाई देने की कोशिश है. चर्चा है कि S-400 मिसाइल सिस्टम के रखरखाव, Su-57 जैसे फाइटर जेट्स की संभावित खरीद, ऊर्जा आपूर्ति और राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा जैसे कई अहम मुद्दों पर बातचीत हो रही है. जयशंकर की प्रस्तावित यात्रा भी इसी दिशा में अगला कदम मानी जा रही है. दोनों यात्राएं इस बात का संकेत हैं कि भारत रूस के साथ अपनी दीर्घकालिक साझेदारी को और मजबूत करना चाहता है.
पीएम मोदी की चीन और जापान यात्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 अगस्त को जापान जाएंगे, जहां वे जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. इस बैठक में रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी सहयोग बढ़ाने पर चर्चा होगी. इसके बाद मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में हिस्सा लेंगे. यह दौरा खास इसलिए भी है क्योंकि यह 2019 के बाद पीएम मोदी की पहली चीन यात्रा होगी. SCO बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और व्यापार जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाएगी.
SCO में भारत की सख्त नीति
इससे पहले जून में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने SCO के रक्षामंत्रियों की बैठक में आतंकवाद पर एक कमजोर ड्राफ्ट पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था. भारत ने साफ कर दिया कि आतंकवाद के मामले में उसकी नीति कोई समझौता नहीं करेगी. चीन और पाकिस्तान की कोशिश थी कि आतंकवाद पर चर्चा को भटका दिया जाए, लेकिन भारत ने इसका विरोध किया. यही कारण था कि SCO की उस बैठक में कोई संयुक्त बयान जारी नहीं हुआ.
ट्रंप का दबाव और भारत की सीधी प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से सस्ते तेल की खरीद को लेकर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि इससे रूस की युद्ध नीति को समर्थन मिल रहा है. भारत पर पहले से ही 25% टैरिफ लागू है और अब ट्रंप इसे और बढ़ाने की बात कर रहे हैं. भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपने ऊर्जा सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा. तेल की खरीद पूरी तरह से मूल्य और जरूरत आधारित होगी. वर्तमान में भारत अपनी कुल तेल ज़रूरतों का लगभग 35–40% हिस्सा रूस से ले रहा है. जबकि युद्ध से पहले यह आंकड़ा मात्र 0.2% था.
रूस का समर्थन और अमेरिका की आलोचना
जहां ट्रंप भारत को "डेड इकोनॉमी" कहकर निशाना बना रहे हैं, वहीं रूस ने इसका कड़ा विरोध किया है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि अमेरिका का यह दबाव "अवैध व्यावसायिक दबाव" है. उन्होंने कहा कि हर देश को यह अधिकार है कि वह अपने व्यापारिक साझेदार खुद तय करे.
भारत की संतुलित विदेश नीति
भारत की विदेश नीति हमेशा से स्वतंत्र और संतुलित रही है. रूस के साथ भारत के संबंध दशकों पुराने हैं. 2000 में दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी हुई थी और 2021 से 2+2 डायलॉग भी हो रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भारत ने न तो खुलकर समर्थन किया और न ही विरोध. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार भारत का रूस से तेल व्यापार पारदर्शी है और इससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला को स्थिरता मिलती है.
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बताते चलें कि भारत अब किसी वैश्विक दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है. चाहे अमेरिका का टैरिफ हो या चीन-पाकिस्तान की चालें, भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखकर हर निर्णय ले रहा है. डोभाल और जयशंकर की रूस यात्रा, पीएम मोदी का जापान और चीन दौरा इस बात का स्पष्ट संदेश हैं कि भारत अब अपनी शर्तों पर वैश्विक राजनीति में खेलेगा.
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