अपने ही देश में कत्लेआम कर रही पाकिस्तानी सेना, मानवाधिकार विशेषज्ञ ने उठाए सवाल, जानें पूरा मामला
पीओके में बुनियादी अधिकारों की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पाक सेना की गोलीबारी में 10 लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हुए. मानवाधिकार विशेषज्ञ माइकल अरिआंती ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी पर सवाल उठाया और कहा कि स्थानीय लोग सिर्फ सस्ती बिजली, रियायती आटा और सम्मान मांग रहे हैं, लेकिन उनका जवाब दमन और कर्फ्यू से दिया जा रहा है.
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पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में सस्ती बिजली, आटा और आत्म आत्मसम्मान जैसे बुनियादी अधिकारों की मांग कर रहे कुछ प्रदर्शनकारियों की हत्या पर मानवाधिकार विशेषज्ञ ने ऐतराज जताया है. विश्व बिरादरी से सवालिया अंदाज में पूछा है कि पाक सेना को मासूम लोगों की हत्या करते देखकर भी वो चुप क्यों है? क्यों वो लोगों के दुख दर्द को सुन नहीं पा रही है?
माइकल अरिआंती ने द टाइम्स ऑफ इजरायल वेबसाइट के एक ब्लॉग में लिखा, 'पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की घाटियां, जिन्हें अक्सर रमणीय और मनोरम बताया जाता है, अब खून से लथपथ हैं. एक हफ्ते से ज्यादा समय से, जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी (जेएएसी) के नेतृत्व में मुजफ्फराबाद, रावलकोट, धीरकोट और मीरपुर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें सस्ती बिजली, रियायती आटा और सम्मान के अलावा और कुछ नहीं मांगा जा रहा है.'
अंतरराष्ट्रीय पाखंड पर सवाल
पीओजेके में पाकिस्तानी सैनिकों के अत्याचारों पर अंतरराष्ट्रीय चुप्पी की आलोचना करते हुए, अरिआंती ने कहा, 'पीओके में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ स्थानीय शिकायतों की कहानी नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पाखंड की कहानी है.' कुर्द मामलों और मानवाधिकारों के विशेषज्ञ, अरिआंती ने कहा, 'हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हैशटैग कुछ ही घंटों में ट्रेंड करने लगते हैं, जहां मुद्दे पूरे महाद्वीप में वायरल हो जाते हैं, फिर भी पीओजेके में मुस्लिम नागरिकों के नरसंहार पर कोई आवाज नहीं उठी है. यह चुनिंदा आक्रोश बहरा कर देने वाला है.' प्रदर्शनकारियों की मांगों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, 'ये सबसे बुनियादी अधिकार हैं, फिर भी इनका जवाब गोलियों, कर्फ्यू और संचार व्यवस्था ठप करके दिया जा रहा है. जमीनी स्तर से आ रही खबरें बेहद निराशाजनक हैं. धीरकोट और मुजफ्फराबाद में 10 नागरिक, जिनमें युवा भी शामिल हैं, पाकिस्तानी सेना की गोलियों से मारे गए हैं. उन्होंने बताया कि 100 से ज्यादा लोग घायल हैं, जो गोलियों, आंसू गैस और लाठियों के शिकार हैं.
आर्थिक न्याय की मांग
ब्लॉग में यह कहा गया है कि पाकिस्तान से अर्धसैनिक बल जो हर मायने में बाहरी हैं, उसी शोषण का विरोध कर रहे कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ तैनात किए गए हैं जो पाकिस्तान के बिजली ग्रिड को चलाता है और उसके खजाने को भरता है. विशेषज्ञ ने आगे कहा कि पाकिस्तान की लगभग एक-तिहाई पनबिजली पैदा करने वाले इस क्षेत्र में, निवासी अभी भी अत्यधिक शुल्क चुकाते हैं, जो अक्सर उत्पादन लागत से दस गुना ज्यादा होता है, जबकि इस्लामाबाद और 'आजाद कश्मीर' के अभिजात वर्ग मुफ्त बिजली, मुफ्त ईंधन और अनियंत्रित विशेषाधिकारों का आनंद लेते हैं.
सैकड़ों लोग हुए घायल
ब्लॉग में कहा गया है कि आंकड़े बयानबाजी से कहीं ज्यादा स्पष्ट रूप से कहानी बयां करते हैं. पिछले हफ्ते में ही कम से कम 10 नागरिक मारे गए हैं और 100 से ज्यादा घायल हुए हैं। यह 2023 और 2024 में हुई हिंसा के पिछले दौर के बाद की बात है, जब आटे की कमी और बिजली दरों को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों पर सरकारी गोलीबारी का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें कई नागरिक मारे गए थे. पैटर्न साफ है कि पीओके में अधिकारों की मांगों का जवाब दमन से दिया जा रहा है. आर्थिक रूप से, अन्याय चौंका देने वाला है. यह क्षेत्र पाकिस्तान की 30 प्रतिशत जलविद्युत पैदा करता है, फिर भी स्थानीय लोग पूरे देश में सबसे ज्यादा बिजली दरों का भुगतान करते हैं - 40-50 रुपये प्रति यूनिट, जबकि उत्पादन लागत 4-7 रुपये है. पाकिस्तान पर इस क्षेत्र का कम से कम 370 अरब रुपये का रॉयल्टी बकाया है, लेकिन इस्लामाबाद इसे चुकाने के बजाय रेंजर्स और संघीय पुलिस को भेज रहा है. अरियांती ने अपने ब्लॉग में कहा कि पीओजेके में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ स्थानीय शिकायतों की कहानी नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पाखंड की कहानी है.
मामलें पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी
उन्होंने कहा, 'जरा सोचिए, जब गाजा जा रहे एक बेड़े को रोका गया, तो वह पूरे यूरोप और मध्य पूर्व की सुर्खियों में छा गया. राजनेता, कार्यकर्ता और पत्रकार आक्रोश व्यक्त करने के लिए दौड़ पड़े. लेकिन जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीरी मुसलमानों पर गोलीबारी की जब आठ, फिर दस, और शायद उससे भी ज्यादा लोग शहीद हुए तब सन्नाटा छा गया. कोई आपातकालीन संयुक्त राष्ट्र सत्र नहीं हुआ। कोई अरब लीग घोषणा नहीं हुई। कोई यूरोपीय संसद का प्रस्ताव नहीं आया.' गाजा में एक फिलिस्तीनी की मौत दुनिया भर में सुर्खियां बटोरती है, लेकिन मुजफ्फराबाद या धीरकोट में एक कश्मीरी मुसलमान की मौत, अगर उसे स्वीकार भी किया जाता है, तो बस एक फ़ुटनोट क्यों है? उन्होंने कहा कि दोनों पीड़ित हैं, दोनों सम्मान की गुहार लगा रहे हैं, और फिर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय तय करता है कि किसकी पीड़ा मायने रखती है. अरियांती ने कहा कि इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी), जो जम्मू-कश्मीर में किसी भी घटना के होने पर भारत के खिलाफ बयान जारी करने में इतनी जल्दी करता है, उसने पीओके में हुए नरसंहार के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। एक भी नहीं। वही ओआईसी जो इजरायल या भारत की निंदा करने में जल्दबाजी करता है, अब जब उत्पीड़क पाकिस्तान है तो अपनी नजरें फेर लेता है.
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बताते चलें कि इस पूरे मामले ने पीओके में मानवाधिकारों की गंभीर स्थिति और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी को उजागर कर दिया है. प्रदर्शनकारियों की बुनियादी मांगों पर गोलियों और दमन का उपयोग यह बताती है कि अधिकारों की आवाज दबाई जा रही है, जबकि आर्थिक अन्याय और असमानता स्थानीय लोगों के जीवन को और कठिन बना रही है. अब विश्व बिरादरी के सामने यह चुनौती है कि वे पीओजेके में हो रही हिंसा और उत्पीड़न पर स्पष्ट और निर्णायक कदम उठाएं, ताकि मासूम नागरिकों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा हो सके.
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