अमेरिका में H-1B वीजा पर नया विवाद, ट्रंप के फैसले को कोर्ट में घसीटा
इस फैसले के खिलाफ यूनियन, कंपनियां और धार्मिक संस्थाएं मिलकर सैन फ्रांसिस्को की संघीय अदालत में याचिका दाखिल कर चुकी हैं. उनका कहना है कि यह नियम न केवल गैरकानूनी है, बल्कि इससे विदेशी टैलेंट को अमेरिका में आने से रोका जाएगा.
Follow Us:
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा फीस को 100,000 डॉलर तक बढ़ाने के फैसले पर अब कानूनी विवाद शुरू हो गया है. इस फैसले के खिलाफ यूनियन, कंपनियां और धार्मिक संस्थाएं मिलकर सैन फ्रांसिस्को की संघीय अदालत में याचिका दाखिल कर चुकी हैं. उनका कहना है कि यह नियम न केवल गैरकानूनी है, बल्कि इससे विदेशी टैलेंट को अमेरिका में आने से रोका जाएगा.
क्या है ट्रंप का नया आदेश?
दो हफ्ते पहले ट्रंप प्रशासन ने एक नया आदेश जारी किया था जिसके अनुसार जो भी नया एच-1बी वीजा धारक अमेरिका आएगा, उसके नियोक्ता (यानी जिस कंपनी ने उसे बुलाया है) को अतिरिक्त 1 लाख डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) फीस देनी होगी.
हालांकि ये नियम उन लोगों पर लागू नहीं होगा:
जिनके पास पहले से ही एच-1बी वीजा है
या जिन्होंने 21 सितंबर 2025 से पहले वीजा के लिए आवेदन कर दिया है
याचिकाकर्ताओं की दलील
इस फैसले को अदालत में चुनौती देने वालों में यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स यूनियन, यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स की संस्था, एक नर्स भर्ती एजेंसी और कई धार्मिक संगठन शामिल हैं. इनका कहना है कि राष्ट्रपति को वीजा कार्यक्रम में इस तरह का बदलाव करने या नई फीस लगाने का अधिकार नहीं है. अमेरिकी संविधान के मुताबिक, टैक्स या किसी तरह का शुल्क लगाने का हक सिर्फ कांग्रेस (संसद) के पास है, न कि राष्ट्रपति के पास.
ट्रंप प्रशासन का बचाव
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एबिगेल जैक्सन ने कहा कि इस फैसले का मकसद अमेरिका में वेतन स्तर को गिरने से रोकना और वीजा सिस्टम के दुरुपयोग को बंद करना है. उनका कहना है कि इससे केवल वही कंपनियां विदेशी टैलेंट को हायर कर सकेंगी जिन्हें उसकी वास्तव में जरूरत है, जिससे सिस्टम ज्यादा ट्रांसपेरेंट बनेगा.
अभी तक कंपनियों को एच-1बी वीजा प्रायोजन के लिए लगभग 2,000 से 5,000 डॉलर देने पड़ते हैं. ट्रंप का ये नया आदेश इस फीस को 20 गुना से ज्यादा बढ़ा देगा.
भारत सबसे बड़ा लाभार्थी
एच-1बी वीजा प्रोग्राम के तहत हर साल अमेरिका 65,000 वीजा देता है, और इसके अलावा उच्च डिग्री रखने वालों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीजा होते हैं.
2023-24 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत को कुल एच-1बी वीजा का 71% हिस्सा मिला, जबकि चीन को लगभग 11.7%. इसका मतलब है कि भारत के हजारों प्रोफेशनल्स पर इस फैसले का सीधा असर पड़ेगा. जो भारतीय टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग कंपनियां हर साल बड़ी संख्या में एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करती हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा आर्थिक बोझ बन जाएगा.
“पे टू प्ले” सिस्टम बना देगा अमेरिका?
अदालत में दाखिल याचिका में कहा गया है कि यह नया नियम अमेरिका में “Pay to Play” यानी “पैसा दो और खेलने दो” जैसा सिस्टम बना देगा. इसमें सिर्फ वही कंपनियां विदेशी टैलेंट को हायर कर पाएंगी जो इतनी भारी फीस दे सकेंग. इससे नई और छोटी कंपनियां पीछे रह जाएंगी, इनोवेशन रुकेगा और साथ ही भ्रष्टाचार की संभावना भी बढ़ जाएगी.
क्या हो सकता है असर?
अगर अदालत इस याचिका को स्वीकार कर लेती है और ट्रंप के फैसले पर रोक लगती है, तो ये भारत और दूसरे देशों के प्रोफेशनल्स के लिए बड़ी राहत होगी. लेकिन अगर ये नियम लागू हो गया, तो अमेरिका में काम करने का सपना देखने वाले हजारों टैलेंटेड युवाओं के लिए रास्ता मुश्किल हो जाएगा.
Advertisement
यह भी पढ़ें
Advertisement