‘भारत को ऑर्डर नहीं दे सकते, इज्जत देनी होगी…’, अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री ने ट्रंप की टैरिफ नीति की निकाल दी हवा, हिंदुस्तान के प्रस्ताव का किया समर्थन
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री और 2004 में डेमोक्रेटिक पार्टी के आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रहे जॉन केरी ने ट्रंप की दादागिरी के फैसले पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका को कोई दिक्कत है, कोई मुद्दा है तो वो बात करे, सहमति बनाए न कि ऑर्डर दे, तनाशाही वाला रवैया रखे. केरी ने भारत की टैरिफ को लेकर की गई पेशकश की तारीफ करते हुए कहा यह बहुत अच्छा है. उन्होंने भारत को दुनिया की एक शक्ति और ग्लोबल साउथ की आवाज बताया और पीएम मोदी की तारीफ भी की.
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी हुकूम देने वाली नीति को लेकर अपने ही घर में घिरते जा रहे हैं. अर्थशास्त्री, डिप्लोमेट, करीबी, पॉलिटिशियन से लेकर हर कोई ट्रंप की टैरिफ नीति और ट्रेड वॉर की आलोचना कर रहा है. ट्रंप ने ना सिर्फ भारत पर 25% + 25% यानी कि कुल 50% टैरिफ लगाए बल्कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को 'डेड इकोनॉमी तक कह दिया. हालांकि उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ रही है.
कहा जा रहा है कि टैरिफ बढ़ाने से अमेरिका में कीमतें महंगी होंगी जिसका अल्टीमेट इफेक्ट आम लोगों पर पड़ेगा, चाहे वो MAGA वाले हों या डेमोक्रैट सपोरटर्स हों. खैर ट्रंप को इससे प्रभाव नहीं पड़ता है, कौन क्या कह रहा है, वो वही कर रहे हैं जो उन्हें समझ में आता है और जो उनकी EGO को सूट करता है या जो उनके ट्रेड हॉक्स - व्हाइट हाउस एडवाइजर और हां में हां मिलाने वाले करीबी कह रहे हैं. हालांकि इससे इतर ट्रंप को कई लोग जमकर सुना भी रहे हैं और चेता भी रहे हैं कि भारत से रिश्ते खराब करना आत्मघाती हो सकता है.
इसी कड़ी में अमेरिका के सबसे दिग्गज नेताओं में से एक, पूर्व विदेश मंत्री और राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक नोमिनी रहे जॉन केरी ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों की खुलकर आलोचना की है.
केरी ने मल्टीपोलर वर्ल्ड की बढ़ रही दुनिया में अमेरिकी सत्ता को मिल रही चुनौती पर कहा कि हम अपनी छाती पीट कर लाख कहते रहें कि हम Exceptional हैं, लेकिन सिर्फ कहने से नहीं होगा. हम अद्भुत तब होंगे जब 30 बिलियन डॉलर की राशि दुनिया में, अफ्रीका में मदद के तौर पर देते हैं. उनका इशारा इस बात की ओर था कि ट्रंप ने आते ही बहुत सारे एड प्रोगाम, फंडिंग पर रोक लगा दी थी और आज भी कर रहे हैं.
केरी ने आगे कहा कि ट्रंप अपने तरीकों से भारत और करीबी सहयोगियों को धीरे-धीरे अमेरिका से दूर कर रहे हैं, खाई पैदा कर रहे हैं. खासतौर से डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच खींचतान को उन्होंने दुर्भाग्यपूर्ण कहा है.
ईटी वर्ल्ड लीडर्स फोरम में भाग लेते हुए केरी ने सिर्फ ट्रंप को सलाह दी बल्कि चेताया भी कि अगर भारत-अमेरिका के बीच कोई दिक्कत है, कोई मुद्दा है तो इसे अमेरिका को आपसी सहमति से दूर करनी होगी. उन्होंने आगे कहा कि आप भारत को ऑर्डर नहीं दे सकते हैं, कुछ हासिल करनी है तो आपको सम्मान देना होगा, किसी से कुछ लेने के लिए आपको इज्जत देकर ही हासिल करनी होगी. ‘नहीं चलेगी ट्रंप प्रशासन की ऑर्डर देने की नीति’
केरी ने कहा कि बिना किसी हिचक के कहा कि ट्रंप प्रशासन ने बातचीत से रास्ता निकालने के बजाय ऑर्डर देने और दबाव डालने का तरीका अपनाया है. उनका साफ कहना था कि अपने सहयोगियों के साथ रिश्ते इस तरह के तरीकों को अपनाकर आगे नहीं चलाए जा सकते हैं, ये संबंध खराब करने का रास्ता है.
‘भारत ने तय किए काफी ऊंचे मापदंड’
उर्जा और ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में भारत के कार्यों की सराहना करते हुए जॉन केरी ने कहा कि हिंदुस्तान जो कुछ कर रहा है वो काफी सराहनीय है. उन्होंने कहा कि हर कोई ऊर्जा का उपयोग करता है. हर किसी को ऊर्जा की ज़रूरत होती है. ऊर्जा की माँग लगातार बढ़ रही है. और हम वास्तव में उस ऊर्जा की आपूर्ति स्वच्छ तरीक़े से भी कर सकते हैं. यह हम सबके देशों के लिए एक बहुत बड़ा अवसर है. केरी इन इस मोर्चे पर पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि मुझे पता है कि भारत में प्रधानमंत्री मोदी इस बदलाव पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल का एक बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है. आप उनमें से कई को जितनी जल्दी हो सके लागू कर रहे हैं. आपको कुछ कोयले का इस्तेमाल करना पड़ता है. हम सब इस कठिनाई को समझते हैं. लेकिन मेरा मानना है कि नई तकनीकों पर ध्यान देना भी बहुत ज़रूरी है. मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूँ कि परमाणु ऊर्जा (न्यूक्लियर) को भी इस शिफ्ट (ट्रांज़िशन) का हिस्सा होना चाहिए.
मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा पर काफ़ी प्रगति कर रहा है और भारी निवेश भी कर रहा है. मुझे लगता है कि राजनीतिक नेतृत्व और कंपनियों, दोनों की ओर से इस दिशा में दोगुना प्रयास करने की इच्छा और प्रतिबद्धता है.
भारत बहुत अच्छा कर रहा है: केरी
केरी ने कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण कम करने की दिशा में किए जा रहे अद्भुत कार्यों को लेकर पीएम मोदी और भारत की तारीफ की. उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री मोदी की सराहना करता हूं, मुझे लगता है कि वे यह अच्छी तरह समझते हैं. मैं उन्हें अपना मित्र मानता हूँ. मैं वास्तव में भारत की कोशिशों की प्रशंसा करता हूं और पीयूष गोयल मेरे अच्छे मित्र रहे हैं. हम बातचीत (नेगोशिएशंस) में साथ काम कर चुके हैं.
भारत पूरी दुनिया की आवाज: जॉन केरी
भारत इस ट्रांज़िशन के लिए वास्तव में बेहद महत्वपूर्ण है. इसका ग्लोबल साउथ (अफ्रीका, एशिया, यूरेशिया) में बहुत अहम योगदान और आवाज़ है. और उम्मीद है कि न सिर्फ़ वैश्विक दक्षिण में, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इसकी भूमिका बढ़ेगी. मेरी आशा है कि हम इस व्यापार विवाद को सुलझा पाएंगे.
केरी ने टैरिफ पर भारत के पक्ष की वकालत करते हुए कहा, “सच कहूँ तो भारत ने बहुत मज़बूत पेशकश की है-लगभग 60% वस्तुओं पर शून्य टैरिफ और बाकी पर समाधान की प्रक्रिया. यह एक बड़ा बदलाव है और मुझे लगता है कि हमें जल्द से जल्द बेहतर स्थिति की ओर बढ़ना चाहिए.”
‘व्यापार को दुश्मन न बनने दें, जल्द बातचीत की मेज पर आएं’
पूर्व विदेश मंत्री ने ट्रेड को लेकर पैदा हुए संबंधों में तनाव को लेकर कहा कि हमारे समक्ष असल चुनौती यह है कि हम व्यापार को दुश्मन न बना दें. हमें फिर से बातचीत की मेज़ पर लौटना चाहिए और वही करना चाहिए जो हमने पहले किया था, भले ही उस समय क्रियान्वयन उतना प्रभावी नहीं रहा. हमें फिर से समझौता करना होगा ताकि हम एक-दूसरे की मदद कर सकें. हम सबको व्यापार की ज़रूरत है. हम सबकी अपनी-अपनी चीज़ें हैं. कुछ देश एक चीज़ ज़्यादा बनाते हैं, कुछ दूसरी. लेकिन इसके लिए ईमानदारी से काम करना होगा. अगरर आप व्यापार को हथियार बना देंगे, तो समस्या सबके लिए खड़ी होगी और हम इस वैश्विक बाज़ार में अपनी वास्तविक क्षमता को कम कर देंगे.
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आपको बता दें कि केरी से पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन, इकोनोमिस्ट जैफरी सैक्स, विश्लेषक फरीद जकारिया, यूएन में पूर्व अमेरिकी राजदूत निक्की हेली सहित ने भारत के लिए ट्रंप प्रशासन के सख्त रुख पर नाराजगी जताई थी. ट्रंप ने हालिया समय में लगातार भारत पर आक्रामक रवैया अपनाया है. इसके लिए अपने ही देश में उनको आलोचना का सामना करना पड़ रहा है
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