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भारत है अहम साझेदार, पाक से ना करें तुलना... पूर्व US अधिकारियों ने ट्रंप को चेताया, कहा- आपकी नासमझी कर देगी अमेरिका का बेड़ा गर्क

भारत-अमेरिका संबंध इस समय गहरे तनाव में हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय आयात पर भारी टैरिफ लगाया जिससे व्यापार वार्ता रुक गई. इसी बीच पूर्व अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और पूर्व उप-विदेश सचिव कर्ट कैंपबेल ने चेतावनी दी है कि अगर स्थिति नहीं बदली तो वॉशिंगटन एक अहम साझेदार खो देगा और चीन इनोवेशन में बढ़त ले लेगा. उन्होंने कहा कि भारत की तुलना पाकिस्तान से करना गलत है क्योंकि भारत कहीं अधिक महत्वपूर्ण है.

05 Sep, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
01:54 AM )
भारत है अहम साझेदार, पाक से ना करें तुलना... पूर्व US अधिकारियों ने ट्रंप को चेताया, कहा- आपकी नासमझी कर देगी अमेरिका का बेड़ा गर्क
Jake Sullivan/ Donald Trump (File Photo)

भारत और अमेरिका के बीच इस समय रिश्ते अभूतपूर्व तनाव से गुजर रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयात पर भारी टैरिफ लगाने के बाद दोनों देशों के बीच जारी व्यापार वार्ता पूरी तरह ठप हो चुकी है. हालात इस कदर बिगड़े हैं कि अमेरिका के ही शीर्ष पूर्व अधिकारी अब वॉशिंगटन को चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यही स्थिति बनी रही तो भारत जैसे अहम रणनीतिक साझेदार को खोना पड़ सकता है और इसका सीधा फायदा चीन को मिल जाएगा.

पूर्व अधिकारियों की चेतावनी

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और पूर्व उप-विदेश सचिव कर्ट एम. कैंपबेल ने ‘फॉरेन अफेयर्स’ मैग्जीन में लिखे अपने संपादकीय में कहा है कि भारत-अमेरिका रिश्ते दशकों से द्विदलीय समर्थन के दम पर मजबूत हुए हैं. यही साझेदारी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकने की दिशा में सबसे बड़ी ताकत साबित हुई है. उनका कहना है कि अगर मौजूदा स्थिति बदली नहीं तो वॉशिंगटन खुद अपने सबसे बड़े हितों को नुकसान पहुंचा लेगा.

भारत को प्रतिद्वंद्वियों की ओर धकेलने का खतरा

सुलिवन और कैंपबेल का मानना है कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों ने भारत-अमेरिका संबंधों में गहरी दरार डाल दी है. 50% तक टैरिफ लगाना, रूस से भारत की तेल खरीद पर सवाल उठाना और पाकिस्तान को ज्यादा महत्व देना, इन सबने भरोसे को कमजोर किया है. हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन से हुई थी. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अमेरिका ने अपना रवैया नहीं बदला तो भारत मजबूर होकर चीन और रूस जैसे प्रतिद्वंद्वियों की ओर झुक सकता है.

पाकिस्तान की तुलना से अधिकारियों की नाराजगी

भारत की सबसे बड़ी आपत्ति अमेरिका की “भारत-पाकिस्तान” नीति को लेकर है. पूर्व अमेरिकी अधिकारी साफ कहते हैं कि पाकिस्तान से जुड़े मुद्दे आतंकवाद और परमाणु प्रसार तक सीमित हैं. जबकि भारत से अमेरिका के संबंध बहुआयामी हैं – तकनीक, व्यापार, रणनीति और वैश्विक संतुलन तक फैले हुए. ऐसे में भारत को पाकिस्तान की बराबरी में रखना न केवल अनुचित है बल्कि रणनीतिक भूल भी है.

अमेरिका-पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकी

पिछले दिनों अमेरिका ने पाकिस्तान को व्यापार, आर्थिक विकास और यहां तक कि क्रिप्टोकरेंसी सहयोग का आश्वासन दिया. पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर का व्हाइट हाउस में स्वागत भी हुआ. इतना ही नहीं, अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ तेल समझौते पर भी हस्ताक्षर किए. इसके ठीक बाद भारत के सामान पर 25% तक का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया गया. इस कदम को भारत में अमेरिका की दोहरी नीति के तौर पर देखा जा रहा है.

नई रणनीतिक संधि का प्रस्ताव

सुलिवन और कैंपबेल का मानना है कि भारत और अमेरिका को एक नई रणनीतिक संधि पर काम करना चाहिए. यह संधि अमेरिकी सीनेट की मंजूरी के साथ औपचारिक रूप ले सकती है. इसमें पांच बड़े स्तंभ होंगे, सुरक्षा, समृद्धि, साझा मूल्य, तकनीकी सहयोग और वैश्विक स्थिरता. इसके जरिए न केवल मौजूदा संकट सुलझेगा बल्कि आने वाले दशक की दिशा भी तय होगी.

तकनीकी साझेदारी की जरूरत

दोनों पूर्व अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि भारत और अमेरिका को 10 वर्षीय कार्ययोजना पर सहमत होना चाहिए. इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, बायोटेक्नोलॉजी, क्वांटम तकनीक, स्वच्छ ऊर्जा, दूरसंचार और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में साझेदारी हो. उनका मानना है कि “प्रमोट एजेंडा” (निवेश, अनुसंधान और प्रतिभा का साझा उपयोग) और “प्रोटेक्ट एजेंडा” (साइबर सुरक्षा और निर्यात नियंत्रण) दोनों पर मिलकर काम करना होगा. इससे चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों को इनोवेशन में बढ़त लेने से रोका जा सकेगा.

ऐतिहासिक साझेदारी का महत्व

पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका संबंध लगातार मजबूत हुए हैं. जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और मनमोहन सिंह के बीच हुआ नागरिक परमाणु समझौता इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वहीं बाइडेन-मोदी दौर में एआई, बायोटेक और एयरोस्पेस में नए समझौते हुए. विशेषज्ञों का मानना है कि इन रिश्तों ने चीन की “लापरवाह हरकतों” को रोकने में बड़ी भूमिका निभाई है. ऐसे में अगर यह साझेदारी कमजोर होती है तो इंडो-पैसिफिक का संतुलन बिगड़ सकता है.

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बताते चलें कि आज की हकीकत यही है कि भारत और अमेरिका दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है. जहां अमेरिका भारत के बिना चीन को रोकने की रणनीति पूरी नहीं कर सकता, वहीं भारत को भी तकनीकी सहयोग और वैश्विक मंच पर अमेरिकी समर्थन की आवश्यकता है. लेकिन टैरिफ, पाकिस्तान नीति और दोहरी रणनीति जैसी रुकावटें रिश्तों को कमजोर कर रही हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले महीनों में अगर दोनों देश ईमानदारी से बातचीत करें और साझा कार्ययोजना पर सहमत हों तो यह संकट अवसर में बदल सकता है. भारत और अमेरिका की साझेदारी केवल द्विपक्षीय संबंध नहीं है, बल्कि यह पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता की गारंटी भी है.

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