जापान की राजनीति में भूचाल, शिगेरू इशिबा ने प्रधानमंत्री पद से दिया इस्तीफा, जानें इस बड़े फैसले की असली वजह
जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने इस्तीफा देने का फैसला किया है. उन्होंने यह कदम एलडीपी में संभावित विभाजन को टालने के लिए उठाया. हाल ही में ऊपरी सदन के चुनाव में गठबंधन सरकार को हार मिली थी, जिससे इशिबा की पकड़ कमजोर हो गई. हालांकि वे अमेरिका के साथ टैरिफ वार्ता पूरी करने के लिए पार्टी प्रमुख बने रहे थे.
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जापान की सियासत एक बार फिर बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है. प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है. उनका यह कदम सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के भीतर संभावित विभाजन को रोकने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
पार्टी नेतृत्व पर उठ रहे सवाल
दरअसल, जुलाई में हुए ऊपरी सदन के चुनाव ने इशिबा सरकार की नींव हिला दी. एलडीपी और उसके सहयोगी कोमेटो को कुल 47 सीटें मिलीं, जबकि बहुमत के लिए कम से कम 50 सीटें चाहिए थीं. कुल 248 सीटों वाले इस सदन में आधी सीटों पर चुनाव हुए थे. नतीजे साफ थे. जनता अब इशिबा सरकार से खुश नहीं है. यह पहली बार नहीं था जब एलडीपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. पिछले साल अक्टूबर में हुए निचले सदन के चुनाव में भी पार्टी को बीते 15 साल का सबसे खराब नतीजा मिला था. लगातार दो बड़े चुनावी झटकों ने प्रधानमंत्री इशिबा की पकड़ कमजोर कर दी.
पार्टी में बढ़ी बगावत की आहट
एलडीपी के भीतर लंबे समय से नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठ रही थी. वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि यदि नेतृत्व नहीं बदला गया तो पार्टी का जनाधार और कमजोर हो सकता है. ऐसे में इस्तीफा देकर इशिबा ने यह संकेत दिया कि वह पार्टी में विभाजन या विद्रोह जैसी स्थिति से बचना चाहते हैं. मीडिया से बातचीत में उन्होंने खुद कहा था, "मैं इस कठोर नतीजे को गंभीरता से स्वीकार करता हूं." यह बयान साफ इशारा करता है कि प्रधानमंत्री ने हार से सबक लिया और देशहित को देखते हुए पद छोड़ने का फैसला किया.
ट्रंप से हुई टैरिफ डील का असर
इशिबा ने पहले यह संकेत दिया था कि वह पार्टी प्रमुख बने रहेंगे, क्योंकि अमेरिका के साथ चल रही अहम टैरिफ वार्ता को बीच में छोड़ना ठीक नहीं होगा. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में जापान पर लगे टैरिफ को 25 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी कर दिया है. यह राहत जापान की अर्थव्यवस्था के लिए अहम मानी जा रही है. इशिबा का कहना है कि 'हम अमेरिका के साथ बेहद जरूरी टैरिफ वार्ता में जुटे हुए हैं. इसे बिगाड़ना हमारी सबसे बड़ी गलती होगी.' दरअसल, इस वार्ता से जापान को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मजबूती मिलने की उम्मीद है. लेकिन अब जब डील पूरी हो चुकी है और राहत मिल गई है, तब इस्तीफे का रास्ता साफ हो गया.
कठिन दौर से गुजर रही जापान की राजनीति
इशिबा का इस्तीफा केवल एक व्यक्ति का फैसला नहीं है, बल्कि यह जापान की राजनीति के बदलते समीकरण का संकेत है. लगातार चुनावी हार ने जनता का भरोसा कमजोर किया है. साथ ही पार्टी में नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं. अब एलडीपी को न केवल नया प्रधानमंत्री चुनना होगा, बल्कि जनता का विश्वास दोबारा जीतने की चुनौती भी होगी. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस्तीफे के बाद पार्टी के भीतर नए चेहरों को मौका मिल सकता है. इससे एलडीपी अपनी खोई हुई साख वापस पाने की कोशिश करेगी. हालांकि, यह आसान नहीं होगा क्योंकि जापान इस समय आर्थिक दबाव और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों की जटिल परिस्थितियों से गुजर रहा है.
जापान में नए प्रधानमंत्री का चुनाव आने वाले हफ्तों में होगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी किसे नया चेहरा बनाती है. क्या एलडीपी कोई अनुभवी नेता सामने लाएगी या फिर किसी युवा और नए चेहरे को मौका मिलेगा. दूसरी ओर, अमेरिका-जापान टैरिफ डील से मिली राहत को भी जनता तक पहुंचाना बड़ी चुनौती होगी. आर्थिक सुधार और जनता का भरोसा दोबारा जीतना अगले प्रधानमंत्री के सामने सबसे अहम काम होगा.
बताते चलें कि शिगेरू इशिबा का इस्तीफा जापान की राजनीति में बड़ा मोड़ है. यह कदम बताता है कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता की नाराज़गी को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता. चुनावी नतीजे, पार्टी के भीतर असंतोष और अंतरराष्ट्रीय दबाव इन सबने मिलकर प्रधानमंत्री को पद छोड़ने पर मजबूर किया.
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अब पूरा जापान यह जानने को उत्सुक है कि नया प्रधानमंत्री कौन होगा और वह किस तरह देश को इस राजनीतिक और आर्थिक संकट से बाहर निकालेगा. फिलहाल इतना तय है कि जापानी राजनीति एक नए दौर में प्रवेश करने जा रही है.
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