'140 करोड़ की आबादी, एक बोरी मक्का तक नहीं खरीदता...', ट्रेड और टैरिफ पर भारत को नहीं झुकता देख 'रोने' लगे ट्रंप के मंत्री, झलका असली दर्द
भारत को झुकता न देख अमेरिकी अधिकारी नई दिल्ली के कथित हाई टैरिफ़ का रोना रोने लगे हैं. ताज़ा मामले में अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक का बयान सामने आया है, जिसमें वो बोल कम, रो ज्यादा रहे हैं. उन्होंने भारत पर ग्लोबल ट्रेड से फायदा उठाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि उसने अमेरिकी कृषि के सामानों के लिए अपने बाज़ार को बंद कर रखा है.
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अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ वॉर अब और गरमाता जा रहा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में जहां भारत पर 50 फीसदी तक का भारी-भरकम टैरिफ ठोंक दिया गया है, वहीं अमेरिकी अधिकारी लगातार भारत के कथित हाई टैरिफ़ की दुहाई दे रहे हैं. ताज़ा बयान अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक का आया है, जिन्होंने भारत पर ग्लोबल ट्रेड से फायदा उठाने लेकिन अपने बाज़ार को बंद रखने का आरोप लगाया है.
वहीं अब अमेरिकी अधिकारी लगातार भारत के सख्त रुख का रोना रो रहे हैं. अमेरिकी वाणिज्य मंत्री के बयान को देखकर ऐसा लगता है कि वो बोल कम और रो ज्यादा रहे हैं. उन्होंने भारत पर ग्लोबल ट्रेड से फायदा उठाने का आरोप लगाते हुए कहा कि हिंदुस्तान ने अमेरिकी कृषि के सामानों के लिए अपने बाज़ार को बंद कर रखा है.
भारत झुक नहीं रहा, आपा खो रहे ट्रंप के मंत्री
दरअसल अमेरिका के बड़बोले मंत्री लुटनिक ने एक इंटरव्यू में भारत पर तंज कसते हुए कहा कि "भारत अपनी 140 करोड़ की आबादी(बाजार) पर गर्व तो करता है, लेकिन जब अमेरिकी कृषि निर्यात की बारी आती है तो वो अपने दरवाज़े बंद कर लेता है. वो शेखी बघारता है कि उसकी आबादी 140 करोड़ है, लेकिन हमसे एक बुशल (25 किलो) मक्का तक नहीं खरीदता. हर चीज़ पर टैरिफ़ लगा देता है."
लुटनिक ने आगे चेतावनी दी कि अगर भारत अपनी व्यापार नीति में बदलाव नहीं करता, तो "दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाज़ार (अमेरिका) के साथ व्यापार करना उसके लिए मुश्किल हो जाएगा."
And Howard Lutnick goes again on India says why doesn’t India buy US Corn. Either u remove the barriers or face tough times he says in an interview to Axios ! The Bully will soon realise he doesn’t have the cards pic.twitter.com/62SeFucKpa
— Navroop Singh (@TheNavroopSingh) September 14, 2025
अमेरिका का असली दर्द यही है!
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री ने भारत की नीतियों को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि भारत अपने बढ़ते वैश्विक प्रभाव और "फ्री मार्केट डेमोक्रेसी" होने का दावा तो करता है, लेकिन उसका संरक्षणवादी रवैया अमेरिकी कारोबारियों को बार-बार निराश करता है.
लुटनिक ने कहा कि "यह निष्पक्षता की बात है. अमेरिका खुलेआम भारतीय सामान खरीदता है, लेकिन जब हम अपना सामान भारत में बेचना चाहते हैं, तो दीवारें खड़ी कर दी जाती हैं." उन्होंने विशेष तौर पर कृषि क्षेत्र की बाधाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यह रवैया व्यापारिक साझेदारी को असंतुलित करता है. उन्होंने भारत द्वारा रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदने को भी वॉशिंगटन के लिए "नासूर" बताया. लुटनिक ने माना कि भारत को अपने विकास के लिए सस्ती ऊर्जा की ज़रूरत है, लेकिन इसके चलते वैश्विक व्यापार कूटनीति में असंतुलन पैदा हो रहा है.
फिर भी, उन्होंने यह भी साफ किया कि अमेरिका-भारत के रिश्ते सिर्फ व्यापारिक तनाव तक सीमित नहीं हैं. दोनों देश रक्षा, तकनीक और निवेश के क्षेत्र में रणनीतिक साझेदार बने हुए हैं. हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि कृषि शुल्क से लेकर तेल खरीद तक, इन व्यापारिक अड़चनों का बने रहना तय है.
लुटनिक के बयानों से इतर एक नई खबर सामने आई है. पिछले हफ़्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत में राजदूत पद के लिए नामित सर्जियो गोर ने सीनेट की विदेश संबंध समिति को बताया कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता अब दूर नहीं है. गोर के मुताबिक, बातचीत अहम चरण में पहुंच चुकी है और ट्रंप ने भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के प्रतिनिधिमंडल को अगले हफ़्ते अमेरिका आने का न्योता दिया है.
भारत अपने रुख पर कायम
भारत और अमेरिका के बीच टकराव कम होने का नाम नहीं ले रहा है. अमेरिका ने रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ का दबाव बना दिया है, लेकिन नई दिल्ली अपने रुख पर अडिग है. भारत का साफ कहना है कि सस्ते रूसी तेल से उसके नागरिकों को राहत मिलती है और इस हित की अनदेखी किसी कीमत पर नहीं की जाएगी.
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इसी बीच वॉशिंगटन की ओर से दबाव बढ़ाते हुए भारत से डेयरी और कृषि क्षेत्र खोलने की मांग की गई, लेकिन सरकार ने इसे ठुकरा दिया. वजह साफ है, अगर ऐसा हुआ तो लाखों भारतीय किसानों की रोज़ी-रोटी खतरे में पड़ सकती है.
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