ममता बनर्जी ने की उमर अब्दुल्ला को नजरबंद किए जाने की आलोचना, कहा- यह लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने जैसा
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी का समर्थन मिला है. सोमवार को ममता बनर्जी ने उमर अब्दुल्ला का पक्ष लेते हुए कहा कि यदि वे श्रीनगर में 1931 में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने जाते हैं, तो उसमें गलत क्या है.
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जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी का समर्थन मिला है. सोमवार को ममता बनर्जी ने उमर अब्दुल्ला का पक्ष लेते हुए कहा कि यदि वे श्रीनगर में 1931 में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने जाते हैं, तो उसमें गलत क्या है. उन्होंने उमर अब्दुल्ला और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को शहीदों के कब्रिस्तान जाने से रोकने और नजरबंद करने की कड़ी आलोचना की. ममता ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया.
‘यह लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने जैसा…’
उन्होंने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताया और कहा कि यह किसी नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने जैसा है. बनर्जी ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर पोस्ट में कहा, "शहीदों के कब्रिस्तान में जाने में क्या गलत है? यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकार को भी छीनता है." उन्होंने आगे लिखा है, "निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ जो हुआ वह अस्वीकार्य है. चौंकाने वाला और शर्मनाक
विपक्षी दलों के कई नेता नजरबंद
दरअसल, रविवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, नेशनल कॉन्फ्रेंस और विपक्षी दलों के कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था, ताकि वे 'शहीद दिवस' के अवसर पर श्रीनगर के नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान न जा सकें. यह वही स्थल है जहां 13 जुलाई 1931 को डोगरा सेना की गोलीबारी में मारे गए 22 लोगों को श्रद्धांजलि दी जाती है.
सोमवार को नजरबंदी के बावजूद उमर अब्दुल्ला कब्रिस्तान पहुंचे और मुख्य गेट फांदकर अंदर घुस गए. उन्होंने दावा किया कि उन्हें वहां जाने से रोकने के लिए धक्का-मुक्की की गई, लेकिन उन्होंने साफ कहा कि वे अब पीछे हटने वाले नहीं हैं.
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दीवार फांदकर पहुंचे उमर अब्दुल्ला, पैदल तय किया रास्ता
श्रीनगर में शहीद दिवस के मौके पर उमर अब्दुल्ला ने सुरक्षा प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए कब्रिस्तान तक पहुंचने का संकल्प दिखाया. उनके पिता और नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला खानयार चौक से शहीद स्मारक तक एक ऑटो-रिक्शा में पहुंचे, जबकि शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी पर पीछे बैठकर वहां तक गईं.
प्रशासन ने खानयार और नौहट्टा की ओर से शहीद कब्रिस्तान जाने वाली सड़कों को पूरी तरह सील कर दिया था. जैसे ही उमर अब्दुल्ला का काफिला पुराने श्रीनगर के खानयार क्षेत्र में पहुंचा, वे अपनी गाड़ी से उतर गए और एक किलोमीटर से अधिक की दूरी पैदल तय की. लेकिन कब्रिस्तान का मुख्य द्वार बंद मिला. इसके बाद उन्होंने दीवार फांदकर पार्क के रास्ते अंदर प्रवेश किया.
गौरतलब है कि 13 जुलाई 1931 को श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर डोगरा सेना की गोलीबारी में मारे गए 22 लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है.
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