CM धामी के लिए आसान नहीं था सियासी रूप से 'अछूत' UCC को लागू करना... लेकिन दमदार नेतृत्व-दृढ़ इच्छाशक्ति ने असंभव को बना दिया संभव
दशकों से देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा होती रही है, लेकिन जब भी इसे लागू करने की बात उठी, तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, धार्मिक तुष्टिकर और वोट बैंक की राजनीति इसकी राह में बाधा बनते रहे. कई राज्यों ने इसे संवेदनशील और सांप्रदायिक मुद्दा कहकर टाल दिया. लेकिन देवभूमि उत्तराखंड की सरकार ने इस डर को दरकिनार कर एक सकारात्मक और साहसिक पहल करते हुए यह सिद्ध किया कि अगर नीयत साफ हो, कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो बड़े से बड़े पहाड़ से भी पार पाया जा सकता है, अगर ठान लिया जाए तो बड़े से बड़ा बदलाव भी संभव है. अब जब धामी के 4 साल हो रहे हैं तो ये समझना कितना जरूरी है कि ये कितनी बड़ी उपलब्धि है.

140 करोड़ से ज्यादा आबादी वाला देश, जहां करीब 25 करोड़ मुस्लिम रहते हों, जो भारत का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक है, वो किसी कानून का विरोध करता हो, जिसके वोट बैंक के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती हो, जहां तमाम दल सीमा पार जाकर भी तुष्टिकरण करते आए हों, जहां मामला धार्मिक न हो कर भी धार्मिक बना दिया जाता हो, वहां तीन तलाक, यूसीसी और एनआरसी की बात करना भी आग से खेलने के समान माना जाता है, ये दिल्ली, असम, बंगाल में NRC-UCC को लेकर हुई हिंसा के दौरान दिखी भी.
जब देशभर में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code - UCC) सिर्फ़ एक चुनावी वादा या बयानबाजी तक सीमित रहा हो, किसी ने सोचा नहीं कि इसे कभी लागू भी किया जा सकेगा, उस वक्त उत्तराखंड ने इसे ज़मीन पर उतारकर इतिहास रच दिया. और ये करने का श्रेय जाता है प्रदेश में बीजेपी के सबसे युवा, उर्जावान और सबसे ज्यादा समय तक सीएम रहने का इतिहास बनाने वाले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को. उन्होंने साहसिक और दूरदर्शी नेतृत्व का परिचय देते हुए वह कार्य कर दिखाया, जिसे लागू करने से कई राज्य सरकारें दशकों से कतराती रही थीं और अब भी इसे कूड़ेदान में फेंकने की बात करते हैं, ताकि उनका वोटबैंक बचा रहे.
UCC, जिसका मुख्य उद्देश्य है कि भारत के सभी नागरिकों को विवाह, तलाक, गोद लेने, और उत्तराधिकार जैसे मामलों में एक समान कानून के तहत लाया जाए, सही मायने में संविधान को सम्मान दिया जाए. यूसीसी का मतलब है कि बिना इस बात की परवाह किए कि व्यक्ति किस धर्म या समुदाय से आता है, सबको एक कानून के छाते के अंदर लाना. यह कदम भारतीय संविधान की भावना — समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय को मज़बूती देता है.
दशकों से देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा होती रही है, लेकिन जब भी इसे लागू करने की बात उठी, तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, धार्मिक तुष्टिकर और वोट बैंक की राजनीति इसकी राह में बाधा बनते रहे. कई राज्यों ने इसे संवेदनशील और सांप्रदायिक मुद्दा कहकर टाल दिया. लेकिन देवभूमि उत्तराखंड की सरकार ने इस डर को दरकिनार कर एक सकारात्मक और साहसिक पहल करते हुए यह सिद्ध किया कि अगर नीयत साफ हो, कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो बड़े से बड़े पहाड़ से भी पार पाया जा सकता है, अगर ठान लिया जाए तो बड़े से बड़ा बदलाव भी संभव है.
बात है 2022 के विधानसभा चुनावों की, उस चुनावी कैंपेन के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने UCC को अपने घोषणापत्र में प्रमुख स्थान दिया था. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इसे केवल एक वादा बनाकर नहीं छोड़ा, उन्होंने जुमला नहीं बवाया बल्कि उसे लागू करने की दिशा में त्वरित और ठोस कदम उठाए. एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान, कानूनविद और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे. जनसुनवाइयां करवाई गईं, आम जनता से राय मांगी गई, और फिर एक ऐसा कानून तैयार किया गया जो संतुलित, न्यायसंगत और व्यापक हो.
2024 में उत्तराखंड विधानसभा ने इस विधेयक को पारित कर दिया और 2025 में इसे औपचारिक रूप से लागू कर दिया गया. इसके साथ ही उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया जिसने नए सिरे से व्यापक रूप में UCC को लागू किया (हालांकि गोवा में पुर्तगाली कानून की विरासत के रूप में पहले से कुछ हद तक समान कानून मौजूद था).
इस कानून की प्रमुख विशेषताओं में बहुविवाह पर रोक, बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार, विवाह और तलाक की प्रक्रिया का सरलीकरण, लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने की प्रक्रिया और आदिवासी समुदायों को विशेष छूट शामिल हैं. इन प्रावधानों से समाज में व्याप्त कई विसंगतियों को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हुई है.
UCC क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों है?
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) का मतलब है कि भारत के हर नागरिक के लिए, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से जुड़ा हो, एक ही जैसे कानून लागू हों, खासतौर पर विवाह, तलाक, गोद लेना और संपत्ति जैसे मामलों में. इसका मकसद है कि किसी भी नागरिक के साथ, उसके धर्म या परंपरा के नाम पर भेदभाव न हो और सभी को समान अधिकार मिलें.
फिलहाल हमारे देश में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं. इसी वजह से कई बार खासकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन होता है. ऐसे में UCC एक ऐसा कदम है जो सामाजिक समरसता, न्याय और बराबरी की भावना को सशक्त करता है.
उत्तराखंड में UCC लागू करने की प्रक्रिया
उत्तराखंड सरकार ने इस गंभीर और संवेदनशील विषय पर गहराई से विचार-विमर्श के लिए मई 2022 में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की. इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने की. समिति में पूर्व मुख्य सचिव, महिला अधिकार कार्यकर्ता, कानूनविद और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे.
समिति ने प्रदेश के हर जिले में जाकर जन संवाद किया, ऑनलाइन माध्यम से राय ली, और फील्ड सर्वे किए. लगभग 2.33 लाख सुझाव और 43 बैठकें करने के बाद एक 210 पृष्ठों की रिपोर्ट तैयार की गई. इस रिपोर्ट के आधार पर विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत किया गया और उसे पास कर दिया गया.
UCC उत्तराखंड विधेयक 2024 में बिंदुवार क्या-क्या है?
1. विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार पर एक समान कानून – अब हर धर्म और जाति के लिए एक ही नियम होगा.
2. बहुविवाह और एकतरफा तलाक पर रोक – महिलाओं के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम.
3. बेटी और बेटे को बराबर संपत्ति का अधिकार – अब संपत्ति में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होगा.
4. हर विवाह का पंजीकरण अनिवार्य ताकि वैवाहिक संबंध का वैधानिक प्रमाण रहे.
5. लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण जरूरी, इससे महिलाओं की सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी.
6. धर्मनिरपेक्ष गोद लेने की व्यवस्था– अब कोई भी नागरिक किसी धर्म के बच्चे को गोद ले सकता है, सभी को समान अधिकार मिलेगा.
UCC के सामाजिक प्रभाव
महिलाओं को कानूनी सुरक्षा और समान अधिकार मिलेंगे, जो अब तक कई बार उन्हें नहीं मिल पाते थे.
धर्म और परंपराओं के नाम पर होने वाले भेदभाव पर अंकुश लगेगा.
विवाह और पारिवारिक मामलों में एकरूपता आने से झगड़े और विवाद कम होंगे.
भारतीय संविधान के मूल आदर्श न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व अब ज़मीनी रूप में दिखाई देंगे.
उत्तराखंड ने यह साबित कर दिया कि अगर नेतृत्व ईमानदार और निश्चयी हो, तो समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है. समान नागरिक संहिता सिर्फ कानून नहीं, यह न्यायपूर्ण और एकजुट भारत.. की ओर एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम है.
उत्तराखंड का यह कदम अब अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन गया है. देशभर में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या दूसरे राज्य भी इस दिशा में पहल करेंगे. केंद्र सरकार ने भी इस मॉडल की सराहना की है और इसे रोल मॉडल के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने भी उत्तराखंड के यूसीसी कानून पर बात करते हुए कहा था कि यह एक बहुत बड़ा सामाजिक और एक प्रकार से करोड़ो लोगों के जीवन को छूने वाला कानून है. हमने उत्तराखंड में एक निवर्तमान सुप्रीम कोर्ट की जज साहिबा की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी, जिससे एक रिपोर्ट दी, जिसे उत्तराखंड ने एडॉप्ट कर लिया. अब इसकी रिलिजियश और लीगल स्क्रूटनी होगी, इसके बाद सुझाव भी आएंगे. इस सभी को समाहित करके धीरे धीरे भाजपा के हर राज्य में नियम आएगा.
उत्तराखण्ड ने जो पहल की है, वह न केवल राज्य के लिए गौरव की बात है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करती है कि संविधान में जो लिखा गया है, उसे धरातल पर उतारने का साहस कैसे दिखाया जाए. यह फैसला दर्शाता है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत हो और जनसमर्थन साथ हो, तो दशकों से लंबित संवैधानिक संकल्पों को भी साकार किया जा सकता है.
उत्तराखंड का यह कदम अब अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन गया है. देशभर में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या दूसरे राज्य भी इस दिशा में पहल करेंगे. केंद्र सरकार ने भी इस मॉडल की सराहना की है और इसे रोल मॉडल के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने भी उत्तराखंड के यूसीसी कानून पर बात करते हुए कहा था कि यह एक बहुत बड़ा सामाजिक और एक प्रकार से करोड़ो लोगों के जीवन को छूने वाला कानून है. हमने उत्तराखंड में एक निवर्तमान सुप्रीम कोर्ट की जज साहिबा की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी, जिससे एक रिपोर्ट दी, जिसे उत्तराखंड ने एडॉप्ट कर लिया. अब इसकी रिलिजियश और लीगल स्क्रूटनी होगी, इसके बाद सुझाव भी आएंगे. इस सभी को समाहित करके धीरे धीरे भाजपा के हर राज्य में नियम आएगा.
इस ऐतिहासिक निर्णय ने यह सिद्ध किया कि विकास का अर्थ केवल बुनियादी ढांचे (सड़कें, पुल, भवन) का निर्माण नहीं होता, बल्कि सामाजिक न्याय, समान अधिकार और संवैधानिक मूल्यों की स्थापना भी विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है. पुष्कर सिंह धामी ने वह कर दिखाया, जिसे केवल घोषणाओं में रखा गया था. यह एक साहसिक, निर्णायक और ऐतिहासिक कदम है-पूरे देश को एकता और समानता की ओर ले जाने वाला रास्ता.
उत्तराखण्ड ने जो पहल की है, वह न केवल राज्य के लिए गौरव की बात है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करती है कि संविधान में जो लिखा गया है, उसे धरातल पर उतारने का साहस कैसे दिखाया जाए. यह फैसला दर्शाता है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत हो और जनसमर्थन साथ हो, तो दशकों से लंबित संवैधानिक संकल्पों को भी साकार किया जा सकता है.