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उत्तराखंड में CM धामी लागू करने जा रहे ‘योगी मॉडल’... लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण करने वालों की अब खैर नहीं! जानें कानून में क्या हैं बड़े बदलाव

उत्तराखंड सरकार लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए नया कानून लाने जा रही है. प्रस्तावित संशोधन में 20 साल से उम्रकैद तक की सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान होगा. 12 अगस्त को कैबिनेट ने धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) बिल 2025 को मंजूरी दी. इसमें डिजिटल माध्यमों से धर्मांतरण, छिपाकर विवाह और ट्रैफिकिंग को भी दंडनीय बनाया गया है. यह बिल 19 अगस्त से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में पेश होगा.

18 Aug, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
06:08 AM )
उत्तराखंड में CM धामी लागू करने जा रहे ‘योगी मॉडल’... लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण करने वालों की अब खैर नहीं! जानें कानून में क्या हैं बड़े बदलाव
Source: X/ @pushkardhami

उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार एक बड़ा और सख्त कदम उठाने जा रही है. सरकार ने जबरन धर्मांतरण और लव जिहाद को रोकने के लिए यूपी के योगी मॉडल की तर्ज पर नया कानून लाने की तैयारी कर ली है. इस कानून में ऐसे अपराधों पर 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है. 12 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई और अब यह बिल मानसून सत्र में विधानसभा के सामने पेश होगा. मानसून सत्र 19 अगस्त से भराड़ी सैंड में शुरू हो रहा है.

जबरन धर्मांतरण पर सरकार की सख्ती क्यों

दरअसल, राज्य सरकार का कहना है कि पिछले कुछ समय से जबरन धर्मांतरण के मामलों में तेजी आई है. खासकर महिलाओं को निशाना बनाए जाने के मामले बढ़े हैं. कई बार धार्मिक पहचान छुपाकर शादी करने की घटनाएं सामने आई हैं, जिन्हें भाजपा लव जिहाद बताती रही है. कुछ समय पहले विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत शादी करने वाले अलग धर्म के जोड़ों को धमकियां और विरोध का सामना करना पड़ा. इन घटनाओं ने सरकार को इस कानून को और कड़ा करने की दिशा में प्रेरित किया.

बिल में किए गए मुख्य बदलाव

धर्मांतरण की परिभाषा अब और व्यापक कर दी गई है. अगर कोई व्यक्ति डिजिटल माध्यमों जैसे ईमेल, मैसेज या सोशल मीडिया के जरिए किसी को धर्म बदलने के लिए उकसाता है या साजिश करता है तो यह अपराध माना जाएगा. इसी तरह, किसी धर्म की परंपराओं या मान्यताओं की तुलना करके दूसरे धर्म का अपमान करना, या एक धर्म की महिमा गाकर दूसरे धर्म को नीचा दिखाना भी अब दंडनीय अपराध होगा.

छुपाकर शादी करना होगा अपराध

इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति विवाह के लिए अपनी धार्मिक पहचान छुपाता है तो अब उस पर 3 से 10 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा. इस अपराध में पीड़ित सिर्फ वही व्यक्ति नहीं होगा जिसे सीधे तौर पर नुकसान पहुंचा है, बल्कि उसके अभिभावक और कानूनी उत्तराधिकारी भी पीड़ित माने जाएंगे. धर्मांतरण अपराध से अगर किसी ने संपत्ति हासिल की है तो उसे जिला मजिस्ट्रेट जब्त कर सकता है. इतना ही नहीं, आरोपी पर दोष सिद्ध करने का बोझ भी रहेगा.

सजा और जुर्माने में बड़ी बढ़ोतरी

  • धामी सरकार ने 2018 में बनाए गए कानून की तुलना में इस बार सजा को कई गुना बढ़ा दिया है.
  • पहले 2018 में जबरन धर्मांतरण पर 5 साल तक की सजा का प्रावधान था.
  • 2022 में इसे 2 से 10 साल जेल और 25,000 रुपये जुर्माना कर दिया गया.

अब 2025 में नया संशोधन और भी सख्त है. नए बिल के मुताबिक सामान्य अपराध में 3–10 साल जेल और 50,000 रुपये जुर्माना. अगर पीड़ित महिला, बच्चा, SC/ST या विकलांग है तो सजा 5–14 साल और न्यूनतम 1 लाख रुपये जुर्माना. जबरन विवाह या ट्रैफिकिंग के जरिए धर्मांतरण पर 20 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा और पीड़ित की चिकित्सा व पुनर्वास का खर्च अपराधी से वसूला जाएगा.

विदेशी फंडिंग पर कड़ा शिकंजा

कानून में एक और बड़ा प्रावधान जोड़ा गया है. अगर धर्मांतरण में विदेशी या प्रतिबंधित फंडिंग पाई जाती है तो अपराधी को 7–14 साल तक की सख्त जेल और न्यूनतम 10 लाख रुपये जुर्माना भुगतना होगा. इसके अलावा, धर्मांतरण के 60 दिन के भीतर जिला मजिस्ट्रेट को इसकी जानकारी देना अनिवार्य होगा. पीड़ित या उसके परिवार का कोई भी सदस्य इस मामले में एफआईआर दर्ज करा सकेगा.

राज्य की राजनीतिक पृष्ठभूमि

उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी लगभग 14 प्रतिशत है. भाजपा लंबे समय से इस मुद्दे को उठाती रही है. हाल ही में धामी सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू किया. इसके अलावा कृषि भूमि पर बाहरी लोगों के लिए पाबंदी लगाई गई और कई अवैध मदरसों पर भी कार्रवाई हुई. विश्लेषकों का मानना है कि इस कानून से राज्य की राजनीति और ज्यादा गर्मा सकती है. जहां भाजपा इसे महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन के लिए आवश्यक बता रही है, वहीं विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की कोशिश कह सकता है.

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गौरतलब है कि उत्तराखंड की धामी सरकार के इस फैसले के बाद अब सबकी निगाहें विधानसभा पर टिकी हैं जहां 19 अगस्त से मानसून सत्र की शुरुआत हो रही है. सरकार को पूरा विश्वास है कि यह बिल पास हो जाएगा क्योंकि भाजपा के पास सदन में बहुमत है. हालांकि, इसका सामाजिक और राजनीतिक असर आने वाले महीनों में और स्पष्ट होगा. यह तय है कि यह कानून देशभर में चर्चा का विषय बनेगा क्योंकि कई राज्य पहले ही ऐसे प्रावधान लागू कर चुके हैं और बाकी राज्य भी इस दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.

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