भारत में शामिल होना चाहता था नेपाल, लेकिन... तत्कालीन राजा त्रिभुवन बीर विक्रम शाह ने प्रधानमंत्री नेहरू को दिया था ऑफ़र? पढ़िए दिलचस्प किस्सा
नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने साल 1949 और 50 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को नेपाल को भारत में विलय करने का ऑफर दिया था, लेकिन नेहरू ने उनका यह ऑफर ठुकरा दिया था.
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नेपाल में बीते 72 घंटे से हिंसा अब उग्र रूप ले चुकी है. देश के प्रधानमंत्री इस्तीफ़ा दे चुके हैं. चारों तरफ़ आगजनी और तोड़फोड़ देखने को मिल रही है. राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट और कई सरकारी भवनों व मंत्रियों के आवास को आग के हवाले किया जा चुका है. हालात बिगड़ते जा रहे हैं. ऐसे में अब उपद्रवियों पर काबू पाने के लिए नेपाल आर्मी मैदान में उतर चुकी है. इस घटना पर भारत ने भी दुख जताया है और सभी प्रदर्शनकारियों से शांति की अपील की है. भारत हमेशा से नेपाल का खास मित्र रहा है. कई दशकों से दोनों देशों के संबंध बेहतर रहे हैं. नेपाल भारत की कई चीज़ों पर निर्भर है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक समय नेपाल भारत का हिस्सा बनना चाहता था? यह कहानी साल 1949 और 1950 की है. तो चलिए जानते हैं कि इसके पीछे की पूरी कहानी क्या है.
भारत का हिस्सा बनना चाहता था नेपाल
यह कहानी साल 1949 और 1950 की है, जब चीन में कम्युनिस्ट क्रांति हुई थी और वह विस्तारवादी नीति के तहत 1950 तक तिब्बत पर कब्ज़ा कर चुका था. उस दौर में चीन और भारत का पड़ोसी, जो दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था, यानी नेपाल—राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था. उस वक्त नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह थे. चीन की लगातार बढ़ती आक्रामकता को देखकर वह चिंतित हो गए थे. इस दौरान उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को यह ऑफ़र दिया था कि नेपाल को भारत में विलय कर लिया जाए और उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया जाए. हालांकि, जवाहरलाल नेहरू ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
"नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसे ही रहना चाहिए"
नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह का प्रस्ताव ठुकराने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने उनसे कहा था कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसे ही रहना चाहिए. बता दें कि इस बात का उल्लेख भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब "The Presidential Years" में मिलता है.
"इंदिरा गांधी होतीं तो वह अवसर का लाभ उठातीं"
प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब के 11वें अध्याय My Prime Ministers: Different Styles, Different Temperaments में लिखा है कि अगर इंदिरा गांधी नेहरू की जगह प्रधानमंत्री होतीं, तो शायद वह नेपाल के राजा द्वारा दिए गए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेतीं और इस अवसर का लाभ उठातीं—जैसे उन्होंने सिक्किम के मामले में किया था.
उन्होंने आगे यह भी लिखा कि सभी प्रधानमंत्रियों की अपनी कार्यशैली होती है. लाल बहादुर शास्त्री, नेहरू से बिल्कुल अलग रुख अपनाया करते थे. विदेश नीति, सुरक्षा और आंतरिक प्रशासन जैसे मुद्दों पर प्रधानमंत्रियों के बीच धारणाओं का फर्क हो सकता है, भले ही वे एक ही पार्टी से क्यों न जुड़े हों.
जवाहरलाल नेहरू ने अपनाया था कूटनीतिक रुख
प्रणब मुखर्जी ने आगे लिखा है कि पंडित नेहरू ने नेपाल के मुद्दे पर कूटनीतिक रुख अपनाया था. नेपाल में राणाओं के शासन को राजशाही से बदल दिया गया था. वहीं, नेहरू चाहते थे कि वहां लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था स्थापित हो. उन्होंने तब राजा त्रिभुवन से कहा था कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसे ही रहना चाहिए.हालांकि, कुछ इतिहासकारों ने इस दावे की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि यह संभवतः नेहरू की छवि धूमिल करने के लिए फैलाई गई एक अफ़वाह है.
"1846 से 1951 तक नेपाल पर राणा शासकों का शासन था"
आपको बता दें कि 1846 से 1951 तक नेपाल पर राणा शासकों का शासन था. इस दौरान नेपाल लगभग पूरी दुनिया से कटा रहा. साल 1949 में पड़ोसी चीन में कम्युनिस्ट क्रांति हुई और वहां सत्ता परिवर्तन हुआ. उस समय नेपाल के राजा त्रिभुवन विदेश में थे. 1951 में जब वह नेपाल लौटे, तब उन्होंने राजशाही की पुनः स्थापना की. इस दौरान चीन के आक्रामक रवैए को देखकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से नेपाल को भारत में विलय करने का अनुरोध किया, लेकिन नेहरू ने इसे ठुकरा दिया.
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