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आतंकियों ने डॉक्टरों को क्यों चुना..? क्या है ‘व्हाइट कोट कांस्पिरेसी थ्योरी’..? जाँच में हुआ बड़ा खुलासा!

Delhi Blast conspiracy: आतंकियों ने अब तक अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए पूराने तरीकों का इस्तेमाल किया है, लेकिन दिल्ली ब्लास्ट के जांच में आतंकियों की नई थ्योरी खुलकर सामने आ रही है.

13 Nov, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
08:45 AM )
आतंकियों ने डॉक्टरों को क्यों चुना..? क्या है ‘व्हाइट कोट कांस्पिरेसी थ्योरी’..?  जाँच में हुआ बड़ा खुलासा!

दिल्ली में हुए आतंकी हमले के बाद अब इसकी गुत्थियों को जांच एजेंसियां धीरे-धीरे सुलझा रही हैं. बहुत जल्द ही इसके आखिरी कड़ी तक का पता लग जाएगा. अभी तक की जांच में जो कुछ भी खुलकर सामने आया है, वो बहुत ही चौंकाने वाला है. अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए आतंकियों ने एक नए टेरर मॉड्यूल का ईजाद किया था ताकि ये अपने काम को अंजाम तक पहुंचा भी दें और किसी को भनक तक न लगे. लेकिन कहते हैं न, बुराई चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है. ऐसा ही कुछ दिल्ली ब्लास्ट में शामिल आतंकियों के साथ हुआ है. अब उनके एक-एक नापाक ‘कांस्पिरेसी थ्योरी’ का पर्दाफाश हो रहा है.

क्या है ‘व्हाइट कोट टेरर कांस्पिरेसी थ्योरी’

आतंकी हमले के लिए अभी तक जिन भी थ्योरी का इस्तेमाल आतंकियों द्वारा किया जाता रहा है, वो सब अब पूराना हो चुका है. इसलिए अब इन आतंकियों ने एक नई थ्योरी पर काम किया, ‘व्हाइट कोट टेरर कांस्पिरेसी थ्योरी’. इसके तहत इसमें सभी डॉक्टरों को जोड़ा गया. ये डॉक्टर अमोनियम नाइट्रेट और दूसरे विस्फोटक सामग्री को किराए के कमरों और गाड़ियों में छिपा रहे थे. 

आतंकी मंसूबों को अंजाम देने के लिए डॉक्टर ही क्यों?

दिल्ली ब्लास्ट के बाद जांच में जो कुछ भी खुलासा हो रहा है, उसमें डॉक्टरों की संलिप्तता ने सबको हैरान किया है. क्योंकि अभी तक यही माना जाता था कि कम पढ़े लिखे या फिर अनपढ़ों का ब्रेन वॉश बड़े ही आसानी से हो जाता है, लेकिन यहां तो पढ़े लिखे डॉक्टरों की लंबी फेहरिस्त है जो इस ब्लास्ट में आरोपी हैं. ऐसे में यही कहा जा रहा है कि डॉक्टरों का इसमें शामिल होना ही आतंकियों की एक नई ‘कांस्पिरेसी थ्योरी’ है. क्योंकि इसमें आतंकियों के लिए सबसे बड़ी बात ये थी कि किसी को इन पर शक नहीं होता, क्योंकि ये सभी 'वाइट कॉलर जॉब’ में शामिल थे. 

आपस में कैसे संपर्क करते थे डॉक्टर?

आतंकी आपस में संपर्क साधने के लिए जिस माध्यम का इस्तेमाल करते थे उसका नाम ‘सेशन ऐप’ है. इसकी खासियत ये है कि इसमें कोई सेंट्रल सर्वर नहीं है. साथ ही ये ऐप ना तो डेटा सेल करता है और ना ही डेटा लीक करता है. ‘सेशन ऐप’ पूरी तरह से एक निजी अकाउंट क्रिएशन है. इस ऐप पर अकाउंट बनाने के लिए फोन नंबर और ईमेल आईडी की जरूरत नहीं होती है. 

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