हिंदी-हिंदुत्व का विरोध, मराठी मानुष का नारा, फिर भी रहे फ्लॉप…मजबूरी में साथ आए उद्धव-राज ठाकरे, साथ लड़ेंगे BMC चुनाव
लाख प्रयास, मराठी मानुष का नारा और एंटी हिंदी नैरेटिव बनाने के बावजूद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को महाराष्ट्र की जनता का आशीर्वाद नहीं मिल रहा है. जहां उद्धव गुट को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है, वहीं राज ठाकरे का लगातार तीन चुनावों से खाता तक नहीं खुल पा रहा है. इसी कारण दोनों भाई अब BMC में साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
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महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों-नगर परिषद और नगर पंचायत-में मिली करारी हार ने मातोश्री में हड़कंप मचा दिया है. लगातार मुंह की खाने के बाद ठाकरे ब्रदर्स साथ आने पर मजबूर हो गए हैं. इसी का नतीजा है कि दशकों तक पारिवारिक नाराजगी और बालासाहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत की लड़ाई को साइड में रखकर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के कुल 29 नगर निगम चुनावों के लिए हाथ मिला लिया है. अब यह स्पष्ट हो गया है कि मुकाबला जोरदार होने वाला है. ठाकरे परिवार अब एकजुट होकर भारत की सबसे अमीर और नामी-गिरामी BMC का चुनाव साथ लड़ेगा.
आपको बता दें कि शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के संस्थापक राज ठाकरे ने बुधवार को बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) और नासिक नगर निगम के आगामी चुनावों के लिए औपचारिक रूप से गठबंधन की घोषणा कर दी. दोनों का साथ आना मराठी वोट बैंक को मजबूत करने और भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति को चुनौती देने के उद्देश्य से एक बड़े राजनीतिक पुनर्गठन का संकेत है. दोनों चचेरे भाइयों ने दादर के छत्रपति शिवाजी पार्क में शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के स्मारक पर श्रद्धांजलि देने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गठबंधन की औपचारिक जानकारी दी.
मराठी मानुष होगा मुंबई का अगला मेयर: राज ठाकरे
राज ठाकरे ने कहा कि मुंबई का अगला मेयर गठबंधन का मराठी मानुष होगा. उद्धव ठाकरे ने कहा कि यह गठबंधन मुंबई और महाराष्ट्र की पहचान की रक्षा के लिए बनाया गया है. हम मुंबई को बांटने या इसे महाराष्ट्र से अलग करने के प्रयासों को विफल करने के लिए एक साथ आए हैं. उन्होंने मराठी मानुष से एकजुट रहने और दबाव का विरोध करने का आग्रह किया.
राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र को बचाने के लिए गठबंधन आवश्यक था. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि गिरोह चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वालों को डराने के लिए घूम रहा है. उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध कोई भी व्यक्ति, चाहे वह भाजपा के भीतर समान विचारधारा वाला व्यक्ति ही क्यों न हो, यदि गठबंधन का समर्थन करता है तो उसका स्वागत है.
2022 में टूट गई थी असली शिवसेना!
उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है. UBT-MNS गठबंधन उस फैसले से स्वतंत्र है. इसके साथ ही राज ठाकरे ने मीडिया से गठबंधन का समर्थन करने की अपील की. इस गठबंधन को व्यापक रूप से भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति का मुकाबला करने के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, खासकर मुंबई में, जहां 2022 में शिवसेना में विभाजन के बाद से मराठी वोट बंट गया है. एकजुट ठाकरे परिवार को पेश कर दोनों नेताओं का लक्ष्य शिवसेना के पारंपरिक आधार को फिर से हासिल करना है.
क्या है शिवसेना UBT और मनसे का लक्ष्य!
यह गठबंधन BMC की कुल 227 सीटों में से लगभग 113 वार्डों पर नियंत्रण करने का लक्ष्य बना रहा है, जिनमें से 72 मराठी बहुल और 41 मुस्लिम प्रभावित हैं. 2024 के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद ठाकरे के दोनों गुट अब राजनीतिक अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं. यह गठबंधन सीधे तौर पर एकनाथ शिंदे के बालासाहेब ठाकरे की विरासत के असली वारिस होने के दावे को चुनौती देता है. भाजपा के लिए, जिसका मुंबई में कभी अपना मेयर नहीं रहा, शिवसेना में बंटवारे के बाद का माहौल BMC पर कब्जा करने का एक दुर्लभ मौका है.
20 साल बाद फिर साथ आए राज और उद्धव ठाकरे!
आपको बता दें कि 27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे ने शिवसेना में उद्धव को उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद 2005-06 में शिवसेना से अलग होकर मनसे पार्टी बनाई गई थी.
ठाकरे ब्रदर्स में गठबंधन के सियासी मायने!
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एकसाथ चुनाव लड़ने से महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी वोटों का बंटवारा रुकेगा. अब तक शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अलग-अलग रहने से मराठी वोट बंटता था, लेकिन दोनों के साथ आने से यह वोट एकजुट हो सकता है. इसका सीधा असर भाजपा, महायुति और कांग्रेस-NCP गठबंधन की चुनावी रणनीति पर पड़ेगा.
बीजेपी के लिए कितनी चुनौती उद्धव और राज ठाकरे का गठबंधन!
जानकारों की मानें तो यह गठजोड़ भाजपा के लिए भी बड़ी सियासी चुनौती बन सकता है. भाजपा ने मुंबई में शहरी, गुजराती और उत्तर भारतीय मतदाताओं के बीच मजबूत पकड़ बना रखी है, लेकिन ठाकरे भाइयों की एकजुटता खासकर मध्य मुंबई और मराठी बहुल इलाकों में भाजपा की राह मुश्किल कर सकती है. हालांकि ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, जहां भावनात्मक मुद्दे-जैसे मराठी और हिंदी-हावी होते हैं, वहां दोनों भाइयों को अब तक खास सफलता नहीं मिली है.
ठाकरे ब्रदर्स और शिंदे गुट के लिए साख ही नहीं, अस्तित्व की भी लड़ाई है BMC!
उद्धव-राज के साथ आने का असर सीधे-सीधे एकनाथ शिंदे गुट पर भी पड़ेगा. शिंदे गुट की लगातार कोशिश रही है कि वह खुद को ‘असली शिवसेना’ के रूप में स्थापित करे, लेकिन ठाकरे भाइयों के साथ आने से उसकी वैधता पर सवाल खड़े हो सकते हैं और पार्टी कैडर में असमंजस की स्थिति पैदा हो सकती है. इसके साथ ही बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) की राजनीति भी केंद्र में आ जाएगी. देश की सबसे अमीर नगर निगम BMC पर लंबे समय तक शिवसेना का दबदबा रहा है. दोनों ठाकरे भाइयों के साथ आने से उद्धव ठाकरे की खोई हुई राजनीतिक जमीन मजबूत हो सकती है और BMC पर नियंत्रण की लड़ाई में नया मोड़ आ सकता है.
BMC पर ही क्यों सबकी नजर?
BMC चुनाव सिर्फ एक नगर निगम का चुनाव नहीं, बल्कि मुंबई की सत्ता पर कब्जे की लड़ाई है. जिसका BMC पर कब्जा, मुंबई उसी का. यही वजह है कि यह चुनाव महायुति और महाविकास अघाड़ी दोनों के लिए साख का सवाल बन गया है. BMC यानी एशिया की सबसे बड़ी सिविक बॉडी का बजट करीब 74,000 करोड़ रुपये है. 1997 से 2017 तक शिवसेना ने यहां शासन किया था, उस दौर में भाजपा उसकी सहयोगी थी. इस लंबे वर्चस्व ने BMC को महाराष्ट्र की राजनीति का पावर सेंटर बना दिया.
कई राज्यों के बजट से भी ज्यादा है BMC का बजट?
आपको जानकर हैरानी होगी कि मुंबई नगर निगम का बजट गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे कई राज्यों के बजट से भी बड़ा है. यही आर्थिक ताकत इसे राजनीतिक रूप से बेहद अहम बनाती है. इसी कारण भाजपा, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, एकनाथ शिंदे की शिवसेना, कांग्रेस, शरद पवार और अजित पवार-सभी अपनी-अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं, क्योंकि BMC में जीत मुंबई ही नहीं, महाराष्ट्र की राजनीति में भी बढ़त दिलाने वाली मानी जाती है.
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ऐसे में दोनों चचेरे भाई इस बात पर दांव लगा रहे हैं कि ‘ठाकरे ब्रांड’ अब भी मुंबई की राजनीतिक नब्ज को आकार दे सकता है. महाराष्ट्र में BMC समेत 29 नगर निगमों में 15 जनवरी को वोटिंग होगी और 16 जनवरी को नतीजे आएंगे.
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