पहाड़ों पर क़र्ज़ का बोझ, हिमाचल प्रदेश के साथ कर्नाटक को भी कांग्रेस ने डुबाया !
हिमाचल के आर्थिक संकट की वजह सरकार की तरफ से बांटी जा रही फ्रीबीज को जिम्मेदार माना जा रहा है. ढाई साल पहले हुए विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने मुफ्त की कई योजनाओं का वादा किया था।
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चुनावों की सरगर्मी देखकर बड़े बड़े वादे किए जाते हैं, ऐसे वादे जो आगे चलकर गले की ऐसी हड्डी बन जाते हैं जिसे न निगला जाता है ना निकाला जा सकता है, कुछ ऐसे ही हालात हिमाचल में हैं, हिमाचल में क़रीब ढाई साल पहले आई कांग्रेस सरकार क़र्ज़ में डूब रही है। हालात ये है कि अब वहाँ मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव और बोर्ड निगमों के चेयरमैन अगले 2 महीने सैलरी और भत्ते नहीं लेंगे। लेकिन क्या इससे प्रदेश पर आया वित्तीय संकट टल जाएगा ? क्या हिमाचल प्रदेश की हालत सुधर जाएगी ?
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इससे पहले बात ये कि आख़िर चुनावों की चकाचौंध में जनता से लोकलुभावन वादे करना मुफ़्त की बिजली, पानी, हर महीने खाते में कुछ रूप डालने की बात करने से लेकर वोट बंटोरकर और फिर राज्य और वहाँ की जनता को उनके हाल पर छोड़ने तक ये सब कब बंद होगा। खटाखट - खटाखट कर गठबंधन में चुनाव लड़ने वाले विपक्षी दल अब हिमाचल या कर्नाटक के हालातों पर चुप क्यों हैं। अलग - अलग विचारधारा वाली पार्टीयाँ जब एक साथ आईं तब जनता के हित और देश में लोकतंत्र को ख़तरा बताकर सरकार के ख़िलाफ़ मैदान में उतरीं ? लेकिन अब सबके होंठ क्यों सिल गए हैं ? जनता तो समझ रही है लेकिन अब इन राजनीतिक दलों को भी समझना होगा, कि ये पब्लिक है ये सब जान भी रही है और समझ भी। और अगर अब नहीं समझे तो बस, ख़त्म, टाटा, बाय - बाय।
खैर अब आते हैं हिमाचल प्रदेश पर जहां मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बताया कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए वो और उनके मंत्री दो महीने के लिए सैलरी और भत्ता छोड़ रहे हैं, हिमाचल के आर्थिक संकट की वजह सरकार की तरफ से बांटी जा रही फ्रीबीज को जिम्मेदार माना जा रहा है, ढाई साल पहले हुए विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने मुफ्त की कई योजनाओं का वादा किया था। सरकार बनने पर इन वादों को पूरा किया, जिसने कर्जा और बढ़ा दिया। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल में कांग्रेस के सत्ता में आने से पहले मार्च 2022 तक 69 हजार करोड़ रुपये से कम का कर्ज था लेकिन उसके सत्ता में आने के बाद मार्च 2024 तक 86,600 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज हो गया। मार्च 2025 तक हिमाचल सरकार पर कर्ज और बढ़कर लगभग 94 हजार करोड़ हो जाएगा।
अब ये भी देखिए की 2022 के चुनाव में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने कई बड़े वादे किए थे, सरकार में आने के बाद इन वादों पर बेतहाशा खर्च किया जा रहा है।हिमाचल सरकार के बजट का 40 फीसदी तो सैलरी और पेंशन देने में ही चला जाता है, लगभग 20 फीसदी कर्ज और ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है। सुक्खू सरकार महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देती है, जिस पर सालाना 800 करोड़ रुपये खर्च होता है। ओल्ड पेंशन स्कीम भी यहां लागू कर दी गई है जिससे एक हजार करोड़ रुपये का खर्च बढ़ा है। जबकि, फ्री बिजली पर सालाना 18 हजार करोड़ रुपये खर्च होता है। इन तीन स्कीम पर ही सरकार लगभग 20 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है।
अब आप सोचिए जहां पहले से वेतन-पेंशन देने में ही जेब खाली हो रही है, वहां नया खर्चा भार ही तो बनेगा। यही वजह है कि 300 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा करके भी हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार वो वादा 18 महीने बाद भी पूरा नहीं कर पाई बल्कि पहले से 125 यूनिट फ्री बिजली जो दी जा रही थी। उसमें भी बदलाव करना पड़ा। पिछले महीने हिमाचल प्रदेश में आयकर भरने वाले घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट फ्री बिजली जो दी जा रही थी, उस पर रोक लग गई।
अब इन सबके बीच सीएम का 2 महीने तक वेतन ना लेने से क्या ही हो जाएगा एक बार ये भी समझ लीजिए कि क्या 2 महीने तक वेतन ना लेने से हिमाचल का आर्थिक संकट सुलझ जाएगा। मुख्यमंत्री का वेतन और भत्ता 2.5 लाख रुपय महीना, इसके साथ 10 मंत्री हैं। सभी का 2.5 लाख और 6 संसदीय सचिव हैं तो उन सबका मिलाकर कुल 77 लाख यानि 1 करोड़ से भी कम अब जिस प्रदेश में अगले साल तक क़र्ज़ 94 हज़ार हो जाएगा। वहाँ 2 महीना का वेतन छोड़कर सीएम सुख्खू क्या हासिल करना चाहते हैं, कुछ यही हाल कर्नाटक का भी है। जहां सरकार बनते ही सरकार ने विकास कार्यों के लिए फंड देने से ही इंकार कर दिया था। अब खटाखट खटाखट के चक्कर में जो ये हाल हुआ है ये कैसे और कब तक ठीक होगा ये देखना होगा।
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