'घर आ जा परदेशी तेरा देश बुलाए रे...', ममता ने की 22 लाख बंगाली प्रवासियों से दूसरे राज्यों को छोड़ने की अपील, किया हर मदद का वादा
‘हमारी किसी भाषा से शत्रुता नहीं है. मैं किसी भाषा के खिलाफ नहीं हूं…’., ये बात बोलते हुए ममता बनर्जी ने साफ कह दिया कि वो जान दे देंगी लेकिन अपनी भाषा नहीं छीनने देंगे. दूसरी तरफ ममता ने अपने लोगों से अपील कि है कि वो बंगाल लौटें, उनके लिए सरकार हर संभव व्यवस्था करेगी.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को राज्य लौटने के इच्छुक सभी प्रवासी मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा, "मुंबई, उत्तर प्रदेश या राजस्थान में रहने की कोई ज़रूरत नहीं है. मैं आपको 'पीठा' या 'पायेश' नहीं खिला पाऊंगी, लेकिन अगर हम एक रोटी खाते हैं, तो हम यह सुनिश्चित करेंगे कि आपको भी एक रोटी मिले. आप यहां शांति से रह सकते हैं." शांतिनिकेतन में तृणमूल के पहले 'भाषा आंदोलन' मार्च से पहले उन्होंने कहा, "आपके पास पुलिस हेल्पलाइन है, हमसे संपर्क करें, हमें बताएं कि आप कब लौटना चाहते हैं, हम आपको वापस लाएंगे."
बोलपुर से बांग्ला अस्मिता की हुंकार
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आगामी विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा विरोधी अभियान को धार देते हुए सोमवार को ‘भाषा आंदोलन’ की शुरुआत की. उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की धरती बोलपुर से इस राज्यव्यापी आंदोलन का शंखनाद किया और बांग्लाभाषी लोगों की पहचान व अधिकारों की रक्षा का संकल्प दोहराया. बनर्जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “जान दे दूंगी, लेकिन अपनी भाषा नहीं छोड़ूंगी.”
एनआरसी को लेकर केंद्र और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वे एनआरसी को चुपचाप लागू करने की साजिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मतदाता सूची में संशोधन की आड़ में अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों, गरीबों और विशेषकर बांग्ला भाषियों को टारगेट किया जा रहा है. उनका दावा है कि यह प्रक्रिया एक प्रकार का “भाषाई आतंकवाद” है जो बंगाली अस्मिता को मिटाने की कोशिश है.
चुनाव आयोग को चेतावनी
राज्य में आयोजित एक बड़ी रैली में ममता ने चुनाव आयोग को दो टूक चेतावनी दी कि अगर वैध मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए, तो इसके परिणाम भुगतने होंगे. उन्होंने कहा, “हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. बंगाल की जनता अपने अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी ताकत से खड़ी होगी.”
मुख्यमंत्री ने साफ किया कि जब तक वह जीवित हैं, तब तक राज्य में एनआरसी लागू नहीं होने देंगी और बंगाल में किसी डिटेंशन कैंप की अनुमति नहीं दी जाएगी. उन्होंने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ मतदाता सूची या नागरिकता की नहीं है, बल्कि यह बंगाली अस्मिता और संस्कृति की रक्षा की लड़ाई है.
ममता ने उठाया बंगाली अस्मिता का सवाल
ममता बनर्जी ने भाषाई भेदभाव पर चिंता जताते हुए कहा कि बंगालियों को देश के अन्य हिस्सों में परेशान किया जा रहा है, जबकि बांग्ला एशिया की दूसरी और दुनिया की पांचवीं सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. उन्होंने कहा, “हमारी भाषा मिटाने की कोशिश अगर की गई, तो हम पूरी ताकत से शांतिपूर्ण विरोध करेंगे.”
बंगालियों की वापसी के लिए सरकारी योजना
मुख्यमंत्री ने देश के अन्य हिस्सों से प्रताड़ित होकर लौटने वाले बंगालियों के लिए पुनर्वास योजना की घोषणा भी की. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार रोजगार, शिक्षा और आवास की पूरी व्यवस्था करेगी. बनर्जी ने इन लोगों से भावुक अपील करते हुए कहा, “अपने घर लौट आइए, बंगाल आपकी रक्षा करेगा.”
बोलपुर में निकाली गई विरोध रैली सिर्फ राजनीतिक आयोजन नहीं थी, बल्कि सांस्कृतिक चेतना और भावनाओं का भी प्रदर्शन थी. शांतिनिकेतन की पारंपरिक पहचान को अपनाते हुए ममता ने ‘जय बंगाल’ और ‘जय हिंद’ के नारे लगाए. रैली में शामिल लोगों के हाथों में टैगोर की तस्वीरें और बांग्ला संस्कृति के प्रतीक थे. ममता बनर्जी ने भाजपा को सीधे शब्दों में चुनौती देते हुए कहा, “अगर आप हमारे पते और पहचान छीनने की कोशिश करेंगे, तो हम आपको राज्यहीन बना देंगे.” उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे हर जिले में इस आंदोलन को फैलाएं और अपनी मातृभाषा व मातृभूमि की रक्षा के लिए खड़े हों.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए बनर्जी ने पूछा, “जब आप अरब देशों में शेखों को गले लगाते हैं, तब धर्म नहीं पूछते, तो बंगाल के बांग्लाभाषियों से भेदभाव क्यों?” उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार बंगाल को उसका हक नहीं दे रही, जबकि विदेशों को भारी आर्थिक सहायता दी जा रही है. ममता ने दोहराया कि यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसक रहेगा, लेकिन इसमें हर बांगाली को शामिल होना होगा. उन्होंने कहा, “हमारी लड़ाई संविधान, लोकतंत्र और अपनी पहचान के लिए है. हम पीछे नहीं हटेंगे.”
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यह ‘भाषा आंदोलन’ पश्चिम बंगाल की राजनीति को केवल भाषाई मुद्दों तक सीमित नहीं करता, बल्कि यह अस्मिता, अधिकार, नागरिकता और पहचान के गहरे प्रश्नों को भी सामने लाता है. ममता बनर्जी का यह रुख आगामी चुनावों में एक निर्णायक मोड़ बन सकता है.
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