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चीन ने दिखाए पक्की दोस्ती के सबूत... भारत की शिकायत लेकर पहुंचे नेपाल के पीएम को शी जिनपिंग ने लगाई फटकार, कहा - हम कुछ नहीं कर सकते

SCO शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत से जुड़े एक मुद्दे को उठाने की कोशिश की थी, लेकिन शी जिनपिंग ने सख्त लहजे में कहा कि वह उन्हें किसी भी तरह का समर्थन नहीं दे सकते हैं. यह भारत और नेपाल का मुद्दा है. इसमें हमारा कोई दखल नहीं है. आप दोनों ही आपसी सहमति से इस मुद्दे को खुद से सुलझाएं.

चीन ने भारत के साथ रिश्तों में सुधार और मजबूती की एक नई मिसाल पेश की है. अमेरिका के साथ टैरिफ विवाद के चलते चीन और भारत की करीबी कई देशों के लिए चिंता का विषय बन गई है. इस बीच SCO शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी भारत से जुड़े एक मुद्दे को उठाने की कोशिश की थी, लेकिन शी जिनपिंग ने सख्त लहजे में कहा कि वह उन्हें किसी भी तरह का समर्थन नहीं दे सकते हैं. यह भारत और नेपाल का मुद्दा है. इसमें हमारा कोई दखल नहीं है. आप दोनों ही आपसी सहमति से इस मुद्दे को खुद से सुलझाएं. हालांकि, शी जिनपिंग के पास पहुंचे नेपाली प्रधानमंत्री को उनसे खास उम्मीद थी, लेकिन शी जिनपिंग के जवाब के बाद वह हैरान हो गए और शायद इसके बाद ओली अब कभी इस तरह का कोई कदम उठाएं. बता दें कि हाल ही में भारत और चीन के बीच उत्तराखंड की सीमा पर स्थित लिपुलेख दरे के जरिए व्यापार को लेकर सहमति बनी है, इसको लेकर नेपाल नाराज चल रहा है. 

क्या कहा नेपाली प्रधानमंत्री ने?

SCO शिखर सम्मेलन में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के सामने दावा किया कि लिपुलेख नेपाल का इलाका है. हालांकि, नेपाल के प्रधानमंत्री का यह बयान काफी चौंकाने वाला रहा, क्योंकि पिछले दस सालों में ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी नेपाल के नेता ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने ऐसा दावा किया हो. 

नेपाली दूतावास ने जारी किया बयान

इस मामले पर नेपाल के दूतावास ने अपने बयान में लिपुलेख दरें के जरिए भारत और चीन के बीच बनी सहमति का जिक्र करते हुए कहा कि "यह नेपाल का इलाका है. उन्होंने भारत और चीन में बनी सहमति का विरोध भी किया."  

क्या कहा चीनी राष्ट्रपति ने 

इस मामले पर चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि "लिपुलेख एक पारंपरिक सीमा दर्रा है और इसके संचालन के लिए एक समझौता किया गया है. चीन नेपाल के दावे का सम्मान करता है, लेकिन चूंकि सीमा विवाद भारत और नेपाल के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है, इसलिए इसे दोनों पक्षों को सुलझाना होगा." 

शी जिनपिंग के पास इस उम्मीद के साथ पहुंचे थे नेपाली प्रधानमंत्री 

दरअसल, भारत और चीन के रिश्ते में हुए सुधार को लेकर ओली यह मान रहे होंगे कि शायद जिनपिंग से कहने के बाद चीन भारत के साथ किए समझौते से पीछे हट जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बता दें कि 5 साल पहले नेपाल ने लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को लेकर एक नया नक्शा जारी किया था, जिसमें इन इलाकों को अपना बताया था.

भारत ने नेपाल के दावों का किया विरोध

भारत ने नेपाल द्वारा किए गए इस दावे का कड़ा विरोध किया है. इससे पहले साल 2023 में भी नेपाल को इस मामले में चीन से झटका लगा था. उस दौरान नेपाल के नए मैप को उसने स्वीकार नहीं किया था. ऐसे में चीन द्वारा भारत के लिए यह कदम मौन सपोर्ट की तरह देखा गया. 

कहां है लिपुलेख दर्रा ?

बता दें कि लिपुलेख उत्तराखंड में सीमा के पास पड़ता है. इसकी सीमा भारत, नेपाल और चीन से मिलती हैं. इस दरें के दक्षिणी भाग को कालापानी कहा जाता है. भारत के इन इलाकों पर नेपाल अपना दावा करता रहा है और कुछ सालों पहले उसने अपने नए मैप में भी इसे शामिल कर लिया, जिससे भारत-नेपाल के बीच संबंधों में थोड़ी खटास आ गई. इस दर्रे का इस्तेमाल तीर्थयात्रियों द्वारा भी किया जाता है. 

मानसरोवर यात्रा पर गए तीर्थयात्रियों ने किया था इस दरें का इस्तेमाल

हाल ही में मानसरोवर यात्रा पर गए तीर्थयात्रियों ने भी इस दरें का इस्तेमाल किया था. वहीं पिछले दिनों चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री मोदी के बीच नई दिल्ली में व्यापक वार्ता के बाद दोनों पक्ष लिपुलेख दरें के जरिए  सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने पर सहमत हुए थे. 

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