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मिशन बंगाल के लिए BJP ने बदली रणनीति...नहीं अपनाएगी बिहार वाला फॉर्मूला, अमित शाह ने कैसे खोज ली ममता की काट?

बिहार के बाद बंगाल बीजेपी का अगला टॉप टार्गेट है. यह वो राज्य है जहां जाति उतना फैक्टर नहीं है. बीजेपी का हिंदू राष्ट्रवाद वाला एंगल चलता नहीं, ममता के मां, मांटी-मानुष की काट है नहीं और TMC का वोट शेयर ही 30% से शुरू होता है. ऐसे में बीजेपी बंगाल का किला कैसे फतह करेगी? क्या उसे अपनी रणनीति बदलनी होगी? तो जवाब है हां. बीजेपी इस बार अपने मिशन बंगाल के लिए अपना फॉर्मूला बदलने जा रही है.

Created By: केशव झा
30 Nov, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
09:27 AM )
मिशन बंगाल के लिए BJP ने बदली रणनीति...नहीं अपनाएगी बिहार वाला फॉर्मूला, अमित शाह ने कैसे खोज ली ममता की काट?

लोकसभा चुनाव में 400 पार के नारे के झटके से उबरकर बीजेपी फिर से विजय रथ पर सवार है. केंद्र में सरकार बनाने के बाद पार्टी ने बेहद मुश्किल हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और हाल में बिहार का चुनाव जीता. उसकी रणनीति और जोश को देखते हुए ऐसा लगता है कि उसे रोकना मुश्किल है. पीएम मोदी ने बिहार जीत के बाद कहा था कि जहां-जहां मां गंगा है, बीजेपी वहां-वहां जीतेगी. यानी मां गंगा की मौजूदगी वाला राज्य बंगाल अब भगवा पार्टी का प्रमुख लक्ष्य है.

लाख प्रयासों और पूरी ताकत झोंकने के बावजूद बीजेपी बंगाल में ममता बनर्जी को हरा नहीं पा रही है. सीटें बढ़ीं या घटीं, वोट शेयर में उतार-चढ़ाव आया, लेकिन सरकार नहीं बना पाई. दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में उसे फिर हार का सामना करना पड़ा और वह 2019 के आंकड़े को भी छू नहीं सकी. ऐसे में सूत्रों के हवाले से खबर है कि पार्टी मिशन बंगाल के लिए अपनी रणनीति बदलने जा रही है, जो बिहार और पिछले चुनावों से अलग होगी.

बिहार की तुलना में बंगाल सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से एकदम अलग है. इसके अलावा 2019 के लोकसभा, 2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों ने बीजेपी को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है. बांग्ला स्वाभिमान, माटी-मानुष और भद्रलोक की राजनीति वाले राज्य में बीजेपी की हार्ड हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद वाली राजनीति को कड़ी चुनौती मिल रही है और यह अब तक सफल नहीं हो पाई है. बीजेपी जान गई है कि यूपी, एमपी और हिंदी बेल्ट की तरह सिर्फ हिंदू राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ममता की सत्ता को गिराना आसान नहीं है. इसके अलावा यहां दूसरे राज्यों की तरह जाति का फैक्टर भी प्रभावी नहीं है. वहीं, यहां बिहार से करीब 13 प्रतिशत अधिक यानी लगभग 30 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है. यानी टीएमसी का वोट प्रतिशत स्वाभाविक रूप से लगभग 30 फीसदी से शुरू होता है.

कैसे रहे पिछले चुनावों के नतीजे?

  • 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 42 में से 18 सीटें जीतीं और 40.25% वोट हासिल किए.
  • यह पश्चिम बंगाल में भाजपा का अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन था.
  • 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा यह मोमेंटम कायम नहीं रख सकी और उसका वोट प्रतिशत घटकर 27.81% रह गया.
  • विधानसभा में भाजपा को 77 सीटें मिलीं, जो 2016 की तुलना में बेहतर थीं, लेकिन उम्मीद के मुताबिक नहीं थी.
  • 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर अपनी पुरानी बढ़त नहीं दोहरा पाई.
  • भाजपा की सीटें घटकर 12 रह गईं और उसका वोट प्रतिशत 39.10% रहा.
  • टीएमसी भी बीते दो चुनावों में अपने 2019 वाले प्रदर्शन से आगे नहीं बढ़ सकी है.
  • यही लगातार ठहराव टीएमसी के लिए सबसे बड़ी चिंता बन गया है.

एक अंग्रेजी अखबार की एक रिपोर्ट की मानें तो बीजेपी इस बार अपने मिशन बंगाल के लिए मिशन मुस्लिम के फैक्टर से निपटने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है. ऐसे वक्त में जब बंगाल सहित पूरे देश में SIR चल रहा तो सवाल उठता है कि क्या बीजेपी यहां भी बिहार की तरह घुसपैठ का मुद्दा उठाएगी? बिहार चुनाव में ये मुद्दा काम कर गया. तो इसका जवाब है नहीं. बीजेपी का बंगाल में SIR को लेकर रुख बदला हुआ है. उसने इस बार रणनीति अपनाई है कि पार्टी राष्ट्रवादी मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी पिछले 15 सालों से, 2011 से सत्ता में हैं. वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद ममता भी उसी तरह जम चुकी हैं और ऐसा लगता है जैसे उन्हें उखाड़ना आसान नहीं है. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा कि बीजेपी के नेताओं का भी मानना है कि उन्हें इस बार बंगाल में अलग फॉर्मूले, फ्रेश रणनीति की जरूरत है. ऐसे में पार्टी जाति की जगह क्षेत्रीय और धार्मिक समीकरणों के बीच संतुलन बना रही है.

पश्चिम बंगाल में कितना असरदार है मुस्लिम आबादी?

पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की आबादी करीब 30 फीसदी है. ये टीएमसी के स्टेल्थ और कोर स्ट्रेंथ माने जाते हैं. कहा जाता है कि वो चुनाव बीजेपी कैसे जीतेगी जहां बीजेपी अपनी शुरुआत 0% से करती है वहीं TMC की शुरुआत ही 30% के आगे से होती है.

  • पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी लगभग 30% है.
  • 294 सदस्यीय विधानसभा की लगभग 40–50 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक प्रभाव रखते हैं.
  • इन 40–50 सीटों को भले ही अलग मान लिया जाए, लेकिन कई अन्य सीटों पर भी मुस्लिम वोट कम संख्या में होने के बावजूद जीत-हार तय कर देते हैं.
  • 2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में ऐसी कई सीटों पर भाजपा को हार मिली थी.
  • भाजपा इस बार ऐसी सीटों पर गलती दोहराना नहीं चाहती.
  •  2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल की आबादी में 27% मुस्लिम और 70.5% हिंदू हैं.

क्या है भाजपा की रणनीति?

इन सब परिस्थितियों और चुनौतियों को देखते हुए बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली है. रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी इस बार ममता से नाराज मुस्लिम वोटर्स को टार्गेट कर सकती है. ये वही वोटर हैं जो आम तौर पर कांग्रेस और लेफ्ट को वोट करते आए हैं. इसके अलावा बीजेपी स्विंग मुस्लिम वोटर्स को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है.

बीजेपी के नेताओं ने कहना शुरू किया है कि पिछले तीन सालों में बंगाल में राजनीतिक हिंसा में सबसे ज्यादा मौत मुस्लिम समुदाय के लोगों की हुई है. बीजेपी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा कि कब तक मुस्लिम मंदिर और मस्जिद की कहानी सुनेंगे, ये सब पुरानी बातें हैं. वहीं हार्डलाइनर सुवेंदु अधिकारी का भी मुस्लिमों को लेकर रुख नरम हो रहा है. उन्हीं के बयानों का टीएमसी हवाला देकर बीजेपी पर एंटी मुस्लिम होने का आरोप लगाती है, जबकि बीजेपी ममता की पार्टी को एंटी मुस्लिम करार देती है.

एंटी मुस्लिम की छवि को धोना चाह रही बीजेपी!

बिहार विधानसभा चुनाव जीतने के कुछ दिनों पर सुवेंदु ने साफ कहा कि टीएमसी लगातार यह गलत धारणा फैलाती है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी है, जबकि हम सबके विकास की बात करते हैं. हमने कभी भी मुस्लिम समुदाय को सिर्फ वोट बैंक की नजर से नहीं देखा. उन्होंने आगे कहा कि इंडियन मुस्लिम SIR का समर्थन करते हैं, जिसका मकसद बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या शरणार्थियों को वोटर लिस्ट से निकाल-बाहर करना है.

बीजेपी का मिशन राष्ट्रवादी मुस्लिम

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वहीं भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा कि हमारा रुख बिल्कुल स्पष्ट है. हम राष्ट्रवादी भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ नहीं हैं, हम केवल अवैध घुसपैठ, जिहादी तत्वों और रोहिंग्याओं पर कार्रवाई के पक्ष में हैं. हालांकि भाजपा के इन दावों पर टीएमसी और वाम दलों ने कड़ी आपत्ति जताई है. उसने सवाल किया है कि ये आख़िर कौन तय करेगा कि कौन कौन राष्ट्रवादी है और कौन नहीं?

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