शेख हसीना को सजा-ए-मौत… अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने उठाए सवाल, लेकिन मानवाधिकार पर ज्ञान देने वाले अमेरिका-ब्रिटेन चुप
Shaikh Hasina: बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सजा-ए-मौत सुनाई गई. दुनिया के कई मानवाधिकार संगठनों ने इस पर सवाल उठाया लेकिन मानवाधिकार के पहरेदार बनने वाले अमेरिका-ब्रिटेन चुप हैं.
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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल ट्रिब्यूनल (ICT) कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है. इस फैसले पर दुनिया के कई मानवाधिकार संस्थाओं ने सवाल उठाए हैं. इसका विरोध किया है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश जो दुनियाभर में मानवाधिकार के ठेकेदार बनते हैं, उसकी रक्षा की बात करते हैं, पहरेदारी का दंभ भरते हैं और मानवाधिकार पर दूसरे देशों को ज्ञान देते हैं, ये अब तक चुप हैं. शेख हसीना की सजा-ए-मौत पर अब तक इन दो देशों ने अपनी जुबान तक नहीं खोली है. जबकि ICT पर लंबे समय से यह आरोप लगता रहा है कि वहां न तो न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता है, और न ही कानून के बुनयादी सिद्धातों का पालन किया जाता है. इसके बावजूद अमेरिका और ब्रिटेन की चुप्पी कई सारे सवाल खड़ी करती है.
मानवाधिकार उल्लंघन पर मुखर रहे हैं अमेरिका-ब्रिटेन
जहां कहीं भी मानवाधिकार का उल्लंघन हुआ है, ये दोनों देशों ने मुखर होकर आवाज उठाई है. ब्रिटेन ने 1998 में मृत्युदंड को ही खत्म कर दिया था. साल 2022 में अमेरिकी दूतावास ने कहा था कि अमेरिका मानवाधिकार की रक्षा और उनके उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई में प्रतिबद्ध है. साल 2023 में, अमेरिकी एम्बेसडर पीटर हास ने 'ह्यूमन राइट वॉच' को बताया था कि अमेरिका, बांग्लादेश में मानवाधिकार और लोकतंत्र को लेकर काफी चिंतित है. साल 2023 में ही ब्रिटिश उच्चायोग ने मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करने की बात कही थी. बांग्लादेश पर अमेरिका और ब्रिटेन की नजरें बहुत पहले से हैं. वहीं, हाल ही में शेख हसीना को ICT ने सजा-ए-मौत दे दी, जिसके बाद कई अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने इस पर सवाल उठाया, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन ने चुप्पी साधी हुई है. अब सवाल ये है कि क्या अमेरिका-ब्रिटेन के लिए मानवाधिकार की रक्षा का पैमाना अलग है? या फिर इस खामोशी के पीछे कोई खेल है?
अमेरिका-ब्रिटेन पर्दे के पीछे से खेल रहे हैं खेल?
इतिहास गवाह रहा है कि दुनिया के किसी भी देश में अगर कुछ हलचल होती है तो अमेरिका-ब्रिटेन का नाम जरूर आता है. आरोप ये भी लगते हैं कि पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए अमेरिका हमेशा से कोई न कोई खेल खेलता रहा है. बात चाहे ईरान, इराक, सीरिया, लेबनान, इज़रायल, फिलिस्तीन जैसे मिडिल ईस्ट देशों की हो, या फिर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल जैसे एशियाई देशों की हो. हर जगह अमेरिका अपना वर्चस्व चाहता है. इसके लिए पर्दे के पीछे से शतरंज का खेल खेलता रहता है. जो देश उसकी ‘हां’ में ‘हां’ करते हैं, वो उसके लिए अच्छे हैं और जिसने भी उसका कहा नहीं माना और आंख दिखाई, फिर अमेरिका उसे हर तरह से दबाने की कोशिश करता है. दुनिया की राजनीति पर नजर रखने वाले बहुत से जानकारों का तो यही मानना है.
शेख हसीना पर क्यों चुप है अमेरिका?
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि अमेरिका नहीं चाहता कि भारत का रिश्ता उसके पड़ोसियों के साथ अच्छा रहे. पाकिस्तान, चीन जैसे देश तो भारत के दुश्मन है ही, एक बांग्लादेश था जिसके साथ हमेशा से भारत का रिश्ता अच्छा रहा लेकिन अब वहां सत्ता परिवर्तन कराकर भारत विरोधी मानसिकता रखने वालों के हाथ में देश की बागडोर को थमा दिया गया, ये कोई इत्तिफाक नही, बल्कि सोची-समझी साजिश हो सकती है. वैसे भी आपको पता है कि अमेरिका टैरिफ थोपकर भारत को कमजोर करना और अपने सामने झुकाना चाहता है, लेकिन भारत ने अमेरिका को मुंहतोड़ जवाब दिया, जिसके बाद अमेरिका बौखलाया हुआ है. आपको ये भी पता होगा कि नेपाल और मालदीव जैसे देश भी कभी-कभी दूसरों के बहकावे में आकर भारत को आंख दिखाते हैं, लेकिन उन्हें बहुत जल्दी समझ आ जाता है कि भारत से दुश्मनी करके इनका कुछ भी भला नहीं हो सकता. शेख हसीना फिलहाल भारत में शरणार्थी हैं, और बांग्लादेश की कोर्ट में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई है. ऐसे में अमेरिका का चुप रहना, किसी राजनीतिक खेल की ओर ही संकेत करता है.
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