धर्म रक्षा के लिए बहा देते हैं खून... कैसे बनते हैं खूनी नागा साधु?
इस रिपोर्ट में जानिए खूनी नागा साधु के बारे में ये स्वाभाव से ही उग्र होते है और सनातन की रक्षा, धर्म की रक्षा के लि ये अपना खून बहाने से भी पीछे नहीं हटते। कौन होते है ये खूनी नागा साधु और कैसे इनको दीक्षा प्राप्त होती है?

इस बार का महाकुंभ कई मायनों में खास है। यहां की तस्वीरें हमें सनातन की सेवा के साथ साथ साधुओं की जीवनशेली और इनकी जिंदगी से रूबरू कराता है। मेले में पहुंचे हर एक संत हर एक महात्मा अपनी दीक्षा को लेकर एक अलग स्थान पर है। लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान जो आकर्षित करता है वो है नागा साधु और इनकी रहस्यमयी दुनिया।
इन्हें और इनके अखाड़े को देखकर भले ही हमें लगे की ये कितने अव्यवस्थितहै, पर इनका हर एक कार्य पूरी व्यवस्था के साथ होता है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है। शुरु से लेकर अंत तक नागा साधु बनने के लिए कई तरह की कठिन नियम को अपनाना पड़ता है। दीक्षा देने के बाद नागा साधुओं को एक विशेष श्रेणी में रखा जाता है। इन्हीं में से एक है खूनी नागा साधु। जो काफी उग्र होते है और अपने धर्म रक्षा के लिए खुन भी बहा देते है।
खूनी नागा साधु बनने के लिए तप?
नागा साधु किस जगह दीक्षा लेंगे ये महंत निश्चित करते है। दीक्षा दो जगह दी जाती है हरिद्वार और उज्जैन में। इसके बाद पहले वो व्यक्ति जिसे नागा साधु बनना है वो 3 साल तक महंत की सेवा करते है। इसी दौरान उनकी ब्रह्मचर्य की भी परीक्षा होती है। खूनी नागा साधुओं को उज्जैन में दीक्षा दी जाती है। इन्हें कई रातों तक 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का जप करना होता है। इसके बाद अखाड़े के प्रमुख महामंडलेश्वर द्वारा इन साधुओं को विजया हवन करवाया जाता है। हवन पूरा होने के बाद साधु को शिप्रा नदी में 108 बार फिर से डुबकी लगानी होती है। इसके बाद उज्जैन में कुंभ मेले के दौरान अखाड़े के ध्वज के नीचे नागा साधु को दंडी त्याग करवायी जाती है। इस कठिन प्रक्रिया के पूरे होने के बाद ही एक नागा साधु, खूनी नागा साधु बनता है। जिस तरह उज्जैन में दीक्षित होने वाले नागा साधु को खूनी कहा जाता है, इसी तरह हरिद्वार में दीक्षा ग्रहण करने वाले साधु को बर्फानी नागा साधु कहते हैं।
खूनी नागा साधुओं का स्वभाव
उज्जैन में दीक्षा लेने वाले साधुओं को बेहद उग्र माना जाता है। हालांकि इनके मन मेंकोई छल-कपट नहीं होता। अपने धर्म की रक्षा के लिए खूनी नागा साधु हमेशा तत्पर रहते है। धर्म के लिए ये अपनी बलि दे भी सकते है और दूसरों का खून बहा भी सकते है। खूनी नागा साधु को एक योद्धा कहा जा सकता है।
बता दें कि सनातन धर्म में महाकुंभ का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में शाही स्नान करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है। जहां कुंभ मेला हर तीन साल में लगता है, अर्धकुंभ हर 6 साल में लगता है तो वहीं महाकुंभ का शुभ संयोग 144 वर्षों में एक ही बार बनता है। ऐसा माना जा रहा है कि ये शुभ संयोग 2025 में बन रहा है। जानकारी देते चले कि महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी को पूर्णिमा से होगी और इसका समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर होगा। प्रयागराज कुंभ मेले में छह शाही स्नान होंगे। महाकुंभ मेला का पहला शाही स्नान 13 जनवरी 2025 को होगा।