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डिमेंशिया के लक्षण दिखने के बाद भी डायग्नोस में लग जाते हैं 3.5 साल! रिसर्च में खुलासा

एक नई रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण दिखने के बाद भी इसकी डायग्नोसिस में औसतन साढ़े तीन साल (3.5 साल) का समय लग जाता है. भूलने की आदत, फैसले लेने में दिक्कत और व्यवहार में बदलाव जैसे संकेतों को अक्सर उम्र बढ़ने का असर मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है. इस देरी से मरीज की हालत बिगड़ती है और इलाज के विकल्प सीमित हो जाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि जागरूकता और समय पर जांच से डिमेंशिया को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकता है.

28 Jul, 2025
( Updated: 28 Jul, 2025
09:56 PM )
डिमेंशिया के लक्षण दिखने के बाद भी डायग्नोस में लग जाते हैं 3.5 साल!  रिसर्च में खुलासा

क्या आप जानते हैं कि डिमेंशिया जैसे गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की पहचान में औसतन साढ़े तीन साल की देरी हो सकती है? जी हां, एक ताज़ा अध्ययन के अनुसार, मरीजों में जब डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण दिखने लगते हैं, तब भी उनकी सही डायग्नोसिस होने में 3.5 साल का लंबा वक्त लग जाता है. यह देरी न केवल मरीज की मानसिक स्थिति को और बिगाड़ती है, बल्कि इलाज की संभावनाएं भी सीमित कर देती है

शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं लोग

डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण जैसे—बातों को भूलना, रोज़मर्रा के कामों में उलझन, फैसले लेने में परेशानी—अक्सर उम्र बढ़ने का असर समझकर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं. यह लापरवाही बीमारी को धीरे-धीरे गंभीर बना देती है.

स्टडी में हुआ खुलासा: औसतन 3.5 साल की देरी

ब्रिटेन में की गई स्टडी में सामने आया है कि डिमेंशिया के लक्षण दिखने से लेकर उसके डायग्नोस होने तक औसतन 3.5 साल का अंतर होता है. यह रिसर्च हजारों मरीजों के मेडिकल रिकॉर्ड पर आधारित है, जिससे यह भी पता चला कि लक्षणों की पहचान में देरी से बीमारी का प्रभाव तेज़ हो जाता है. 

क्यों होती है इतनी देरी?

डॉक्टर्स और विशेषज्ञ बताते हैं कि डिमेंशिया की पहचान में देरी के पीछे कई वजहें हैं:

  • परिवार का लक्षणों को नज़रअंदाज करना
  • स्वास्थ्य केंद्रों में टेस्टिंग की सुविधा का अभाव
  • मानसिक बीमारी से जुड़ी सामाजिक शर्म
  • धीरे-धीरे बढ़ने वाले लक्षण

समय पर डायग्नोस से मिल सकता है बेहतर इलाज

समय रहते डिमेंशिया की पहचान होने पर इलाज और मैनेजमेंट काफी प्रभावी हो सकता है. इससे न केवल मरीज की स्थिति बेहतर रहती है, बल्कि परिवार भी मानसिक रूप से तैयार रहता है. 

विशेषज्ञों की सलाह

अगर किसी बुजुर्ग को बार-बार भूलने की आदत, असमंजस की स्थिति या व्यवहार में बदलाव दिखाई दे, तो बिना देर किए न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करें. ये संकेत डिमेंशिया की ओर इशारा कर सकते हैं.

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डिमेंशिया की पहचान में देरी लाखों ज़िंदगियों को प्रभावित कर रही है. यह रिसर्च एक चेतावनी है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए. समय पर जांच और इलाज ही बेहतर भविष्य की कुंजी है.

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