दर्दभरी जिदंगी या मौत… 12 साल से ‘बेजान’ बेटे के लिए पिता ने मांगी ‘इच्छामृत्यु’, केस देखकर जज भी हुए इमोशनल
सुप्रीम कोर्ट इच्छामृत्यु के एक ऐसे मामले पर फैसला सुनाएगा. जिसमें एक लाचार पिता अपने बेटे के मरने की अर्जी लेकर आया है. बेटा 12 साल से जिंदा लाश बना हुआ है. बेहोश शरीर जिसमें कोई हरकत नहीं. सिर्फ सांसे हैं.
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कोई भी पिता अपने बच्चों के लिए मौत नहीं मांगेगा. खुद की जरूरतों से समझौता कर बेटे की बेहतर जिंदगी के लिए पिता न जाने कितने संघर्ष करता है, लेकिन एक पिता अपने बेटे के लिए मौत मांग रहा है. इस मांग के साथ अब पिता ने देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है. इस केस ने जजों को भी इमोशनल कर दिया. अदालत अब इस मामले में बहुत बड़ा फैसला लेने जा रही है. क्या है पूरा मामला जानते हैं.
13 जनवरी 2026 को सुप्रीम कोर्ट इच्छामृत्यु के एक ऐसे मामले पर फैसला सुनाएगा. जिसमें एक लाचार पिता अपने बेटे के मरने की अर्जी लेकर आया है. क्योंकि उनका बेटा 12 साल से जिंदा लाश बना हुआ है. बेहोश शरीर जिसमें कोई हरकत नहीं. ये कहानी गाजियाबाद के हरीश राणा की है. जिनका देश के बड़े हॉस्पिटल में इलाज चला लेकिन कोई भी उन्हें ठीक नहीं कर सका. अब हरीश राणा के माता-पिता केवल और केवल उनके लिए सुकून भरी मौत चाह रहे हैं. ताकि बेटे को तकलीफदेह जिंदगी से आजादी मिल जाए.
हॉस्टल की चौथी मंजिल से गिरे और सब कुछ तबाह
32 साल के हरीश राणा गाजियाबाद के रहने वाले हैं. साल 2013 में चंडीगढ़ में वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. एक दिन उनके साथ बड़ा हादसा हो गया जिसने न केवल उनकी जिंदगी बदल दी बल्कि उनके लिए जिंदगी को बोझ बना दिया. हरीश राणा हॉस्टल की चौथी मंजिल की बालकनी से नीचे गिर गए. सिर में गंभीर चोट लगी और वह आज तक होश में नहीं आए.
सांसों के साथ अंतहीन दर्द
हरीश राणा 12 साल से बिस्तर पर हैं. न वह चल सकते हैं न बोल सकते हैं न ही अपना दर्द बयां कर सकते हैं, लेकिन बेटे की इस साइलेंस में कितनी दर्दभरी चीख दबी हुई है. इसका अंदाजा जब मां-बाप को होता है तो वह फफक पड़ते हैं. बेटे को पाइप से खाना खिलाया जाता है और पेशाब के लिए बैग लगा है.
बेटे के इलाज में सब कुछ खत्म हुआ
हरीश राणा के पिता अशोक राणा ने बेटे को ठीक करने के लिए सब कुछ लुटा दिया. बेटे को PGI चंडीगढ़ से लेकर, दिल्ली AIIMS, राममनोहर लोहिया, LNJP, और प्राइवेट फोर्टिस जैसी महंगी हॉस्पिटल में भी इलाज करवाया, लेकिन हर कही नाउम्मीदी ही हाथ लगी. डॉक्टरों ने साफ बोल दिया. बेटा ठीक नहीं होगा. जबकि बेटे के लिए अशोक राणा ने अपनी नौकरी दांव पर लगा दी, अपना घर बेच दिया. पेंशन के 3 हजार रुपए मिलते हैं जिससे न इलाज संभव है न बेटे की देखभाल के लिए नर्स रखना. अशोक राणा और उनकी पत्नी अब खुद ही हरीश की देखभाल कर रहे हैं. साथ में सैंडविच और स्प्राउट बेचकर घर भी चला रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में बेटे के लिए मांगी इच्छामृत्यु
किसी भी मां-बाप के लिए बेटे के लिए मौत मांगना आसान नहीं है लेकिन अशोक राणा के लिए बेटे को दर्द में देखना भी आसान नहीं है. उन्होंने पहली बार साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट से बेटे की इच्छामृत्यु की मांग की थी. अदालत से इंकार के बाद फिर 5 साल बाद साल 2023 में गुहार लगाई, लेकिन दूसरी बार भी निराशा हाथ लगी. अब साल 2025 में जब अशोक राणा मेडिकल रिपोर्ट के साथ SC पहुंचे तो जस्टिस जेबी पारदीवाला और केवी विश्वनाथन भी इमोशनल हो गए. वह 13 जनवरी को तय करेंगे कि हरीश राणा का इलाज रोककर उन्हें प्राकृतिक मौत दी जाए या इसी तरह आगे की बेजान सांसें चलने दी जाएं.
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हालांकि इस बड़े फैसले से पहले जज हरीश राणा के माता-पिता और पीड़ित से मिलेंगे. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने इसे 'बेहद दुखद मामला' बताया है. जस्टिस पारदीवाला ने कहा, 'इस अर्जी में कही गई बातों और याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने जो बताया उस पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि पीडित की हालत बद से बदतर होती जा रही है. उनकी हालत बहुत खराब है. इसमें कोई शक नहीं है कि वह लगातार वेजिटेटिव स्टेट में हैं. उन्हें लगभग 100 फीसदी दिव्यांगता में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले से पहले वकीलों से रिपोर्ट को स्टडी करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही कोर्ट ने पिता से AIIMS की आखिरी रिपोर्ट भी मांगी है.
क्या होती है इच्छामृत्यु?
इच्छामृत्यु (Euthanasia) मर्जी से मौत को चुनना है. मौत के लिए इच्छा जताना है. जब कोई शख्स लाइलाज बीमारी से पीड़ित होता है और असहनीय दर्द में होता है तो वह इच्छामृत्यु मांग सकता है. बशर्ते उसका परिवार इस पर सहमत हो. बहरहाल 13 जनवरी 2026 को सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि हरीश राणा को इस तकलीफदेह जिंदगी से मुक्ति मिलेगी या फिर नैचुरल मौत का इंतजार करना पड़ेगा.
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